संविधा भी पहले नौकरी करती थी. उसे भी 6 अंकों में वेतन मिलता था. इस तरह पतिपत्नी अच्छी कमाई कर रहे थे. लेकिन संविधा को इस में संतोष नहीं था. वह चाहती थी कि भाई की तरह उस का भी आपना कारोबार हो, क्योंकि नौकरी और अपने कारोबार में बड़ा अंतर होता है. अपना कारोबार अपना ही होता है.
नौकरी कितनी भी बड़ी क्यों न हो, कितना भी वेतन मिलता हो, नौकरी करने वाला नौकर ही होता है. इसीलिए संविधा भाई की तरह अपना कारोबार करना चाहती थी. वह फ्लैट में भी नहीं, कोठी में रहना चाहती थी. अपनी बड़ी सी गाड़ी और ड्राइवर चाहती थी. यही सोच कर उस ने सात्विक को प्रेरित किया, जिस से उस ने अपना कारोबार शुरू किया, जो चल निकला. कारोबार शुरू करने में राजन के ससुर ने काफी मदद की थी.
संविधा ने सात्विक को अपनी प्रैगनैंसी के बारे में बताया तो वह बहुत खुश
हुआ, जबकि संविधा अभी बच्चा नहीं चाहती थी. वह अपने कारोबार को और बढ़ाना चाहती भी. अभी वह अपना जो काम बाहर कराती थी, उस के लिए एक और फैक्टरी लगाना चाहती थी. इस के लिए वह काफी मेहनत कर रही थी. इसी वजह से अभी बच्चा नहीं चाहती थी, क्योंकि बच्चा होने पर कम से कम उस का 1 साल तो बरबाद होता ही. अभी वह इतना समय गंवाना नहीं चाहती थी.
सात्विक संविधा को बहुत प्यार करता था. उस की हर बात मानता था, पर इस तरह अपने बच्चे की हत्या के लिए वह तैयार नहीं था. वह चाहता था कि संविधा उस के बच्चे को जन्म दे. पहले उस ने खुद संविधा को समझाया, पर जब वह उस की बात नहीं मानी तो उस ने अपनी सास से उसे मनाने को कहा. रमा बेटी को मनाने की कोशिश कर रही थीं, पर वह जिद पर अड़ी थी. रमा ने उसे मनाने के लिए अपनी बहू ऋता को बुलाया था. लेकिन वह अभी तक आई नहीं थी. वह क्यों नहीं आई, यह जानने के लिए रमा देवी फोन करने जा ही रही थीं कि तभी डोरबैल बजी.
ऋता अकेली आई थी. राजन किसी जरूरी काम से बाहर गया था. संविधा भैयाभाभी की बात जल्दी नहीं टालती थी. वह अपनी भाभी को बहुत प्यार करती थी. ऋता भी उसे छोटी बहन की तरह मानती थी.
संविधा ने भाभी को देखा तो दौड़ कर गले लग गई. बोली, ‘‘भाभी, आप ही मम्मी को समझाएं, अभी मुझे कितने काम करने हैं, जबकि ये लोग मुझ पर बच्चे की जिम्मेदारी डालना चाहते हैं.’’
ऋता ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाया और फिर गर्भपात न कराने के लिए समझाने लगी.
‘‘यह क्या भाभी, मैं ने तो सोचा था, आप मेरा साथ देंगी, पर आप भी मम्मी की हां में हां मिलाने लगीं,’’ संविधा ने ताना मारा.
‘‘खैर, तुम अपनी भाभी के लिए एक काम कर सकती हो?’’
‘‘कहो, लेकिन आप को मुझे इस बच्चे से छुटकारा दिलाने में मदद करनी होगी.’’
‘‘संविधा, तुम एक काम करो, अपना यह बच्चा मुझे दे दो.’’
‘‘ऋता…’’ रमा देवी चौंकीं.
‘‘हां मम्मी, इस में हम दोनों की समस्या का समाधान हो जाएगा. पराया बच्चा लेने से मेरी मम्मी मना करती हैं, जबकि संविधा के बच्चे को लेने से मना नहीं करेंगी. इस से संविधा की भी समस्या हल हो जाएगी और मेरी भी.’’
संविधा भाभी के इस प्रस्ताव पर खुश हो गई. उसे ऋता का यह प्रस्ताव स्वीकार था. रमा देवी भी खुश थीं. लेकिन उन्हें संदेह था तो सात्विक पर कि पता नहीं, वह मानेगा या नहीं?
संविधा ने आश्वासन दिया कि सात्विक की चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसे वह मना लेगी. इस तरह यह मामला सुलझ गया. संविधा ने वादा करने के लिए हाथ बढ़ाया तो ऋता ने उस के हाथ पर हाथ रख कर गरदन हिलाई. इस के बाद संविधा उस के गले लग कर बोली, ‘‘लव यू भाभी.’’
‘‘पर बच्चे के जन्म तक इस बात की जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए,’’ ऋता
ने कहा.
ठीक समय पर संविधा ने बेटे को जन्म दिया. सात्विक बहुत खुश था. बेटे के
जन्म के बाद संविधा मम्मी के यहां रह रही थी. इसी बीच ऋता ने अपने लीगल एडवाइजर से लीगल दस्तावेज तैयार करा लिए थे. ऋता ने संविधा के बच्चे को लेने के लिए अपनी मम्मी और पापा को राजी कर लिया था. उन्हें भी ऐतराज नहीं था. राजन के ऐतराज का सवाल ही नहीं था. लीगल दस्तावेजों पर संविधा ने दस्तखत कर दिए. अब सात्विक को दस्तखत करने थे. सात्विक से दस्तखत करने को कहा गया तो वह बिगड़ गया.
रमा उसे अलग कमरे में ले जा कर कहने लगी, ‘‘बेटा, मैं ने और ऋता ने संविधा को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह मानी ही नहीं. उस के बाद यह रास्ता निकाला गया. तुम्हारा बेटा किसी पराए घर तो जा नहीं रहा है. इस तरह तुम्हारा बेटा जिंदा भी है और तुम्हारी वजह से ऋता और राजन को बच्चा भी मिल रहा है.’’
रमा की बातों में निवेदन था. थोड़ा सात्विक को सोचने का मौका दे कर रमा देवी ने आगे कहा, ‘‘रही बच्चे की बात तो संविधा का जब मन होगा, उसे बच्चा हो ही जाएगा.’’
रमा देवी सात्विक को प्रेम से समझा तो रही थीं, लेकिन मन में आशंका थी कि पता नहीं, सात्विक मानेगा भी या नहीं.
सात्विक को लगा, जो हो रहा है, गलत कतई नहीं है. अगर संविधा ने बिना बताए ही गर्भपात करा लिया होता तो? ऐसे में कम से कम बच्चे ने जन्म तो ले लिया. ये सब सोच कर सात्विक ने कहा, ‘‘मम्मी, आप ठीक ही कह रही हैं… चलिए, मैं दस्तखत कर देता हूं.’’
सात्विक ने दस्तखत कर दिए. संविधा खुश थी, क्योंकि सात्विक को मनाना आसान नहीं था. लेकिन रमा देवी ने बड़ी आसानी से मना लिया था.
समय बीतने लगा. संविधा जो चाहती थी, वह हो गया था. 2 महीने आराम कर के संविधा औफिस जाने लगी थी. काफी दिनों बाद आने से औफिस में काम कुछ ज्यादा था. फिर बड़ा और्डर आने से संविधा काम में कुछ इस तरह व्यस्त हो गई कि ऋता के यहां आनाजाना तो दूर वह उस से फोन पर भी बातें नहीं कर पाती.
एक दिन ऋता ने फोन किया तो संविधा बोली, ‘‘भाभी, लगता है आप बच्चे में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गई हैं, फोन भी नहीं करतीं.’’
‘‘आप व्यस्त रहती हैं, इसलिए फोन नहीं किया. दिनभर औफिस की व्यस्तता, शाम को थकीमांदी घर पहुंचती हैं. सोचती हूं, फोन कर के क्यों बेकार परेशान करूं.’’
‘‘भाभी, इस में परेशान करने वाली क्या बात हुई? अरे, आप कभी भी फोन कर सकती हैं. भाभी, आप औफिस टाइम में भी फोन करेंगी, तब भी कोई परेशानी नहीं होगी. आप के लिए तो मैं हमेशा फ्री रहती हूं.’’
संविधा ने कहा, ‘‘बताओ, दिव्य कैसा है?’’
‘‘दिव्य तो बहुत अच्छा है. तुम्हारा धन्यवाद कैसे अदा करूं, मेरी समझ में नहीं आता. इस के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं. मम्मीपापा बहुत खुश रहते हैं. पूरा दिन उसी के साथ खेलते रहते हैं.