‘‘मां,   मां, कहां चली गईं?’’?  रेणु की आवाज सुन कर मैं

पीछे मुड़ी.

‘‘तो यहां हैं आप. सारे घर में ढूंढ़ रही हूं और आप हैं कि यहां अंधेरे कमरे में अकेली बैठी हैं. अब तक तैयार भी नहीं हुईं. हद हो गई. हर साल आज के दिन आप के दिल पर न जाने क्यों इतनी उदासी छा जाती है,’’ रेणु अपनी धुन में बोलती जा रही थी.

आज पहली अप्रैल है. आज भला मैं

कैसे खुश रह सकती हूं? आज मेरी मृत बेटी प्रिया का जन्मदिन है. 25 वर्ष पूर्व आज ही के दिन मैं ने ‘प्रियाज हैप्पी होम’ की स्थापना की थी. आज उस की रजत जयंती का समारोह आयोजित किया गया है.

‘‘चलिए, जल्दी तैयार हो जाइए. पापा सीधे समारोह में ही पहुंच रहे हैं. अनाथाश्रम

से 2-3 बार फोन आ चुका है कि हम घर से निकले हैं या नहीं.’’

‘‘कितनी बार कहा है तुम से कि अनाथाश्रम मत कहा करो. वह भी तो अपना ही घर है, प्रिया की याद में बनाया हुआ छोटा सा आशियाना,’’ मैं खीज उठी.

‘‘अच्छा, सौरी. अब जल्दी तैयार हो जाइए. आकाश भैया भी आ गए.’’

हैप्पी होम की सहायक संचालिका

रुचि तिवारी मुझे अपने साथ स्टेज पर ले गई.

समारोह की शुरुआत मुख्य अतिथि ने दीप प्रज्वलित कर के की. प्रिया की बड़ी तसवीर पर माला पहनाते वक्त मेरी आंखें नम हो गईं.

समारोह के समापन से पहले मुझ से दो शब्द

कहने के लिए कहा गया, तो मैं ने सब का अभिवादन करने के पश्चात एक संक्षिप्त सा भाषण दिया, ‘देवियो और सज्जनो, 25 वर्ष पूर्व मैं ने जब अपने पति की सहमति से इस हैप्पी होम की नींव रख कर एक छोटा सा कदम उठाया था तब मैं ने सोचा भी न था कि इस राह पर चलतेचलते इतने लोगों का साथ मुझे मिलेगा और कारवां बनता जाएगा. आज हमारे हैप्पी होम में अलगअलग आयु के 500 से भी अधिक बच्चे हैं. 3 छात्राएं स्कालरशिप हासिल कर के डाक्टर बन चुकी हैं. 10 से अधिक छात्र इंजीनियर बन गए हैं और अच्छे पदों पर नौकरी कर रहे हैं. इस से अधिक गर्व की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है? हैप्पी होम में पलने वाले हर बच्चे के होंठों पर मुसकान हमेशा बनी रहे, हमारी यही कोशिश आगे भी जारी रहेगी. धन्यवाद.’

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