‘‘मम्मीपापा, आप यहां कैसे? कैसे हैं आप?’’ वेदिका मम्मी से लिपट गई. सालों के जमा गिलेशिकवे पानी बन कर बह गए.
एक पत्रिका में वेदिका का इंटरव्यू छपा था, जिसे पढ़ कर उन्हें वेदिका का पता चला और वे तुरंत उस से मिलने चले आए. कली को सीने से लगाते हुए दोनों को अपने किए पर पछतावा था.
पापा ने कहा, ‘‘बेटा, उस कठिन समय में हमें तुम्हारा साथ देना चाहिए था.’’
वेदिका तो उन का साथ पा कर सारे दुख भूल चुकी थी. कली के साथ वे भी इतने रम गए कि पुरानी बातें याद करने का उन्हें भी कहां होश था? देर रात तक वे उस के साथ खेलते रहे.
रात में मम्मी ने बताया...
वेदिका के जाने के बाद विदित के मातापिता उसे ढूंढ़ते हुए उन के घर पहुचे थे. कई दिनों तक उन के घर के आसपास लोग टोह लेते रहे. कई बार फोन पर उन्हें धमकियां भी मिलीं. पुलिस भी चक्कर लगाती रही. विदित के भाई ने तो यहां तक कहा कि वेदिका के साथ उन के घर का होने वाला वारिस भी गायब है... वे उन्हें छोड़ेंगे नहीं. हमें तो लगा कि उन लोगों ने तुम्हें कुछ कर दिया है... तुम्हारा कोई सुराग ही नहीं लगा... तुम्हें ढूंढ़ते भी तो कैसे?
2-3 दिन वहां रुक कर मम्मीपापा वापस जाने लगे. वेदिका की तरक्की से वे संतुष्ट थे. कली के प्यार से सराबोर. उन्होंने वेदिका से जल्दी आने का वादा लिया. विदित के मम्मीपापा को कहीं वेदिका के बारे में न पता चले, इस आशंका से वे भयभीत थे.
वेदिका ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करो. अब मेरी अपनी पहचान है, इसलिए मु?ो नुकसान पहुंचाना आसान नहीं होगा उन के लिए... मैं जल्दी ही वहां जाऊंगी.’’