मीठी मेरी बांहों में थी. उस ने कोई विरोध नहीं किया. मैं जैसे ही और आगे बढ़ने लगा तो उस ने रोक दिया, ‘‘प्लीज सर, आज नहीं, फिर कभी जब आप चाहें,’’ कहती हुई उस ने खुद को अलग कर लिया और मैं हड़बड़ा कर संभल गया.
‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं, दिल्ली पहुंचते ही अपनी मां की तबीयत के बारे में फोन पर जरूर बताती रहना. अगर तुम कहो तो मैं सुबह तुम्हारे साथ दिल्ली चलूं,’’ अपनापन और आत्मीयता दर्शाते हुए मैं ने कहा.
‘‘नहीं सर, मैं सबकुछ मैनेज कर लूंगी. एंजियोप्लास्टी के बाद मैं किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर के गहने छुड़ा लूंगी. मैं नहीं चाहती कि मम्मी को गहनों के बारे में कुछ पता चले.’’
मैं उस के घर से निकला तो घर पहुंचतेपहुंचते 11 बज चुके थे. साधना हैरानपरेशान थी. मुझे देखते ही उस की सांस में सांस आई, ‘‘मेरी तो जान ही निकल गई थी और ऊपर से आप का मोबाइल स्विच औफ...’’
‘‘और फिर जमाना भी ठीक नहीं है,’’ उस के आगे कुछ और बोलने से पहले मैं ने कहा तो वह मुसकरा पड़ी.
‘‘हां, सच ही तो कहती हूं कि जमाना ठीक नहीं है. चलो, अब जल्दी से चेंज करो, मैं खाना गरम करती हूं,’’ कहती हुई वह रसोई में चली गई.
उस ने खाना लगा दिया. लेकिन मेरा मन खाने में नहीं, बल्कि उस नीली आंखों वाली में लगा था. आज कितना अच्छा मौका हाथ से फिसल गया. मुझे कोफ्त हुई. चलो, फिर कभी सही. उस ने औफर तो कर ही दिया है, सोच कर मन में गुदगुदी सी हो गई.
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