कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

काम करती हुई सविता सोच रही थी कि उस की मां ने घर को इतना साफसुथरा रखना सिखाया था. काम करने को अकेली मां ही तो थी, पर घर में हर चीज कायदे से अपनी जगह पर रखी होती थी. पिताजी, भैया और वे तीनों काम पर जाते थे, पर मजाल है कि किसी का अपना सामान इधरउधर बिखरा मिले. सब चीजों के लिए एक जगह निश्चित थी. यहां आज ठीक करो, कल फिर वैसा ही हाल. उस की ससुराल के लोग सीखते क्यों नहीं, समझते क्यों नहीं. देवर होस्टल में जरूर रहता है, पर घर आते ही वह भी इस घर के रंग में रंग जाता. ऐसा लगता था जैसे इस तरीके से रहना इन लोगों को कहीं से विरासत में मिला है.

अकसर शिकायत करती महरी की आवाज आई, ‘‘बरतन मेज से उठा कर सिंक में रख कर कुछ देर नल खोल दिया करो तो जल्दी साफ  हो जाते,’’ कह कर वह चली गई. 4 दिन बाद कोई और मिली थी तो रात को खाना खाने के बाद हमेशा की तरह सब लोग बैठक में बातें करने के इरादे से बैठा करते थे.

तभी सविता ने कहा, ‘‘बहुत खोज कर कपड़े धोने के लिए मैं एक नई औरत को इस शर्त पर लाई थी कि सिर्फ कपड़ों के नीचे पहनने वाले कपड़े ही धोने होंगे. बड़े कपड़े यानी पैंट, शर्ट, कमीज, धोतियां, चादरें तो धोबी धोता ही है. पर आज वह मुझसे कह रही थी कि अब बड़े कपड़े भी उसे दिए जाने लगे हैं. वह तो इस बात पर काम छोड़ रही थी. मैं ने किसी तरह उसे समझा दिया है. अब आप लोग सोच लें वह बड़े कपड़े धोऊंगी नहीं.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...