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तन्वी दीदी के इस रवैए से हैरान थी. आखिर दीदी को उस फ्लैट में रहने वालों से क्या लेनादेना है, इतनी दिलचस्पी क्यों है. दीदी जैसे लोग ही सच्चीझूठी बातों में मिर्चमसाला लगा कर अफवाहें फैलाते हैं. दीदी का तो यह नया रूप देखने को मिल रहा था उस को. वह सोचने लगी कि अपने घर पर ध्यान देने के बदले दूसरों के घर में ताकझांक करना क्या दीदी को शोभा देता है…तन्वी अपने विचारों में खोई हुई थी कि तभी सुधा उस के पास आई और बोली, “तन्वी, नाश्ते के लिए शक्करपारे बना लेते हैं. चाय के साथ अच्छे लगते है खाने में.”

“हां दीदी, सही कह रही हो. तुम मुझे सब सामान दे दो. में शक्करपारे बनाने की तैयारी करती हूं.”

सुधा सब सामान तन्वी को दे रही थी, तभी किचन में पिंटू आया और बोला, “मम्मी, वह तोंदू का फ़ोन आया है, मैं ने फ़ोन होल्ड पर रखा है. जल्दी चलो बात करने.”

आटा गूंधतेगूंधते तन्वी पलटी और बोली, “ये तोंदू कौन है?”

“अरे, वही टकलू अंकल. उसी को तोंदू कहते हैं हम,” पिंटू ने कहा, “मम्मी, तुम जल्दी आओ,” यह कह कर वह चला गया.

 

तन्वी ने सुधा से पूछा, “दीदी, ये तोंदू, टकलू किस के नाम रखे हैं तुम ने?”

इस पर सुधा ने हंसते हुए कहा, “वही बुद्धूचरण, पाठक अंकल, रसिक बलमा.” और जोरजोर से वह हंसने लगी.

उस की बातें सुन कर तन्वी को भी हंसी आ गई. फिर वह बोली, “क्या दीदी, तुम ने अपने बौयफ्रेंड के क्याक्या फनी नाम रखे हैं.” यह सुनकर सुधा खिलखिला कर हंसने लगी और बोली, “आती हूं बात कर के.”

तन्वी अपने बेटे आयुष और बेटी पूर्वी से बात करना चाहती थी लेकिन टाइम ही नहीं मिल पा रहा था. पूरे दिन वह दीदी के साथ किचन में हाथ बंटाती थी, फिर कोई नाश्ता बनाना हो तो दीदी उस पर छोड़ कर चली जातीं और आधा घंटा, पौने घंटे के बाद आती. कभीकभी नहीं आती और सोफे पर आराम करती रहती.

वह अभी मोबाइल पर नंबर डायल कर रही थी, तभी उस ने देखा दीदी ने धीरे से पिंटू से कुछ कहा और पिंटू चप्पल पहन कर तेजी से घर से बाहर चला गया. दसबारह मिनट बाद वह वापस आया और दीदी को इशारे से कुछ कहा. जवाब में दीदी ने सिर हिलाया और ओके कहा.

दीदी के घर का माहौल तन्वी को अजीब लग रहा था. क्या खिचड़ी पक रही थी, उस की समझ के बाहर था. सच पूछो तो वह जानना भी नहीं चाहती थी. इतने दिनों से वह जो कुछ भी देख व सुन रही थी, जो कोई भी देखता या सुनता वह यही कहता कि दीदी के घर का माहौल बहुत ख़राब है, किसी चीज में अनुशासन नहीं था.

तन्वी आयुष को फ़ोन लगा रही थी लेकिन लग नहीं रहा था. शायद नैटवर्क की प्रौब्लम होगी, थोड़ी देर बाद फ़ोन लगाऊंगी, यह सोच कर तन्वी ने मोबाइल टेबल पर रख दिया. उस ने दीदी की तरफ देखा, वे अभी भी पाठक अंकल से बात करने में व्यस्त थीं. काफी देर तक उन की बातें चलती रहीं. पाठक अंकल से एकडेढ़ घंटा बात करने के बाद फाइनली दीदी ने बाय कहा. और तन्वी की तरफ देख कर मुसकरा दी.

तन्वी ने सुधा से पूछ लिया, “दीदी, इतनी देर तक क्याक्या बातें करती हो? चलो, थोड़ी तो रोमैंटिक बातें होती होंगी, मान लिया लेकिन और कौन सी बातें करते हो आप लोग? आप तो सुबह से ले कर रात के सोने तक बात करती हो. हर घंटे तुम चैटिंग करती हो. पूरे दिन में 5 से 6 बार फ़ोन पर बात होती है, इसीलिए पूछ रही हूं.”

इस पर सुधा बोली, “अरे, तू नहीं जानती इस बुद्धूचरण को, पता नहीं किसी और औरत से चक्कर न चला ले, इसलिए पूरे दिन इसी बहाने उस पर निगरानी रखती हूं. उस से घर की सब बातें पूछती रहती हूं. उस से उस की दिनभर की दिनचर्या का पता चल जाता है. वे भी मुझ से छोटी से छोटी बातें शेयर करते हैं- कितना बैंक बैलेंस है, उन की बहन को राखी पर क्या गिफ्ट दिया, वे कहां जाने वाले हैं, कब आएंगे… सब बातें मुझे मालूम होती हैं, यहां तक कि वे मुझ से सलाह भी लेते हैं.

“मैं ने अपनी उंगलियों पर उन को नचा रखा है. मैं फ़ोन करूं और वे फ़ोन न उठाएं, इतनी मजाल नहीं है उन की. इसीलिए उन की पलपल की खबर रखती हूं. वह कहते हैं न, बंदर बूढ़ा हो जाए तो क्या, गुलाटी खाना नहीं भूलता. उन को लगता है, मैं उन की कितनी परवा करती हूं, उन से कितना प्रेम करती हूं…”

“लेकिन यह तो एक दिखावा है तुम्हारा, है न दीदी?”   तन्वी तपाक से बोली.

“हूँ,” और सुधा ने सहमति में अपना सिर हिलाया.

तन्वी ने फिर पूछा, “उन की फैमिली नहीं है क्या?”

“उन की फैमिली है,” सुधा ने जवाब दिया, “2 बच्चे हैं, दोनों विदेश में रहते हैं. उन की वाइफ वेल एडुकेटेड हैं और दिखने में भी बहुत सूंदर हैं…”

सुधा पाठक अंकल के बारे में बता रही थी, तभी निशा कमरे में अपने मोबाइल का चार्जर ढूंढती हुई आ गई. उस को देखते ही सुधा ने निशा से पूछा, “अरे, तूने लिस्ट बना ली है न, तुझे बर्थडे पर क्याक्या चाहिए. थोड़ा महंगा ही पसंद किया है न, तूने? और सुन, पाठक अंकल को फ़ोन कर के लिस्ट का सामान लिखवा दे. या फिर व्हाट्सऐप पर लिस्ट भेज दे.”

इस पर निशा ने कहा, “यह आप जानें, कितनी बार मुझे बोल चुकी हो. मैं ने लिस्ट बना ली है, पाठक अंकल को ही फ़ोन करने जा रही थी. तभी पता चला मोबाइल में चार्जिंग ही नहीं है. मैं फ़ोन चार्ज होते ही उन को कौल कर लूंगी. तुम उस की चिंता मत करो.”

“हां, वह तो सब ठीक है लेकिन थोड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करना उन से. थोड़ी लच्छेदार समझ, गईं न,” सुधा ने निशा से कहा.

निशा ने कहा, “हां मम्मी, सब मालूम है मुझे, कैसे बात करनी है उन से. हर बार तो बताती हो यह बोलना, वह बोलना. कोई पहली बार थोड़ी न लिस्ट दे रही हूं.

निशा और सुधा की बातें चल ही रही थीं, तभी सुधा के फ़ोन की रिंगटोन बज उठी. सुधा ने फ़ोन उठाया और बोली, “समीर, 5 मिनट रुको न, प्लीज, मैं थोड़ा बिज़ी हूं. आई कौल यू लैटर.” यह कह कर सुधा ने फ़ोन रख दिया. उस ने निशा को कुछ समझाया. फिर निशा चली गई. फिर सुधा ने समीर से करीब 45 मिनट बात की. बात करतेकरते बीच में हंस भी रही थी.

तन्वी सोच रही थी की यह भी कोई बौय फ्रैंड ही होगा दीदी का. तभी तो दूसरे कमरे में जा कर बात कर रही हैं, वह भी इतनी देर से.

समीर से बात कर के सुधा फिर से तन्वी के पास आ कर बैठ गई. बहुत खुश लग रही थी. तन्वी से रहा नहीं गया और उस ने सुधा से पूछ लिया, “समीर भी आप का बौयफ्रैंड है, दीदी?”

“हां रे, मुझ पर जान छिड़कता है. तुझे पता है, वह मेरे लिए ब्रैंडेड हैंडबैग ला रहा है. मुझ से पूछ रहा था कि किस कलर का लाऊं. और भी बहुत सारे गिफ्ट ला रहा है मेरे लिए. मैं ने उस से एक ब्रैंडेड टीशर्ट भी मंगवाई है जिस पर हार्ट बना हुआ हो. वह बोला ले कर आऊंगा,” ये बातें सुधा इतराइतरा कर बता रही थी जैसे उस ने कोई महान काम किया हो, जिस के लिए उस को पुरस्कार मिल रहा हो.

“कौन है ये समीर और क्या करता है?” तन्वी ने पूछा.

“हमारी ही बिल्डिंग में रहता है. मैनेजर की पोस्ट पर काम करता है. उस की सैलरी भी बहुत अच्छी है, दिल खोल कर खर्च करता है. मेरे बिना वह रह नहीं सकता,” सुधा ने कहा.

तन्वी ने पूछा, “विवाहित है या अविवाहित?”

 

इस पर सुधा ने कहा, “विवाहित है. उस के 2 बच्चे भी हैं. मेरे से दसग्यारह साल छोटा है.

 

“उस की वाइफ जौब करती है या हाउसवाइफ है?” तन्वी ने पूछा.

सुधा ने कहा, “वह हाउसवाइफ है, काव्या नाम है उस का. पढ़ीलिखी है. और तो और, सूंदर भी बहुत है, बहुत मौडर्न है.

तन्वी बोली, “अजीब इत्तफाक है न, दीदी. आप के दोनों बौयफ्रैंड की वाइफ पढ़ीलिखी और सुंदर हैं. समीर तुम से दसग्यारह साल छोटा है. उस की उम्र करीब 34 वर्ष है. जवान लड़का है. भले ही उस की शादी हो गई हो लेकिन उस में मैच्योरिटी की कमी है. इस उम्र के लड़के घूमनाफिरना और मौजमस्ती में विश्वास रखते हैं. ताज्जुब तो मुझे पाठक अंकल पर हो रहा है. उन की तकरीबन 35 साल की गृहस्थी है. अच्छा भरापूरा परिवार है. उन की पत्नी भी सूंदर और पढीलिखी हैं. आप दिखने में एकदम साधारण हो. उन की उम्र भी बड़ी है. जिंदगी का काफी अनुभव रहा होगा. काफी मईच्योर भी होंगे. फिर उन को तुम जैसी साधारण दिखने वाली लड़की से अफेयर करने की जरूरत क्यों पड़ी.

“जाहिर सी बात है कि उन की पत्नी सुशील और कुशल गृहिणी होंगी. अच्छी पत्नी न हो, तो इतनी लंबी शादी टिकना नामुमकिन है. मैं तुम से दावे के साथ कह सकती हूं कि पाठक अंकल की जिंदगी में आने वाली तुम पहली औरत नहीं हो. आप से पहले भी उन के कई अफेयर रहे होंगे. तभी तो सिर्फ दोतीन मुलाकातों में ही तुम्हारा अफेयर हो गया. जैसे वे तुम्हारे पहले बौयफ्रैंड नहीं हैं क्योंकि इस के पहले भी तुम्हारे कई बौयफ्रैंड रह चुके है, वैसे ही तुम उन की पहली प्रेमिका नहीं हो सकतीं.”

“यह तू क्या कह रही है?”   सुधा ने तमक के कहा.

इस पर तन्वी बोली, “मैं सही कह रही हूं, दीदी. दोनों की सुंदर पढ़ीलिखी पत्नी होने के बावजूद वर्षों से उन्होंने तुम्हारे साथ चक्कर चला रखा है, अपनी वाइफ को धोखा दे रहे हैं. समीर और पाठक अंकल चरित्रहीन पुरुष हैं या यों कहूं, ठरकी हैं, तो गलत नहीं होगा.”

“इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि न तो मुझे उन दोनों से प्रेम है और न ही मुझे शादी करनी है. इतना तो मैं भी जानती हूं की उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता. मुझे तो सिर्फ गिफ्ट और पैसों से मतलब है, इस से जयादा कुछ नहीं. मूवी देखने को मिल जाती है, बड़ेबड़े होटलों में डिनर, लंच करने को मिलता है, ब्रैंडेड कपड़े और जो चाहो वह मिल जाता है. मुझे ऐसी ही ऐशोआराम की जिंदगी चाहिए थी.

“इतना ही नहीं, मुझे जितने पैसे चाहिए, मेरे अकाउंट में आ जाते हैं, यहां तक कि जब मैं मम्मीपापा से मिलने आती हूं तो कैब के किराए से ले कर आनेजाने का टिकट भी अंकल कर के देते हैं. मैं सिर्फ एक बार बोलती हूं और सब काम हो जाता है. मेरी चिकनीचुपड़ी बातों में पाठक अंकल आ जाते हैं. थोड़ी झूठी तारीफ कर देती हूं, बस. तारीफ सुन कर वे सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं. मैं उन को आसानी से मूर्ख बना देती हूं. और मेरा काम हो जाता है. उन को लगता है कि सचमुच वे महान इंसान हैं,” यह सब कह कर सुधा हंसने लगी.

तन्वी और सुधा बातें कर रहे थे, तभी डोरबेल बजी. सुधा ने उठ कर दरवाजा खोला, सामने खड़ी लेडी ने जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया, “यह सिखाया है तुम ने अपने बच्चों को कि किसी के भी साथ मारपीट करो. और बड़ों के साथ बदतमीजी से बात करो. उन की इंसल्ट करो.” वह औरत लगातार बोले जा रही थी.

सुधा और तन्वी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. तभी सुधा ने चिल्ला कर कहा, “एक मिनट चुप हो जाओ तुम. कौन हो तुम और मेरे यहां आ कर झगड़ा क्यों कर रही हो?”

इस पर वह महिला बोली, “ज्यादा अनजान बनने का नाटक मत करो. अपने बच्चों की करतूतें नहीं जानती हो क्या? यहां सब जानते हैं, सब के साथ वे झगड़ा करते हैं. अभी मेरे बच्चे के साथ मारपीट की है. उसे साइकिल से धक्का दे दिया. वह नीचे गिर गया. और उस के सिर से खून बहने लगा. मेरे पति उस को डाक्टर के पास ले कर गए हैं. तुम अपने बच्चों को संभालो, वरना अच्छा नहीं होगा. अगली बार उन्होंने ऐसा किया तो मैं उन की हड्डीपसली तोड़ दूंगी.”   सुधा गुस्से में बोली, “तुम्हारे बच्चे ने ही कुछ किया होगा. मेरे बच्चे ऐसे नहीं हैं. तुम झूठ बोल रही हो. हम लोग बहुत अच्छे घर से हैं, तुम्हारी तरह नहीं हैं.”

वह महिला गुस्से से आगबबूला हो गई, “हमारी तरह नहीं हो, इस का क्या मतलब है तुम्हारा? तू कैसी औरत है, पूरी सोसायटी जानती है. ज्यादा सतीसावित्री होने का ढोंग मत कर. और तेरे बच्चे कितनी बिगड़ैल औलादें हैं, पूरी दुनिया जानती है. तेरी जो शानोशौकत है, उस का पूरा राज भी मुझ को पता है, इसलिए मेरे मुंह लगने की गलती मत करना वरना पछताएगी.”

इतना सुनते ही सुधा अपना आपा खो बैठी. उस ने उस महिला को जोर से धक्का दिया. इस पर उस महिला ने सुधा के मुंह पर जोर से एक थप्पड़ मारा. और बाल पकड़ कर दीवार की तरफ धक्का दिया और जोर से एक लात मारी. सुधा और वह महिला लगातार मारामारी कर रही थीं. दोनों में से कोई भी रुकने का नाम नहीं ले रहा था. बिल्डिंग के बाकी लोग इन को रोकने के बजाय लड़ाई का मजा ले रहे थे. और, उस महिला को और सुधा को उकसा रहे थे. उन में से एक आंटी बोल रही थीं, ‘मार और मार. इस ने और इस के बच्चों ने नाटक मचा रखा है.’ तन्वी को समझ नहीं आ रहा था कि इन की लड़ाई कैसे रोके. बीचबचाव करते हुए यदि उस को एकाध थप्पड़ या लात पड़ गई तो? उन के बीच घमासान चालू था. उस ने वहीं खड़ी एक महिला को मदद के लिए इशारा किया. और बड़ी मुश्किल से उन का झगड़ा रोका.

जातेजाते वह महिला सुधा से बोली, “तेरे को तो मैं देख लूंगी. तेरे को इतनी आसानी से छोडूंगी नहीं मैं. तेरे घर मैं तेरे बच्चों की शिकायत ले कर आई थी. और तूने मेरे साथ मारपीट की. तेरी ईंट से ईंट बजा दूंगी. वह औरत सुधा को धमकी दे कर चली गई.

सुधा और तन्वी घर में आ गए. सुधा कुछ लंगड़ा कर चल रही थी. उस औरत ने लात जोर से मारी थी. उस को लंगड़ाता देख कर तन्वी बोली, “क्या हुआ, दीदी?”

सुधा ने कहा, “अरे, उस औरत ने लात बहुत जोर से मारी थी. इसलिए थोड़ा चलने में दिक्कत हो रही है, बस.”

वह औरत बहुत हट्टीकट्टी थी. लात तो जोर से ही पड़ी होगी. यह सोच कर न चाहते हुए भी तन्वी अपनी हंसी रोक न पाई. और हंस पड़ी. उस ने सुधा से कहा, “दीदी, यह लड़ाईझगड़ा, मारपीट करना क्या आप को शोभा देता है? आप के बच्चे आप का ही अनुसरण करेंगे.”

इतने में पिंटू और निशा घर पर आ गए. “कहां रह गए थे तुम लोग?” सुधा ने बच्चों से पूछा.

पिंटू बोला, “हम तो घर ही आ रहे थे लेकिन जब आप को उन आंटी के साथ मारपीट करते देखा तो हम लोग डर कर भाग गए. कहीं वे आंटी हमारी भी पिटाई न कर दें.”

“ऐसे डरने की जरूरत नहीं है. अगली बार वह झगड़ा करे तो उस की जम कर पिटाई करना. मैं देख लूंगी वह क्या करती है. अभी तुम हाथपैर धो कर कपड़े बदल लो,” सुधा बोली.

बच्चों ने स्वीकृति में सिर हिलाया और चले गए. अब तन्वी ने सुधा से कहा, “दीदी, यह क्या उलटासीधा पाठ बच्चों को सिखा रही हो? उन्हें लड़ाईझगड़ा करने से रोकने के बदले आप उन्हें उकसा रही हो. और वैसे भी, उन की हमेशा, चाहे स्कूल हो या तुम्हारी सोसायटी, शिकायतें आती ही रहती हैं. अभी तो वे बच्चे हैं लेकिन यह यदि उन की आदत ही बन गई तो बड़े होने के बाद भी उन का लड़ाईझगड़ा करना चालू रहेगा.”

इस पर सुधा बोली, “यह अपना ज्ञान अपने पास रख. मुझे मालूम है बच्चों की परवरिश कैसे करना है और उन को क्या सिखाना है और क्या नहीं.”

तन्वी सोचने लगी, अंधे के आगे रोना और अपने नैन खोना. इन को कुछ भी समझाना बेकार ही होगा. उस ने चुप रहना उचित समझा.

तन्वी को सुधा के घर पर अच्छा नहीं लग रहा था. उन के घर का वातावरण भी उसे ठीक नहीं लग रहा था. वह तो सुधा के पास यह सोच कर आई थी कि कुछ दिन दीदी के साथ रहेगी तो थोड़ा चेंज हो जाएगा. और फिर बच्चे भी घर पर नहीं थे. उस ने सोचा कि अब उसे अपने घर चले जाना चाहिए. वैसे भी, जब से वह आई है, दीदी औपचारिकता ही अपना रही है, अपनेपन का तो कोई नामोनिशान ही नजर नहीं आ रहा. उस को काम में बिजी कर देती है और फिर मोबाइल पर घंटों समीर, पाठक अंकल और न जाने किसकिस से बातें करती रहती है. और तो और, सुबह दूधब्रेड लेने जाती है तो किसी बाइक वाले पर फ़िदा हो गई. पता नहीं और कितने गुल खिलाएगी.

तन्वी ने अपना पहले वाला टिकट रद्द कर दिया. उस के हिसाब से उसे और 8 दिन रुकना पड़ता. वह जल्दी से जल्दी दीदी के घर से जाना चाहती थी. इसलिए अगले दिन के लिए टिकट बुक करने लगी. लेकिन अगले दिन का टिकट उपलब्ध नहीं था. इसलिए उस ने परसों का टिकट बुक कर लिया. और यह बताने के लिए वह सुधा के पास जा रही थी, तभी निशा ने सुधा को आवाज लगाई और कहा, “मम्मी, आप के लिए फ़ोन है.”

“किस का फ़ोन है?” सुधा ने बाथरूम के अंदर से ही पूछा.

“समीर अंकल का,” निशा ने कहा. इतने में मोबाइल पर गेम खेलते हुए पिंटू ने हंसते हुए कहा, “समीर हवा का झोंका” तो  निशा भी हंसने लगी. दोनों ने एकदूसरे के हाथ पर हाथ मारा और फिर और जोरजोर से हंसने लगे.

तन्वी खड़े रह कर यह सब चुपचाप देख रही थी. दीदी तो अब समीर से बात करेंगी, यह सोच कर वह अपने कमरे में जाने लगी. फिर उस को खयाल आया कि कल मार्केट भी जा कर बच्चों के लिए गिफ्ट लेने हैं, पैकिंग भी करनी है. दीदी को टिकट के बारे में बताना भी जरूरी है. उस को सामने देख कर दीदी समीर से जल्दी बात कर के भी फ़ोन रख सकती हैं, नहीं तो डेढ़दो घंटे करेंगी.

सुधा समीर से बात कर रही थी. तन्वी को उन की बातें सुनने में कोई रुचि नहीं थी. बेमन से वहां बैठी थी वह. तभी सुधा ने समीर से जो कुछ कहा वह सुन कर तन्वी चौँक गई. वह समीर से कह रही थी कि अभी हम मार्केट गए थे, व हां मैं ने तुम्हारी पत्नी काव्या को किसी अनजान आदमी से बातें करते देखा. उस के साथ हंसहंस कर बातें कर रही थी. हम ने साड़ी शौपिंग कर ली लेकिन फिर भी वह वहीं खड़े रह कर बातें करती रही. मेरी बहन भी साथ में थी, इसलिए ज्यादा देर मैं रुक न सकी. वे दोनों क्या बातें कर रहे थे, इस का पता नहीं चल सका. हम लोग घर आए, तब तक वह वहीं थी. अभी घर आई है कि नहीं, यह पता नहीं. जरूर उस का बौयफ्रैंड ही होगा. वह तो आज मैं ने इत्तफाक से देख लिया. पता नहीं और कितनी बार मिली होगी उस से.

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