आज रंगोली का बर्थडे है और उसे पूरी उम्मीद थी कि उस के मम्मीपापा उसे अच्छा और महंगा गिफ्ट अवश्य देंगे. केक काटने से पहले रंगोली ने अपना गिफ्ट मांगा तो मोहित और  सुप्रिया ने उसे सुनहरे कागज में लिबटा पैकेट पकड़ा दिया.

पैकेट खोलते ही वीवो का फोन देख कर रंगोली ने नाक सिकोड़ ली. उस का मूड खराब हो गया. पैकेट को फेंकते हुए बोली, ‘‘आप दोनों ने  खुद तो आई फोन ले रखे हैं और मु झे यह दे रहे हैं.’’

इस से पहले मोहित और सुप्रिया कुछ बोलते, रंगोली दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. उस ने इतना भी नहीं सोचा कि मेहमान क्या सोच रहे होंगे. सुप्रिया खिसियाते हुए बोली, ‘‘आजकल के बच्चे भी न बस.’’

मोहित बोला, ‘‘चलो केक बाद में काटेंगे, पहले डिनर कर लेते हैं. तब तक मैं रंगोली को मना भी लूंगा.’’

17 वर्ष की रंगोली तूफान मेल थी. खुलता हुआ रंग जो गोरा कहा जा सकता था, बड़ीबड़ी शरबती आंखें, घने घुंघराले बाल जो रेशम की तरह मुलायम थे, मीडियम कद और भोली सी मुसकान. रंगोली का चेहरा उस के तेवरों से बिलकुल मेल नहीं खाता था और यही बात रंगोली को और अधिक आकर्षक बनाती थी. वह मोहित और सुप्रिया की इकलौती संतान थी.

रंगोली न सुनने की आदी नहीं थी. उसे हर चीज अपने हिसाब से चाहिए होती थी और इस बात के लिए वह किसी हद तक भी जा सकती थी.

बाहर मोहित दरवाजा खटखटा रहा था, ‘‘बेटा सब लोग बाहर इंतजार कर रहे हैं. अच्छा बाबा तुम्हारी पसंद का मोबाइल दिला देंगे.’’

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