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अंजलि अपनी विधवा मां के साथ 3 कमरों के फ्लैट में रहती थी. उस का इकलौता बड़ा भाई अमेरिका में 5 साल पहले जा कर बस गया था. मां को बेसहारा हालत में न छोड़ने के इरादे से उस ने शादी न करने का फैसला किया था.

महिमा उस से शाम को मिलने आएगी, फोन पर सौरभ से यह जानकर उसे कुछ हैरानी तो हुई, पर आत्मविश्वास का स्तर ऊंचा होने के कारण वह परेशान या चिंतित नहीं हुई.

उस शाम अंजलि और महिमा का पहली बार आमनासामना हुआ. दोनों ही औसत से ज्यादा खूबसूरत स्त्रियां थीं. महिमा खुल कर मुसकरा रही थी और अंजलि से गले लग कर मिली. दूसरी तरफ अंजलि जरा गंभीर बनी उसे आंखों से नापतोल ज्यादा रही थी.

कुछ देर उन के बीच औपचारिक सी बातें हुईं. उम्र में बड़ी अंजलि ने ही ज्यादा सवाल पूछे और महिमा प्रसन्न अंदाज में उन के जवाब देती रही.

फिर महिमा उठ कर रसोई में पहुंच गई. वहां अंजलि की मां सावित्री उन सब के लिए चायनाश्ता तैयार कर रही थीं.

काम में सावित्री का हाथ बंटाने के साथसाथ महिमा उन से उन के सुखदुख की ढेर सारी बातें भी करती जा रही थी. शुरू में खिंचाव सा महसूस कर रही सावित्री, महिमा के अपनत्व और व्यवहार के कारण जल्दी खुल कर उस से हंसनेबोलने लगीं.

 

करीब 20 मिनट बाद गरमागरम पकौड़े प्लेट

में रख कर महिमा अकेली ड्राइंगरूम में लौटी, तो सौरभ और अंजलि ?ाटके से चुप हो गए.

प्लेट को मेज पर रखने के बाद महिमा ने अपना पर्र्स खोल कर गिफ्ट पेपर में लिपटा छोटा सा बौक्स निकाला और उसे अंजलि को पकड़ाते हुए बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘दीदी, आप भी इन के दिल में रहती हैं और इस कारण मेरी जिंदगी में भी आप की जगह खास हो गई है. हमारे संबंध मधुर रहें, इस कामना के साथ यह छोटा सा गिफ्ट मैं आप को दे रही हूं.’’

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