हमारे संबंधों के बीच अनजाने ही अनचाही दूरियां व्याप्त होती जा रही थीं. मैं उस से विरक्त नहीं होना चाहता था, परंतु शायद इन दूरियों और न मिल पाने की मजबूरियों की वजह से मेघा मुझ से विरक्त होती जा रही थी. अब वह मेरे फोनकौल्स अटैंड नहीं करती थी, अकसर काट देती थी. कभी अटैंड करती तो उस की आवाज में बेरुखी तो नहीं, परंतु मधुरता भी नहीं होती. पूछने पर बताती, ‘‘फाइनल ऐग्जाम्स सिर पर हैं, पढ़ाई में व्यस्त रहती हूं, टैंशन रहती है.’’
उस का यह तर्क मेरी समझ से परे था. परीक्षाएं तो पहले भी आई थीं परंतु न तो कभी वह व्यस्त रहती थी, न टैंशन में. मैं जानता था, वह झूठ बोल रही थी. इस का कारण यह था कि बहुत बार जब मैं फोन करता तो उस का फोन व्यस्त होता. स्पष्ट था कि वह पढ़ाई में नहीं किसी से बातों में व्यस्त रहती थी, परंतु किस से...? यह पता करना मेरे लिए आसान न था. वह कालेज में पढ़ती थी. किसी भी लड़के से उसे प्यार हो सकता था. यह नामुमकिन नहीं था.
मैंस्वयं तनावग्रस्त हो गया. मेरी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ गया. औफिस के काम में मन न लगता. पत्नी द्वारा बताए गए कार्य भूल जाता. ऐसी तनावग्रस्त जिंदगी जीने का कोई मकसद नहीं था. मुझे कोई न कोई फैसला लेना ही था. बहुत दिनों से मेघा से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी. हम आपस में तय कर के ही मिला करते थे, परंतु इस बार मैं ने अचानक उस के घर जाने का निर्णय लिया.