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उन दिनों घर का बढ़ता हुआ तनाव दिनबदिन और बढ़ता जा रहा था. सविता हरेक की बात सुनने पर भी नहीं सुनती थी. दिन में कभी भी कमरे में लेट कर उपन्यास पढ़ती रहती थी. सब के जाने के बाद सवेरे ही वह भी घर से निकल पड़ती थी. एक महिला क्लब की सदस्य बन गई थी. दोपहर देर तक ताश खेलती थी. किट्टी पार्टियों में भी जाती थी. कोई कुछ नहीं कह सकता था. नौकरी छुड़वाई थी, सो फिर से कर सकती थी. अलग रहने को बोल दिया था. उस के अलग रहने से घर पर क्या असर पड़ेगा, इतना तो घर वाले सम?ा सकते थे. जब भी सविता मां के घर जाती थी तो यही कह कर कि शाम तक लौट आएगी, पर 3-4 दिनों तक नहीं आती थी. अब उस की इस घर में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई.

एक दिन जब वह घर में थी. रश्मि कुछ ढूंढ़ रही थी, ‘‘भाभी, तुम ने मेरी कापी देखी है कहीं. उस में मेरे कुछ जरूरी नोट्स है. इधर घर में धूल इतनी है कि खोजने में सारे कपड़े गंदे हो गए हैं.’’

सविता बरस पड़ी, ‘‘रश्मि, तुम अपनी चीजों को तो संभाल कर रख नहीं सकतीं, ऊपर से कहती हो सारे घर में धूल की परतें जमी रहती हैं. इतवार को तो तुम घर की सफाई कर सकती हो. कालेज की पढ़ाई मैं ने भी की है पर घर के कामों में अपनी मां का हाथ जरूर बंटाती थी. एक तुम हो कि  पढ़ाई के नाम पर उपन्यास पढ़ती रहती हो. बहुत हो चुका, अब उठो और घर की सफाई करो. महरी भी आती होगी. बरतन सिंक में रख कर नल खोल दो. मैं अपनी एक सहेली के घर जा रही हूं,’’ कह कर सविता चली गई.

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