सुबह की हलकी धूप में बैठी मित्रा  नई आई पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं कि तभी शालिनी की तेज आवाज ने उन्हें चौंका दिया.

‘‘ममा...ममा...आप कहां हो?’’

‘‘ऊपर छत पर हूं. यहीं आ जाओ.’’

सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’

शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.

‘‘बोलो, तुम्हें कहना क्या है?’’

पता नहीं क्या हुआ कि शालिनी एकदम चुप हो गई. उस के स्वभाव के विपरीत उस का आचरण देख सुमित्रा अचंभित थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि कौन सी ऐसी बात है जिसे बोलने के लिए इस वाचाल लड़की को हिम्मत जुटानी पड़ रही है. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शालिनी ने खुद ही बातें शुरू कीं.

‘‘ममा, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लेकिन क्या करूं... आप को धोखे में भी नहीं रख सकती. इसलिए आप को बता रही हूं कि मैं ने और अतुल ने इसी महीने शादी करने का फैसला कर लिया है.’’

बेटी की बातें सुन कर सुमित्रा बुरी तरह चौंक गईं, मानो अचानक ही कोई दहकता अंगारा उन के पांव तले आ गया हो.

‘‘क्या...क्या कह रही हो तुम. यह कैसा मजाक है?’’

‘‘नहीं ममा...आई एम नौट जोकिंग. आई एम सीरियस.’’

‘‘शादीब्याह को क्या तुम ने गुड्डेगुडि़यों का खेल समझ रखा है जिस से चाहोगी जब चाहोगी झट से जयमाला डलवा दूंगी. सच पूछो तो इस में तुम्हारी भी क्या गलती है. समीर ने मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हर गलतसही मांगों को पूरा कर के तुम्हें इतना स्वार्थी और उद्दंड बना दिया है कि आज तुम्हेें मातापिता की भावनाओं का भी खयाल नहीं रहा.’’

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