‘नीरा मेरी छुट्टी मंजूर हो गई है. हम लोग अपनी ऐनिवर्सरी अमृतसर में मनाएंगे. कब से स्वर्ण मंदिर देखने की इच्छा थी, वह अब जा कर तुम्हारे साथ पूरी होगी. तुम अपनी पैकिंग शुरू कर दो. मैं ने होटल में बुकिंग करवा ली है. वहां दोनों ‘जलियांवाला बाग’ देखेंगे और वाघा बौर्डर की परेड. सुना है बहुत अच्छी होती है,’’ पति सजल ने पत्नी नीरा को अपनी बांहों के घेरे में समेट कर उस पर चुंबनों की बौछार कर दी.
दोनों पतिपत्नी बांहों में बांहें डाल कर
2 दिनों तक प्यार से अपनी ऐनिवर्सरी को ऐजौय करते रहे.
सजल ने नीरा को अमृतसर के बाजार से खूब सारी शौपिंग भी करवाई. स्वर्ण मंदिर की खूबसूरती और वाघा बौर्डर की परेड ने दोनों
की इस यात्रा को यादगार बना दिया. आज शाम को राजधानी से लोगों को दिल्ली के लिए निकलना था.
‘‘नीरा डियर, तुम सब पैकिंग कर लेना,’’ कहते हुए सजल अपनी औफिस की कौल में बिजी हो गए.
‘‘सब पैकिंग हो गई?’’
‘‘यस डियर.’’
‘‘चलो, नीचे लंच कर के निकलेंगे. टैक्सी आती ही होगी.’’
सजल मैनेजर के पास बिल पेमैंट कर रहे थे. नीरा टैक्सी को देखते ही जल्दबाजी से उस में जा कर बैठ गई.
जब सजल को आने में देर हुई तो वह बाहर आई और बोली, ‘‘कितनी देर लगाएंगे आप लोग. मेरा सारा समय बेकार हो रहा है.’’
‘‘मैनेजर 5 मिनट रुकने को बोल रहे हैं. रूम चैक कर रहे हैं. कोई सामान तो नहीं छूटा है? मेरा चार्जर रख लिया था?’’
‘‘हां… हां. मैं ने सबकुछ रख लिया है.
कुछ भी नहीं छूटा है, बस अब यहां से जल्दी चलिए.’’
‘‘इतनी परेशान और बेचैन क्यों हो रही हो? वे लोग रूम चैक कर के आ ही रहे होंगे.’’
एक वैरा मैनेजर को धीरेधीरे कुछ बता रहा था, फिर उस ने एक कागज मैनेजर के हाथों में पकड़ाया. सजल कुछ सम?ा नहीं पा रहे थे कि आखिर मामला क्या है.
मैनेजर ने जल्दीजल्दी बिल बना कर तैयार किया और उन के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘सर, यह ऐक्स्ट्रा पेमैंट आप को देनी होगी.’’
सजल ने बिल को गौर से पढ़ना शुरू किया.
‘‘तौलिया, आइरन, हेयर ड्रायर, बाथगाउन, हैंड टौवेल, सर, आप के रूम में ये चीजें मिसिंग हैं. चाहे तो आप ये चीजें लौटा दें या फिर इन की पेमैंट कर दें.’’
नीरा नाराज हो कर बोली, ‘‘हमें आप ने चोर सम?ा है क्या जो आप की चीजें हम ने
चुरा ली?’’
‘‘मु?ो आप के बैग की तलाशी लेनी होगी.’’
सजल पत्नी की इस आदत से अनजान थे. उन्होंने धीरे से कहा, ‘‘कोई बात नहीं, यदि सामान तुम ने रख भी लिया है तो निकाल कर दे दो बात खत्म हो जाएगी.’’
‘‘मैं सच कह रही हूं मैं ने कोई सामान
नहीं लिया है… ये वैरों ने ही इधरउधर किया
होगा और हम लोगों पर इलजाम लगा रहे हैं,’’ और वह जोरजोर से नाटक कर के आंसू बहाने लगी.
सजल पत्नी की ड्रामेबाजी देख कर नाराज हो कर बोले, ‘‘क्या शोर मचा रखा है… चाबी कहां है निकाल कर दो. इन लोगों को बैग खोल कर देखने दो.’’
नीरा बैग पकड़ कर खड़ी हो गई, ‘‘मेरा बैग कोई नहीं खोलेगा.’’
नीरा मन ही मन भगवान का जाप करने लगी कि हे भगवान सत्यनारायण भगवान की कथा करवाऊंगी, 16 सोमवार का व्रत करूंगी. हे भगवान तुम तो सर्वशक्तिमान हो, बैग से सारा सामान गायब कर दो.’’
पत्नी की बेवकूफी भरा व्यवहार सजल की सम?ा से बाहर हो रहा था. उन्होंने पत्नी के हाथ से पर्स ?ापट कर खींच लिया और उस में से चाबी निकाल कर बैग खोल दिया.
नीरा तेजी से बैग पकड़ कर बोली, ‘‘ठहरो,’’ मेरे बैग को कोई हाथ नहीं लगाएगा,
मैं दिखा रही हूं,’’ और वह अपने सामान से होटल के सामान को छिपाती हुई होशियारी से सामान दिखाने लगी. मगर होटल के मैनेजर की अनुभवी निगाहों से कुछ भी नहीं छिपा सका क्योंकि उन्हें तो ऐसे कस्टमर से जबतब निबटना पड़ता था.
पोल खुलती देख नीरा मुंह छिपा कर
टैक्सी में जा कर बैठ गई, परंतु सजल के लिए बेइज्जती सहन करना मुश्किल हो रहा था. उन
का चेहरा अपमान की कालिमा से बेरौनक हो गया था.
नीरा अपनी आंखें मूंद कर पति से बचने का प्रयास कर रही थी. सजल का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था. ड्राइवर की उपस्थिति के कारण वे बिलकुल मौन थे.
नीरा पुन: मन ही मन सारे देवीदेवताओं को मना रही थी कि हे हनुमानजी, मेरी इज्जत बचा लो, मैं तुम्हें क्व501 का प्रसाद चढ़ाऊंगी.
जब सजल अपने क्रोध को संयत कर चुके तो पत्नी से बोले, ‘‘तुम ?ाठ पर ?ाठ क्यों बोलती जा रही थी. तुम्हें आज वादा करना होगा कि इस तरह कभी किसी की चीज नहीं उठाओगी.’’
नीरा ने धीरे से अपना सिर हिला दिया. वह अपने बचपन में खो गई थी…
नीरा को अपनी सहेली विभा की पैंसिल उन्हें बहुत आकर्षित करती थी. बस मौका देख कर एक दिन पैंसिल चुरा ली. जब मां ने उस के पैंसिल बौक्स में नई पैंसिल देखी तो उस का कान पकड़ कर भगवान के सामने माफी मांगने को कहा.
नीरा को तो यह बड़ा सरल सा उपाय लगा. बस वह इस तरह से अकसर स्कूल से कुछ न कुछ उठा लाती और भगवान के सामने कान पकड़ कर माफी मांग लेती. अपराध क्षमा हो गया.
मां ने एक बार माला जपने को भी कहा तो वह माला के दानों को ?ाटपट अपनी उंगलियों से सरकाती, बस सब माफ.
धीरेधीरे दूसरों का सामान चुराना नीरा की आदत बन गई. वह जहां भी जाती मौका देख
कर चुपचाप सामान उठा कर अपने बैग के
हवाले कर लेती. अपने चेहरे के भोलेपन और होशियारी के चलते, कोई उस पर शक भी नहीं करता. मगर एक बार जब वह कक्षा 8 में थी, रश्मि के हाथ में 100-100 के करारे नोटों को देख कर उस की आंखें चमक उठीं. वह स्कूल ट्रिप में जाने के लिए रुपए जमा कराने के लिए लाई थी.
अब नीरा इस जुगत में लग गई कि वह उस के बैग से रुपए कैसे पार करे. रश्मि ने रुपए चोरी से बचाने के लिए पौकेट में रख लिए थे. अब तो उस के लिए रुपए गायब करना बाएं हाथ का खेल था. उस ने उस की जेब से ?ांकते रुपए चुरा लिए और अपनी किताब के कवर के अंदर रख कर निश्चिंत हो गई.