उस दिन मन बड़ा उदास रहा. बीवी ने पूछा तो काम का बहाना बना दिया. रात लगभग 11 बजे मेघा का फोन आया. मैं ने नहीं उठाया, पता नहीं मैं गुस्से में था या उस से नफरत करने लगा था. उस ने अचानक फोन क्यों किया था, यह मैं अच्छी तरह समझ रहा था. मनदीप ने उसे मेरे उस के यहां आने की बात बताई होगी. उसे भय होगा कि मैं उस के बारे में सबकुछ जान गया हूं. परंतु उसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं थी. आज के बाद मुझे उस के किसी भी काम से कुछ लेनादेना नहीं था. मैं उस के जीवन में दखल देने वाला नहीं था.
मैं ने मोबाइल साइलैंट मोड पर रख दिया, ताकि घंटी की आवाज से मुझे परेशानी न हो और पत्नी के अनावश्यक सवालों से भी मैं बचा रहूं.
रात में नींद ठीक से तो नहीं आई परंतु इस बात का सुकून अवश्य था कि एक बोझ मेरे मन से उतर गया था.
सुबह देखा तो मेघा की 19 मिस्डकाल थीं. शायद बहुत बेचैन थी मुझ से बात करने के लिए. मेरे मन में जैसे खुशी का एक दरिया उमड़ आया हो. जो हमें दुख देता है, उसे दुखी देख कर हम सुख की अनुभूति करते हैं. यह स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है.
मेघा ने एक मैसेज भी किया था, ‘मैं आप से मिलना चाहती हूं.’ मैं ने इस का कोई जवाब नहीं दिया. मैं उसे उपेक्षित करना चाहता था. प्यार के मामलों में ऐसा ही होता है. एक बार मन उचट जाए तो मुश्किल से ही लगता है.