आभा का जीवन अपनी गति से चल रहा था कि अचानक कनु का फोन कर यह कहना कि कल सुबह तक दिल्ली न पहुंची तो मुझ से कभी मुलाकात न होगी. यह सुन कर उस का दिल बैठा जा रहा था. बच्चे भी न बोलने से पहले कुछ सोचते ही नहीं. कहीं कोई गलत कदम न उठा ले. जाने क्या चल रहा हो दिमाग में. वैसे भी बचपन से ही अधीर रही है.

उन की समझ में कुछ नहीं आया तो अमन और नेहा को बुला कर टिकट की व्यवस्था करने के लिए कहा.

अमन ने एतराज भी किया, ‘‘अब तुम्हारी उम्र हो गई है मां. अकेले सफर नहीं करने दूंगा.’’

‘‘अकेली कहां रहूंगी. सहयात्री तो होंगे न.’’

‘‘क्या मां तुम भी. और यह दीदी को क्या हुआ है? 30 की हो गई. अब भी अक्ल नहीं आई उसे? ऐसे अचानक बुला लिया. अब समझदार न हुई तो कब होगी?’’

‘‘बेटा तू 10 का था और वह 15 की,

जब तेरे पापा हमें छोड़ कर दूसरी दुनिया में

चले गए थे. पिता की लाड़ली उन के जाने का

गम न सह सकी थी. उस पर से प्रदीपजी का हमारे जीवन में आना उस के बरदाश्त के बाहर

हो गया.

‘‘पर मां उन्होंने आप की नौकरी लगवाई थी. हमारे पढ़ाईलिखाई का पूरा खर्च उठाया. एक पिता की तरह सहारा दिया था.’’

‘‘हां बेटा. वह तुम्हारे पिता के मित्र थे. स्वयं विधुर थे. उन्हें परिवार चाहिए था और तुम दोनों को पिता. समाज ऐसे रिश्तों की स्वीकृति नहीं देता तभी तो उन्होंने हम से विवाह कर लिया था मगर उसी दिन मैं ने कनु को खो दिया था.’’

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