दूसरे दिन इला ने अपनेआप को बदलने का यत्न शुरू कर दिया. शाम को बालकनी में जब राजन के साथ बैठती तो उस की बातों में रुचि लेती. कभीकभार उस के दफ्तर के कामकाज के विषय में भी पूछती परंतु रात सोने के समय फिर कछुए की तरह अपनी खोल में सिमट जाती.
राजन इतने परिवर्तन से भी प्रसन्न था. सोचता था कि आहिस्ताआहिस्ता इला अपनी ?ि?ाक से मुक्ति पा लेगी. इस बार राजन गंगटोक के दौरे पर जाने लगा तो एक छोटे से सूटकेस में 2-3 कपड़े ले कर इला भी कार में आ बैठी.
3-4 दिन में काम समाप्त कर राजन सिलीगुड़ी के लिए लौट पड़ा. इस बार राजन भी इतना खुश था कि कार की टंकी भराने का भी उसे ध्यान न रहा. अभी वे लोग काली?ोरा तक ही पहुंचे थे कि कार बंद हो गई. रात होने लगी थी. किसी तरह कार ठेल कर वह काली?ोरा के रैस्टहाउस तक ले आया. पत्थरों पर उछलती, बहती पहाड़ी नदी के किनारे बना यह सुंदर रैस्टहाउस एक बड़ी चट्टान पर स्थित था.
गोलाकार सीढि़यां ऊपर तक चली गई थीं. रैस्टहाउस का चौकीदार राजन को पहचानता था. उस ने दोनों के लिए बड़ा वाला कमरा खोल दिया. राजन कार से एक ट्रक में लिफ्ट ले कर पैट्रोल लाने चला गया. जाने से पहले रात का खाना उस ने चौकीदार को बनाने को कह दिया था.
इला बरामदे के जंगले पर खड़ी नदी की ओर देखने लगी. वहां एक जोड़ा पानी के किनारे बैठा शायद पिकनिक मना रहा था. टिफिन एक किनारे पड़ा था. स्त्री की खनखनाती हंसी यहां तक सुनाई दे रही थी.