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‘‘तुम ने जो टाइम दिया है शाम 6 बजे उसी समय आऊंगा.’ रोली ने मोबाइल स्पीकर पर रखा था. अरुणा को डाक्टर अमन की आवाज जानीपहचानी लगी. तब तक होली मोबाइल पर बात कर चुकी थी और अरुणा को देख रही थी ‘‘क्या सोच रही हो मां?’’ रोली बोली ‘‘कुछ नहीं,’’ अरुणा ने कहा.‘‘बता भी दो,’’ रोली बोली‘‘तु   झे जो डाक्टरेट करवा रहे हैं उन का पूरा नाम क्या है?’’ अरुणा ने पूछा ‘‘क्यों क्या हुआ?’’ रोली बोली.

‘‘मेरे कालेज में भी एक लड़का था अमन. मेरी ही क्लास में था,’’ अरुणा ने बताया. फिर दिल की धड़कन बढ़ गई कि कहीं यह वही अमन तो नहीं जो पढ़ने में कमजोर था उस के पीछे पागल था. वह डाक्टरेट कर के कालेज में प्रोफैसर बन गया हो. नहींनहीं यह वह नहीं हो सकता. यह दूसरा होगा. कितना पीछे पड़ा था शादी के लिए. दोनों ही एकदूसरे को पसंद भी करते थे और शादी भी करना चाहते थे. लेकिन  बाऊजी नहीं माने थे. कोई नौकरीधंधा नहीं है. घर में पैसा है तो क्या हुआ. अमन के मातापिता ने बाउजी को सम   झाया था. पर बाउजी नहीं माने थे. लड़का कुछ करता हो तो शादी भी कर देते. जातपात में भले विश्वास नहीं हो.

अमन के मातापिता ने भी सम   झाया था कि अरुणा को सुखी रखेंगे. लेकिन कुछ नहीं हुआ. अरुणा भी मातापिता से विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई ‘‘मां क्या सोचने लगी हो?’’ रोली बोली.

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर अरुणा लंच की तैयारी में लग गई. ‘शाम को डिनर के लिए रोली बाहर जाएगी इसलिए लंच हलकाफुलका ही बना लेती,’ यही सोच कर उस ने धुली मूंग की दालचावल धो कर रख दिए. मटर, गाजर, गोभी, आलू, भूनने के लिए रख दिए. पुलाव और रायता चल जाएगा. रोली अपना रूम समेटने में लगी थी. शाम सुरमई होने लगी थी. केक मानस लाने वाला था. रोली ने मना भी किया था

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