Short Family Drama : न्यूयार्क से 15 घंटे की लंबी यात्रा के बाद दिल्ली एअरपोर्ट पर डौलर को रुपए में चेंज करवा कर मैं गतिमान ऐक्सप्रैस द्वारा आगरा पहुंचा तो रेलवे स्टेशन पर तमाम टैक्सी और औटो वालों ने मुझे घेर लिया. सभी अंगरेजी में बात कर रहे थे, ‘‘सर, आप को अच्छे और हर सुखसुविधा युक्त होटल में ले चलते हैं बिलकुल ताजमहल के करीब… आप बालकनी से सुबहशाम ताज के दीदार कर सकते हैं.’’
मेरा आगरे का 1 माह का प्रवास था. ताजमहल पर एक किताब लिख रहा था. 1 माह के लिए मुझे सस्ते और अच्छे होटल की तलाश थी.
मैं ने उन टैक्सी/औटो चालकों से कहा, ‘‘प्लीज, मेरा रास्ता छोड़ो मैं खुद ही गूगल पर सर्च कर लूंगा,’’ क्योंकि मुझे पता था इन सब का होटल वालों से अच्छाखासा कमीशन होता है और ये विदेशी पर्यटकों को खूब लूटते हैं.
मुझे हिंदी बोलते देख कर वे सभी दंग रह गए. न्यूयौर्क में मेरे बहुत भारतीय मित्र थे और मैं उन के परिवारों से जुड़ा था है इसलिए मैं हिंदी बोल लेता था.
‘‘सर, मैं आप की मदद करूं?’’ एक बुजुर्ग व्यक्ति ने बहुत ही शालीनता और विनम्रता से मु?ा से पूछा.
‘‘आप क्या मदद करना चाहते हैं मेरी?’’
‘‘आप किसी महंगे होटल के बजाय हमारे घर रुकें तो आप को घर जैसा माहौल, शुद्ध और स्वादिष्ठ घर के भोजन के अतिरिक्त यहां का बहुत कुछ देखने को मिलेगा.’’
‘‘घर पर?’’
‘‘जी सर क्योंकि मेरी अपनी टैक्सी है. मेरा घर ताजमहल के बिलकुल नजदीक इलाके में है. हम अपने मेहमान पर्यटकों को घर के ऊपर वाले पोर्शन में ठहराते हैं. होटल जैसी आधुनिक सुविधाएं तो नहीं हैं लेकिन हम अपनी तरफ से अपने मेहमानों की हर सुखसुविधा का खयाल रखते हैं. टैरेस से ही ताजमहल का खूबसूरत नजारा दिखता है. मैं ने यह सेवा अभी शुरू करी है. आप मेरे पहले ग्राहक हैं. अगर आप को पसंद न आए तो कोई बात नहीं मैं आप को बाध्य नहीं करूंगा.’’
मु?ो उन का प्रस्ताव पसंद आ गया क्योंकि मुझे 1 माह आगरा रहना था. उन के साथ उन की टैक्सी में बैठ गया. स्टेशन से उस इलाके तक आने में लगभग 25 मिनट लगे होंगे. उन्होंने गाड़ी एक व्यस्त चौराहे पर रोक दी और बोले, ‘‘सर, आप को यहां से थोड़ा पैदल चलना होगा क्योंकि घर तक गाड़ी नहीं जा सकती.’’
गाड़ी से उतरते ही वहां का नजारा देख कर मैं अचरज से भर उठा. शोरशराबा, झंठ बने लोगों की मीटिंगनुमा वार्त्ता. मुझे देख कर बच्चे दौड़ते हुए आए और मुझ से ‘हैलोहैलो’ बोलने लगे उन की मासूमियत देख कर मैं मुसकरा उठा और उन के साथ सैल्फी ले ली.
टैक्सी वाले अंकल का घर एक संकरी लेकिन साफसुथरी गली में था. वे मुझे दूसरी मंजिल पर ले गए. टैरेस पर एक खुला और हवादार कमरा था. कमरे में 1 डबल बैड, एक कोने में मेजकुरसी और टेबललैंप था. मेज पर ताजे फूलों का एक गुलदस्ता रखा था. एक तरफ की दीवार पर लकड़ी की अलमारी थी. सामने दीवार पर एक बहुत ही खूबसूरत हाथ द्वारा बनाई गई राधाकृष्ण की सुंदर पेंटिंग टंगी थी. पूरा कमरा कलात्मक और सुरुचिपूर्ण ढंग से सुसज्जित था.
टैरेस के एक कोने में साफसुथरा वाशरूम था. पूरे टैरेस के चारों तरफ गमलों में गुलाब, गुड़हल और अन्य अनेक तरह के फूलों के पौधे लगे थे. वहीं बीच में लकड़ी की एक आरामकुरसी भी पड़ी थी. टैरेस से ताजमहल साफ नजर आ रहा था. उस टैरेस का प्राकृतिक और स्वच्छ वातावरण देख कर मेरा मन खुश हो गया और मैं ने हामी भर दी.
पैसों का पूछा तो अंकल ने हंस कर कहा, ‘‘सर, आप चिंता मत करिए मैं मुनासिब पैसे
ही लूंगा और आप मेरे पहले ग्राहक भी हैं मोस्ट वैलकम.’’
‘‘प्लीज अंकल, आप मुझे फर्ज है आप मेरे नाम से ही संबोधित कीजिए मुझे. अच्छा लगेगा.’’
‘‘ओ के जौर्ज, आप फ्रैश हो जाइए, फिर हम आप को ब्रेकफास्ट में आगरा की मशहूर बेडई जलेबियां खिलाएंगे.’’
थोड़ी देर में अंकल गरमगरम बेडई जलेबियं ले आए. वास्तव में बहुत स्वादिष्ठ थीं.
‘‘आज आप आराम कीजिए. जब आप का दिल करे घूमने का तब मुझे बताइए.’’
नाश्ता करने के बाद में गहरी नींद में सो गया. शाम को 4 बजे के लगभग अंकल ने कहा, ‘‘जौर्ज, आप को 2-3 बार लंच के लिए बुलाने आया था लेकिन आप इतनी गहरी नींद में थे कि आप को जगाने की हिम्मत ही नहीं हुई. प्लीज, चलिए लंच तैयार है.’’
लंच के बाद मैं अपने कमरे में आ गया और अपनी किताब लिखने लगा. शाम को 7 बजे के लगभग मुंह पर कपड़ा बांधे एक लड़की टैरेस पर आई. पौधों को पानी देते हुए वह हर पौधे को बहुत ही अपनत्व भरी दृष्टि से निहार रही थी जैसे वे पौधे नहीं उस के अपने छोटे बच्चे हों.
वह लड़की रोज सुबहशाम नियमित रूप से पानी देती. एक मां की तरह उन की देखभाल करती. एक बार अंकल के साथ चायनाश्ता ले कर आई तब पता चला कि वह उन की बेटी अपराजिता है. मुझे लगा किसी स्किन ऐलर्जी की वजह से यह मुंह पर कपड़ा बांधती है मैं उसे रोज सुबहशाम देखता हालांकि मैं ने उस का चेहरा नहीं देखा था लेकिन पेड़पौधों के प्रति उस की आत्मीयता देख कर मैं मन ही मन उस से जुड़ गया. एक लगाव सा हो गया उस से. अगर उसे आने में जरा सी भी देर हो जाती तो मैं बेचैन सा हो जाता. ऐसा महसूस होने लगा कि मैं उस से प्रेम करने लगा हूं.
एक रोज जब वह पौधों को पानी दे रही थी तो मैं चुपके से उस के पीछे जा कर शरारत भरे लहजे में बोला, ‘‘प्लीज, अपने चेहरे से नकाब तो हटाओ जरा.’’
नकाब हटा दिया तो आप आसमान से सीधे धरती पर औंधे मुंह गिर पड़ोगे विदेशी बाबू,’’ वह व्यंग्य से बोली.
‘‘कोई बात नहीं गिरने दो मुझे.’’
‘‘तो देखो मेरा खूबसूरत चेहरा,’’ मुंह से कपड़ा हटाते हुए उस ने जोर से अट्टहास किया. उस का जला बीभत्स चेहरा देख कर मेरा सर्वांग कांप उठा और होठों से हलकी सी चीख निकल गई.
‘‘अब बस दीदार कर लिया न मेरे चेहरे का?’’ कहते हुए उस ने फिर से मुंह पर कपड़ा बांध लिया और सामान्य भाव से पौधों की देखभाल में पुन: रम गई.
मैं कमरे में आ कर बिस्तर पर धम्म से गिर पड़ा. इतने दिनों से परवान चढ़ रहा प्रेम एक गुब्बारे में पिन चुभाने पर फुस्स हो गया. हिम्मत ही नहीं हुई कि उस से पुंछूं कि यह सब कब, कैसे, किस ने और क्यों किया? अजीब सी मनोस्थिति हो गई थी मेरी.
उस से मानसिक धरातल से तो जुड़ चुका था मैं लेकिन शारीरिक तौर पर कदम अपनेआप ही पीछे लौट रहे थे. पता नहीं क्यों?
शायद यह सच है कि इंसान चेहरा देख कर ही प्यार करता है. बस चेहरा खूबसूरत और आकर्षक हो और मन कैसा भी हो चलेगा. उस रोज कुछ भी लिखने की इच्छा ही नहीं हुई.
रात को अंकल से पूछा, ‘‘अपराजिता के साथ किस ने ऐसा किया है?’’
यह सुन कर अंकल एकदम खामोश हो गए. आंखों में अनकहा दर्द उभर आया. ऐसा लगा जैसे मैं ने इन के किसी पुराने घाव को कुरेद दिया हो.
‘‘जौर्ज, मेरी बेटी अपराजिता मन से बहुत ही खूबसूरत स्वभाव और व्यवहार से बहुत ही सहज सरल और उदार है. वह चेहरे से भी बहुत खूबसूरत थी,’’ कहते हुए उन्होंने अपने मोबाइल में उस का पहले का फोटो दिखाया. वाकई में वह गजब की खूबसूरत थी.
‘‘लेकिन जौर्ज यही खूबसूरती उस के लिए अभिशाप बन गई.’’
‘‘ऐसा क्या हुआ अंकल?’’
‘‘हम दोनों भाई संयुक्त परिवार में रहते थे. साधारण रूपरंग की मेरी भतीजी को कोई भी लड़के वाला देखने आता तो उस के बजाय अपराजिता को पसंद कर लेता. अपराजिता तो लड़के वालों के सामने भी नहीं पड़ती थी लेकिन उस की सुंदरता, स्वभाव, व्यवहार और गुणों के चर्चे पूरी रिश्तेदारी में थे. इस वजह से मेरी भतीजी का कहीं भी संबंध नहीं हो पा रहा था. भाभी यह सह ना सकीं और एक दिन उन्होंने घर पर ही अपराजिता के चेहरे पर तेजाब डाल दिया.’’
‘‘उफ, तो आप ने अपनी भाभी के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई?’’
‘‘मैं तो चाहता था लेकिन अपराजिता ने मना कर दिया. अपनी ताईजी को माफ करते हुए सभी को बोल दिया किसी सिरफिरे ने उस के साथ यह घिनौनी हरकत करी है. भाभी को अपनी गलती का बेहद पछतावा हुआ.
उस का चेहरा देख कर कोई उस से घृणा करता है तो कोई तरस खाता है. अपने नाम के अनुरूप उस ने हिम्मत नहीं हारी. ताजमहल से लगभग 3 किलोमीटर दूरी पर ‘शीरोज हैंग आउट कैफे’ से वह जुड़ गई. इस कैफे हाउस को ऐसिड अटैक की विक्टम युवतियां ही चलाती हैं. इस कैफे हाउस में कौफी के अलावा शाकाहारी व्यंजन, बुटीक और खूबसूरत कलाकृतियों का काउंटर भी है.
अपराजिता स्वभाव और व्यवहार से जितनी सहज, सरल, विनम्र और उदार है उतनी ही स्वाभिमानी भी है. किसी की दया और तरस की मुहताज नहीं है. ऐसा हो जाने के बावजूद उस के अंदर जीने की ललक है और भरपूर आत्मविश्वास भी है.’’
सारी बातें सुन कर मु?ो अपराजिता से सहानुभूति नहीं बल्कि उस के हौसले और जज्बे पर गर्व हुआ. दूसरे दिन मैं ‘शीरोज हैंग आउट’ पहुंच गया. वहां उस के जैसी बहुत सी युवतियां और महिलाएं थीं.
‘‘अपराजिता,’’ मैं ने आवाज लगाई तो वह तुरंत आ गई. उस के चेहरे पर कपड़ा नहीं बंधा था.
‘‘जौर्ज आप यहां कैसे?’’ उस ने आश्चर्य भाव से पूछा.
‘‘क्या मैं यहां नहीं आ सकता?’’ मैं ने मुसकरा कर जवाब दिया और 1 कप कौफी की मांग करी.
कौफी पीने के बाद जब मैं ने पैसे पूछे तो उस ने बेहद आत्मीयता से मुसकरा कर कहा, ‘‘सर पे एज यू विश.’’
‘‘ऐसा क्यों?’’
‘‘सर, हमारे शीरोज की यही तो खासीयत है. यहां पर एक गरीब से ले कर एक अमीर तक कौफी और व्यंजनों का लुत्फ ले सकता है.’’
अब मैं रोज वहां जाने लगा. मुझे लगने लगा कि अब मैं अपराजिता को समझने लगा
हूं. उस के व्यवहार, उस की सोच और समझ को भी. रोज शीरोज जाने और प्रतिदिन टैरेस पर मिलने से मैं धीरेधीरे उस के करीब आ गया. मानसिक रूप से मैं खुद को तैयार कर रहा था कि उस से अपने मन की बात कह सकूं लेकिन कुछ कहने से पहले ही उस का चेहरा मेरे सामने आ जाता और मेरा इरादा बदल जाता. मैं अजीब दुविधा में था. मुझे खुद ही नहीं पता था कि मैं उस से प्यार करता भी हूं या नहीं.
दिल और दिमाग में एक युद्ध चलता रहता था. दिल कहता जब उस से प्यार करता है तो उस का इजहार कर. प्रेम में बाहरी सौंदर्य नहीं आंतरिक खूबसूरती का महत्त्व होता है. दिमाग बुद्धिमतापूर्ण तर्क देता कि बेवकूफ, क्यों पड़ा है इस बीभत्स चेहरे वाली लड़की के पीछे. 24 घंटे जब इस का चेहरा देखेगा तो खुद के फैसले पर रोएगा. भाग ले यहां से.
नहींनहीं, मैं अपराजिता से प्यार करता हूं सच्चा प्यार. क्या सिर्फ चेहरे की खूबसूरती सर्वोपरि होती है? अगर खूबसूरत चेहरे वाली लड़की से शादी करने के बाद यह हादसा हो गया तो? यह सोच कर पसीनापसीना हो गया. चंचल मन और क्रियावान दिमाग ने तुरंत ठोस तर्क दे डाला. इस का इलाज भी है तलाक. दिल और दिमाग की सारी दलीलें, सु?ाव और तर्क से मेरी सोचनेसमझने की शक्ति क्षीण हो गई.
एक बार को लगा काश, अपराजिता का पहले जैसा ही खूबसूरत और आकर्षक चेहरा होता तो मैं एक पल भी न लगाता आई लव यू कहने में. खुद को अंदर से मजबूत किया प्रपोज करने के लिए. चंचल मन फिर डगमगा गया क्यों प्रपोज कर रहा हूं तेजाब पीडि़त लड़की को? मुझे तो बहुत खूबसूरत लड़कियां मिल जाएंगी क्योंकि मैं आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होने के साथसाथ बुद्धिजीवी प्राणी भी हूं.
तभी अंदर से आवाज आई क्या हुआ चेहरा ही तो कुरूप है बाकी देह तो हृष्टपुष्ट, आकर्षक और कमनीय है. चेहरे का क्या करना. अंतरंग पलों में तो वैसे भी अंधेरा होगा. चेहरा कहां व्यवधान उत्पन्न करेगा. हां, यही सही रहेगा.
‘‘अपराजिता, आई लव यू. शादी करना चाहता हूं मैं तुम से,’’ हिम्मत बटोर कर उसे बोल ही दिया.
वह जोर का ठहाका लगा कर बोली, ‘‘अच्छा मजाक कर लेते हैं जौर्ज आप.’’
‘‘अपराजिता, मैं मजाक नहीं कर रहा बल्कि सच बोल रहा हूं.’’
‘‘आखिर ऐसा क्या देख लिया आप ने मु?ा में जो मु?ा जैसी लड़की के साथ शादी जैसा महत्त्वपूर्ण फैसला ले लिया?’’ अपनी पारखी और अनुभवी नजरें जमाते हुए उस ने तुरंत पूछा.
‘‘मुझे कुछ नहीं पता सिर्फ यह पता है मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं,’’ कहते हुए मेरी जबान लड़खड़ा गई.
मेरी चंचल और अस्थिर मनोस्थिति को वह शायद भांप गई थी. मुसकराते हुए सामान्य भाव से बोली, ‘‘जौर्ज, यह प्यार नहीं है आप के चंचल और अस्थिर मन की भावनाएं हैं जो इस समय प्रबल वेग से अति उत्साहित हो कर कठोर और ठोस सत्य के पाषाण से टक्कर लेने के लिए मचल रही हैं जबकि वे स्वयं इस का परिणाम जानती हैं. प्लीज, शांत कर के इन्हें काबू में रखिए.’’
मगर मेरे अंदर तो एक जनून सवार था उस की आकर्षक, सुगठित और कमनीय देह को पाने का जिस की वजह से मैं संयम नहीं रख पा रहा था.
‘‘चाहे तुम कुछ भी कहो अपराजिता मैं ने फैसला ले लिया है. मैं तुम से ही शादी करूंगा यहीं इंडिया में और जल्द ही मैं आज ही इस संबंध में अंकल से बात करता हूं.’’ यह सुन कर अपराजिता भावात्मक स्तर पर थोड़ी
नम्र हो गई आखिर वह भी तो एक युवती ही थी. उस के अंदर भी तो चाहत और जज्बातों का समंदर था. जौर्ज की बात सुन कर उस समंदर में पूरे वेग से भावनाएं उफान मारने लगीं और वह रोमांचित हो उठी. लजाते हुए वहां से अपने कमरे में आ गई.
रातभर नींद नहीं आई. ढेरों सपने उस की आंखों में सजने लगे. हलदी, मेहंदी, ढोलक, बरात, जयमाला, फेरे, दूल्हा फिर… वह शर्म से दोहरी हो गई. अति उत्तेजनावश तकिए को अपनी छाती से भींच लिया और कंपकंपाते होंठ स्वयं ही बुदबुदा उठे, ‘‘लव यू जौर्ज लव यू सो मच.’’
रोज हसीन मुलाकातों का दौर शुरू हो गया. विवाह तिथि निश्चित हो गई. तैयारियां शुरू हो गईं.
जौर्ज के मन की मुराद पूरी होने वाली थी और अपराजिता के सुप्त और निस्तेज पड़े सपनों में एक नई जान, उत्साह, उमंग, जोश और रोमांच चरम पर आ गया था उस के साथ शीरोज वाली उस की सभी सखियां उस से ईर्ष्या कर रही थीं. परिजन, पासपड़ोसी और रिश्तेदार सभी हैरान थे कि ऐसी लड़की को खूबसूरत विदेशी युवक ने कैसे पसंद कर लिया?
शादी से चंद रोज पहले. एक सुबह अपराजिता चाय का कप ले कर समाचारपत्र देखने लगी. मुख्य पृष्ठ पर, ‘विदेशी युवक जौर्ज ने तेजाब पीडि़ता अपराजिता से किया शादी जैसा साहसिक फैसला,’ चित्र भी वही था जो ताजमहल में जौर्ज ने उस के साथ सैल्फी ली थी. पूरा अखबार जौर्ज की इस सराहनीय और प्रशंसनीय पहल से भरा पड़ा था. कहीं जौर्ज के प्यार का जिक्र नहीं था. वह एक तेजाब पीडि़ता के लिए मसीहा बन गया था.
उस का मन खिन्न हो गया. अखबार को तोड़मरोड़ कर फेंक दिया. मन शांत करने के लिए टीवी खोला. हर न्यूज चैनल पर वही खबर जौर्ज का साक्षात्कार उस के इस कदम की सराहना, प्रशंसा. पत्रकारों को बताते हुए उस का चेहरा गर्व से दमक रहा था कि वह एक तेजाब पीडि़ता से शादी कर के उस का जीवन संवारना चाहता है. प्यार का कहीं कोई जिक्र तक नहीं. अपराजिता को लगा जैसे वह शादी कर के उस पर दया कर रहा है. क्रोध से उस की मुट्ठियां भिंच गईं और तनबदन सुलग उठा.
‘‘जौर्जजौर्ज,’’ चीखते हुए उस के कमरे में आ गई, ‘‘जौर्ज यह खबर मीडिया तक कैसे पहुंची कि आप मु?ा से शादी कर रहे हैं.’’
‘‘मैं ने यह खबर खुद मीडिया को दी है,’’ जौर्ज गौरवान्वित स्वर में बोला.
‘‘लेकिन क्यों?’’ वह जोर से चीखी जिस से उस का चेहरा और भयानक हो उठा.
उस के चेहरे को गौर से देखते हुए जौर्ज उपेक्षा से बोला, ‘‘अरे, तुम जैसी ऐसिड पीडि़ता से शादी कर रहा हूं यह बात सब को पता तो चलनी चाहिए न,’’ उस के स्वर में अहंकार भाव आ गया था.
‘‘उफ, तो यह बात है मीडिया के जरीए हीरो बनने का शौक है आप को,’’ वह व्यंग्य से बोली.
‘‘अपराजिता, मेरा तो सिर्फ यह मकसद था कि मुझे देख कर अन्य लोग भी तुम जैसी लड़कियों से शादी करने के लिए आगे बढ़ें.
उन्हें भी प्यार और परिवार मिले जिस की वे हकदार हैं.’’
‘‘प्लीज जौर्ज, आप को सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है. आइ एम सौरी मैं आप से शादी नहीं कर सकती. यह मेरा फैसला है गुड बाय,’’ कह कर अपराजिता ने खुले आसमान में सांस ली. उस का तनमन स्वाभिमानी हवा के एक झंके से दमक उठा.
जौर्ज उसे बस देखता ही रहा. उस में साहस ही नहीं था कि वह अपराजिता से कुछ कहे.