रश्मि घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी. मगर वह लाख कोशिशों के बावजूद भी खुद और परिवार के मध्य संतुलन नहीं बैठा पा रही थी. इस से पहले कि वह कोई ठोस निर्णय लेती, घर में एक घटना घट गई…
‘‘मां,अनीता मौसी इज कालिंग यू,’’ 7 वर्षीय अक्षिता ने रश्मि को फोन ला कर दिया. उधर से अनीता की खनकती आवाज आई, ‘‘तू तो हीरोइन बन गई माई डियर… पूरे औफिस में बस तेरे ही चर्चे हैं.’’ ‘‘पर मैं ने ऐसा किया क्या है…’’ ‘‘वह तू कल आएगी तब देखना… अभी तो मैं इसे राज ही रहने देती हूं. बस इतना सम झ ले कि तेरी 1 महीने की मेहनत सफल हो गई है और राज सर खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं,’’ कह कर अनीता ने फोन रख दिया.
‘‘यह अनीता भी न सुरसुरी छोड़ने की अपनी आदत से बाज नहीं आएगी… आधी बात भी बताने की क्या जरूरत थी. अब खुद तो चैन की नींद सोएगी और मैं रातभर करवटें बदलूंगी,’’ बड़बड़ाते हुए रश्मि किचिन समेटने में लग गई. 8 बज रहे थे. अभी अक्षिता को पढ़ाना बाकी था.
औफिस से आने के बाद टीवी के सामने जमे पति अनुराग की बगल में बैठी अक्षिता को रश्मि ने आवाज लगाई. 1 घंटा पढ़ाने के बाद चैन की सांस ले कर बैड पर जैसे ही लेटी तो अनीता के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे… उसे याद आ गया अपना औफिस जहां वह पिछले 1 साल से एज ए पार्ट टाइम वर्कर काम कर रही थी और हाल ही में एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के हाथ में था जिस का परिणाम आज ही आने वाला था. तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह पिछले 3 दिन से अवकाश पर थी. खैर, कल का कलदेखा जाएगी, यह सोच कर उस ने एक लंबी सांस ली और सोने का प्रयास करने लगी.
अगले दिन सुबह औफिस पहुंच कर रश्मि अपनी सीट पर आ कर बैठी ही थी कि चपरासी रामदीन ने आ कर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’ जैसे ही रश्मि ने राज सर के कैबिन का दरवाजा खोला वे अपनी सीट से उठ खड़े हुए और उत्साह से भर कर बोले, ‘‘वाहवाह बधाईबधाई रश्मिजी आप ने तो कमाल ही कर दिया जिस प्रोजैक्ट की हम ने उम्मीद ही छोड़ दी थी उसे हासिल कर के आप ने दिखा दिया कि प्रतिभा किसी की मुहताज नहीं होती.’’ ‘‘नहीं सर ऐसा कुछ नहीं है मैं ने तो बस अपना काम ईमानदारी से किया है,’’ रश्मि ने विनम्रता से कहा.
‘‘वही तो लोग नहीं करते… मैं ने आप की काम के प्रति लगन देख कर ही यह प्रोजैक्ट आप को दिया था. फुल टाइम वाले भी इतनी ईमानदारी से काम नहीं करते जितना आप पार्ट टाइम में लर लेती हैं. अब आज से हमारी कंपनी की आप परमानैंट वर्कर हैं. कंपनी के सारे टैंडर वर्क आप ही देखेंगी. हां, हमेशा की तरह आप के लिए टाइम की कोई बंदिश अभी भी नहीं रहेगी. हमें तो बस काम चाहिए.’’
‘‘जी सर,’’ कह कर रश्मि आ कर अपनी सीट पर बैठ गई. तभी अनीता ने आ कर पीछे से उस की आंखें बंद कर लीं. अनीता के स्पर्श को वह बहुत अच्छी तरह जानती थी सो हाथ पकड़ कर उसे अपने सामने किया और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तु झे तो मैं छोड़ूंगी नहीं कल सुरसुरी छोड़ कर खुद तो चैन से सोई और मैं सो ही नहीं पाई.’’
‘‘अब चल इतनी बड़ी खुशी को सैलिब्रेट भी करेगी या ऐसे ही बातें बनाती रहेगी. चल कैंटीन में कौफी पी कर आते हैं,’’ कह कर दोनों कैंटीन की तरफ बढ़ गईं. ‘‘रियली आई एम प्राउड औफ यू यार… राज सर तो क्या किसी को अंदाजा नहीं था कि यह 2 करोड़ का प्रोजैक्ट हमें मिल पाएगा. पर तूने क्या कैलकुलेशन लगा कर टैंडर डलवाया कि प्रोजैक्ट हमें मिल गया.’’
‘चल अब ज्यादा फूंस के झाड़ पे मत चढ़ा… कौफी पी और चल अभी बहुत सारे काम बाकी हैं.’’ उस दिन अगले कुछ प्रोजैक्ट के भी टैंडर डलवाने थे सो उन की प्लानिंग उस ने अपनी 2 असिस्टैंट के साथ मिल कर की और 2 बजे औफिस से निकल कर घर आ गई. घर आ कर अक्षिता को खाना खिला कर जो सुलाने लेटी तो बंद पलकों में अतीत के कुछ पन्ने भी धीरेधीरे फड़फड़ाने लगे…
वह उस समय बीए की छात्रा थी जब एक दिन अपनी सहपाठियों से अर्थशास्त्र के कुछ नोट्स मांग रही थी और सभी उसे देने में अनाकानी कर रहे थे. तभी वर्तमान पति अनुराग ने उस की ओर अपनी नोट्स की कौपी बढाते हुए कहा, ‘‘आप मेरी कौपी ले लीजिए शायद आप का काम हो जाएगा.’’
रश्मि ने जैसे ही पलट कर देखा तो सामने एक लंबा, गौरवर्ण का नवयुवक खड़ा था जो उस की ही कक्षा का था. उसे याद आया कि वह क्लास के मेधावी छात्रों में गिना जाता है. आमतौर पर उस ने उसे दूसरों से कम बात करते ही देखा था बल्कि कई बार तो क्लास की कई लड़कियों ने उस की बुद्धिमत्ता को देखते हुए मेलजोल बढ़ाने की कोशिश भी की थी पर अंतर्मुखी प्रवृत्ति के अनुराग पर अपना जादू चलाने में सफलता प्राप्त नहीं कर पाई थीं.
ऐसे में आगे रह कर उसे कापी देना रश्मि को कुछ अजीब सा तो लगा परंतु अपना काम बनता देख वह धीरे से बोली, ‘‘जी बहुतबहुत धन्यवाद. मैं कल अवश्य ले आऊंगी वह मु झे ज्वाइंडिस हो गया था तो मैं कुछ दिनों से आ नहीं पाई इसलिए…’’ रश्मि ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा.
‘‘इट्स ओके नो प्रौब्लम,’’ कह कर अनुराग आगे बढ़ गया.
उस दिन के बाद से ही उस की और अनुराग की थोड़ीबहुत बातचीत प्रारंभ हो गई. दोनों युवा थे, प्रथम मुलाकात के आकर्षण का ही असर था कि वे परस्पर धीरेधीरे एकदूसरे को पसंद करने लगे परंतु यह पसंद कब प्यार में परिवर्तित हो गई दोनों ही नहीं जान पाए.
प्रारंभिक बातचीत में ही एक दिन अनुराग ने उसे बताया कि वह पटना का रहने वाला है. घर में मातापिता के अलावा एक छोटी बहन है जो अभी स्कूल में है. पिता एक सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षक हैं. घर के आर्थिक हालात भी बहुत अच्छे नहीं हैं सो वह यहां बनारस में अपनी पढ़ाई का खर्च भी ट्यूशन कर के निकालता है.