सुबह 10 बजे के करीब मीना बूआ हमारे घर आईं और आते ही जबरदस्त खलबली सी मचा दी. उन के साथ उन की सहेली सरला अपनी बेटी कविता और बेटे संजय को लाईर् थी.

‘‘मुकेश और कांता कहां है?’’ मीना बूआ ने मेरे मौमडैड के बारे में सवाल किया.

‘‘वो दोनों तो सुबहसुबह ताऊजी के यहां चले गए,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?’’

‘‘किसी जरूरी काम से ताऊजी ने फोन कर के बुलाया था.’’

‘‘अंजलि कहां है?’’ बूआ ने मेरी छोटी बहन के बारे में पूछा.

‘‘नहा रही है.’’

‘‘तू तो नहा ली है न, रेणु?’’

‘‘हां, बूआ, लेकिन यह तो बताओ कि मामला क्या है? क्यों इतनी परेशान सी लग रही हैं?’’ मैं ने धीमे स्वर में प्रश्न पूछा.

बूआ ने ऊंची आवाज में जवाब दिया, ‘‘मेरी इस सहेली सरला की बेटी को देखने के लिए कुछ लोग 12 बजे यहां आ रहे हैं. सारा कार्यक्रम बड़ी जल्दबाजी में तय हुआ है. तेरी मां तो घर में है नहीं. अब सारी तैयारी तुम्हें और अंजलि को ही करनी है. सब से पहले इस ड्राइंगरूम को ठीक कर लो.’’

‘‘बूआ, पहले से खबर कर दी होती…’’

‘‘रेणु, इस मामले में कुसूरवार हम हैं. यह कार्यक्रम अचानक बना. मेरे घर में रिपेयर का काम चल रहा है. मीना के घर इस की ससुराल से मेहमान आए हुए हैं. इसलिए यहां देखनादिखाना करना पड़ रहा है. आशा है यों तकलीफ देने का तुम बुरा नहीं मानोगी,’’ सरलाजी इन शब्दों ने मेरे मन में उठी खीज व चिड़ के भावों को जड़ से ही मिटा दिया.

‘‘तकलीफ वाली कोई बात नहीं है आंटी. आप फिक्र न करें. सब काम अच्छी तरह से निबट जाएगा,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया और अपनी मां की भूमिका अदा करते हुए काम में जुटने को कमर कस ली.

मां की अलमारी से निकाल कर बैठक में पड़े सोफे  के साथसाथ दोनों डबल बैड की चादरें भी बदल डालीं. घर में आने वालों मेहमान किसी भी कमरे में जा सकते थे.

अंजलि तब तक नहा कर आ गई थी तो बाथरूम भी साफ कर दिया. वह मेकअप करने की ऐक्सपर्ट है. उस के जिम्मे कविता को सजानेसंवारने का काम आया.

‘‘अंजलि, मेकअप हलका रखोगी या ज्यादा?’’ संजय ने सवाल पूछा.

अंजलि के जवाब देने से पहले ही मैं बोल पड़ी, अंजलि, हलका मेकअप ही करना, नहीं तो कविता की नैचुरल ब्यूटी दब सी जाएगी.’’

‘‘मगर रेणु अकसर तो यह माना जाता है कि मेकअप ब्यूटी को निखारता है. फिर तुम ब्यूटी दब जाने की बात कैसे कह रही हो?’’ संजय ने उत्सुकता दर्शाई.

मु?ो अनजान लड़कों से एकदम खुल कर बातें करने में बड़ी हिचक होती है. फिर भी मैं ने हिम्मत कर के  जवाब दिया, ‘‘मेरा मानना है कि ज्यादा मेकअप उन्हीं लड़कियों को करना चाहिए जो अपने को डल मानती हों. असली ब्यूटी को मेकअप की जरूरत नहीं होती. वह उसे बदल या बिगाड़ कर देखने वालों की नजरों से छिपा लेता है और मेरी सम?ा से ऐसा करने का कोई फायदा नहीं.’’

‘‘मैं बिलकुल सहमत हूं आप से, रेणु. कविता का मेकअप हलका ही रखना, अंजलि,’’ संजय की इस सहमति ने मेरा दिल खुश कर दिया पर अंजलि बुरा सा मुंह बनाने के बाद कविता को हमारे कमरे में ले गई.

अंजलि मु?ा से कहीं ज्यादा सुंदर है. वह अपने को काफी सजासंवार कर रखने की शौकीन भी है. मैं उस के बिलकुल उलट हूं. तड़कभड़क मु?ो पसंद नहीं. कपड़े मैं वैसे ही पहनती हूं जो कंफर्टेबल हों और भीड़ में चाहे मु?ो लोगों की नजरों का केंद्र बनाएं.

करीब 15 मिनट में ड्राइंगरूम की शक्ल बदल दी मैं ने. बिखरा सामान करीने से लगा दिया. परफ्यूम भी छिड़क दिया. संजय ने मेरा इस काम में साथ दिया. बूआ मेहमानों के लिए पिज्जा, स्प्रिंग रोल और्डर कर आई थीं, वह डिलिवर भी हो गया था. वे अपनी सहेली के साथ आने वाले मेहमानों के बारे में पूछताछ करने में मग्न थीं.

मैं ने रात के कपड़े पहन रखे थे. जरा ढंग के कपड़े बदलने को मैं अपने कमरे में आ गई.

‘‘रेणु, मु?ो अजीब सी घबराहट हो रही है,’’ कविता की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव साफ पढ़े. आज के जमाने में यह देखादेखी कुछ अजीब लगती है.

‘‘दीदी इस मामले में तेरी कोई हैल्प नहीं कर सकती है, कविता,’’ अंजलि ने कहा.

‘‘लड़कियों को यों सजासंवार कर अनजान आदमियों के सामने उन की नुमाइश करना है ही बेहूदा काम,’’ मैं अपने अनुभवों को याद कर के तैश में आ गई, ‘‘कोई भी साधारण लड़की बिना डरे, घबराए ऐसी स्थिति में नहीं रह सकती. उस की असली पर्सनैलिटी बिलकुल खो जाती है और तब लड़के उसे रिजैक्ट कर एक नया टीसने वाला जख्म सदा के लिए उस लड़की के दिलोदिमाग पर लगा जाते हैं.’’

‘‘रेणु दीदी, इस मामले में लड़़की कर भी क्या सकती है?’’ कविता ने सहानुभूतिपूर्ण स्वर में पूछा.

‘‘वाह प्रेमविवाह कर सकती है,’’ अंजलि ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तब यह देखनेदिखाने का चक्कर बचता ही नहीं, बहनो.’’

‘‘अंजलि, तुम तो वाकई बहुत मस्त और निडर लड़की हो,’’ कविता ने मेरी छोटी बहन की प्रशंसा करी.

‘‘इस की पर्सनैलिटी बिलकुल ही अलग है. इसे कभी देखने के लिए कोई आया भी तो यह बिलकुल डरेघबराएगी नहीं. अरे, पिछली बार जो लोग मु?ो देखने आए थे वे मु?ो भूल इस का रिश्ता ही मांगने लगे. आज इसे हम ड्राइंगरूम में उन लोगों के सामने जाने ही नहीं देंगे,’’ मैं ने वैसे सारी बात मजाकिया लहजे में कही, पर कहीं न कहीं मेरा मन शिकायत व गुस्से के भावों को भी महसूस कर रहा था उस घटना को याद कर के.

अचानक उन दोनों से बातें करना मु?ो अरुचिकर लगने लगा तो मैं अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में घुस गई.

मु?ो मौमडैड ने 2 बार लड़के व उस के परिवार वालों को दिखाया था. मेरे लिए दोनों ही अनुभव बड़े खराब रहे थे.

पहली बार जबरदस्त घबराहट व डर का शिकार हो मैं  उन लोगों के सामने बिलकुल गुमसुम हो गई थी. किसी भी सवाल के जवाब में ‘हां’ या ‘न’ बड़ी कठिनाई से कह पाई थी. हाथपैर ठंडे पड़ गए थे और पूरे शरीर में उस नुमाइश के दौरान कंपकंपाहट बनी रही थी. लड़के से अकेले में बात कर के भी खुल नहीं पाई थी. पूरी जिंदगी का फैसला 15 मिनट में, यह सोच ही घबराहट पैदा कर रही थी.

उन लोगों ने मु?ो पसंद नहीं किया और ऐसे ही जवाब की हमें उम्मीद थी क्योंकि उस दिन वाकई मैं ने खुद को दयनीय हालत में सब के सामने पेश किया था.

दूसरी बार हिम्मत कर के मैं कुछ बोली. उन लोगों के सवालों के सम?ादारी से जवाब दिए. मेरा हौसला बढ़ाने को अंजलि मेरे साथ बैठी थी. उसे जरा भी डर नहीं लगा था और उस ने सारी बात को काफी संभाला.

लोगों के कमीनेपन का भी कोई हिसाब नहीं. वहां से जवाब आया कि बेटे को छोटी बहन पसंद आई है. गुस्से से भरे मम्मीपापा ने उन्हें जवाब देना भी जरूरी नहीं सम?ा पर इस घटना ने मेरा दिल बिलकुल खट्टा कर दिया था.

‘‘अब जो भी मु?ो देखने आएगा मैं बिलकुल साधारण, सहज अंदाज में उन से मिलूंगी. भविष्य में अपनी नुमाइश कराना मु?ो कतई स्वीकार नहीं है,’’ मेरी इस घोषणा का विरोध घर में वैसे किसी ने नहीं किया पर मम्मीपापा बेहद तनावग्रस्त नजर आने लगे थे. मेरा अपना ऐसा सर्कल नहीं था जिस में कोई लड़का हो. ज्यादातर सहेलियों की शादियां हो चुकी थीं.

कविता की मनोदशा में बखूबी सम?ा सकती थी. इसीलिए कपड़े बदलने

के बाद मैं कुछ देर उस के पास बैठी. बोली, ‘‘उन लोगों की ‘हां’ या ‘न’ की टैंशन तुम मत लो कविता. इस मुलाकात को इंपौर्टैंट मानो ही मत. अगर शांत रह सकी तो तुम्हारी असली पर्सनैलिटी सब के दिलों को निश्चय ही प्रभावित करने में सक्षम है. लड़़का तुम्हें जरूर पसंद कर लेगा…’’ इस अंदाज में उस का हौसला बढ़ाने के बाद मैं ड्राइंगरूम में चली आई.

वहां मुझे अलग तरह की मुसीबत की जानकारी मिली.

‘‘रेणु, उन लोगों का फोन आया है. वे लंच यहीं करेंगे. पहले ऐसा कार्यक्रम नहीं था. बाजार का खाना खाने से उन लोगों ने इनकार कर दिया है. अब क्या होगा?’’ सरला आंटी बड़ी परेशान नजर आ रही थीं.

‘‘कब तक पहुंचेंगे वे लोग?’’

‘‘करीब 1 बजे तक लगभग 2 घंटे बाद.’’

‘‘इतनी देर में तो लंच तैयार हो ही जाएगा, आंटी. मु?ो बाजार जाना पड़ेगा.’’

‘‘चलो, मैं चलती हूं तुम्हारे साथ,’’ वे फौरन उठ खड़ी हुईं. वे खुद कार चला कर ले गईं. बाजार से जरूरी सब्जियां, फल व पनीर ले कर हम घर लौट आए.

मैं बड़ी चुस्ती से खाना बनाने के काम में लग गई. शिमलामिर्च पनीर की सब्जी के साथसाथ मैं ने मिक्स बैजिटेबल भी बनानी थी. बूंदी का रायता, सलाद और मीठे में फू्रट कस्टर्ड बनाना था. गरमगरम पूरियां उसी समय तैयार करनी थीं. ये सब जल्दी बन जाने वाली चीजें थीं.

बूआ ने थोड़ाबहुत मेरा काम में हाथ बंटाया. सरला आंटी भी कुछ करना चाहती थीं, पर मेहमान होने के नाते मैं ने उन्हें काम नहीं करने दिया. सलाद काटने का काम अंजलि बड़ी सुंदरता से करती थी. आंटी और उस ने यही काम पूरा किया. पूरियों का आटा बूआ ने गूंदा. फ्रूट कस्टर्ड बनाने का काम संजय ने मेरे मार्गदर्शन में किया. एक समय तो ऐसा भी था कि हम सभी रसोई में एकसाथ मेहमानों के लंच की तैयारी में जुटे थे. कविता कुछ नहीं कर रही थी, पर थी वह भी रसोई में ही.

1 बजने तक पूरियों को छोड़ कर सारा खाना तैयार हो गया. सरला आंटी ने मेरा माथा चूम कर मु?ो धन्यवाद दिया.

‘‘आंटी, काम मैं ने अकेली ने नहीं किया है. हम सभी को यों फटाफट खाना तैयार करने का श्रेय जाता है,’’ मैं ने शरमा कर सब के साथ अपनी खुशी बांटने का प्रयास किया.

‘‘मेरे विशेष प्रयास की खास सराहना होनी चाहिए क्योंकि जिंदगी में पहली बार मैं ने कस्टर्ड बनाया है,’’ संजय की इस बात पर हम सब हंस पड़े.

‘‘अब नईनई चीजे सीखते रहिएगा. कल को जब आप की शादी हो जाएगी तो आप की पत्नी को सराहना करने के खूब मौके मिलेंगे,’’ अंजलि के यों छेड़ने पर लगा सम्मिलित ठहाका पहले से ज्यादा तेज था.

‘‘मैं ने जिसे ढूंढ़ा है, वह गृहकार्यों में बहुत कुशल है, अंजलि. इसलिए मु?ो कुछ सीखने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘तो आप ने अपने लिए लड़की ढूंढ़ रखी है?’’

‘‘बिलकुल ढूंढ़ रखी है.’’

‘‘तसवीर है उस की आप के पर्स में?’’

‘‘तुम्हें उसे देखना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘मिलवा दूंगा उस से जल्द ही.’’

‘‘कुछ तो बताइए उस के बारे में,’’ अंजलि संजय के पीछे ही पड़ गई.

‘‘मैं बताती हूं,’’ सरला आंटी ने बीच में कहा, ‘‘वह बड़ी भोली, प्यारी और सम?ादार है, शिक्षित है, सलीकेवान है और मेरे घर की जिम्मेदारियां बड़ी कुशलता से निभाएगी, इस का मु?ो विश्वास है.’’

‘‘आंटी, पहले कविता की शादी करोगी या संजय की?’’

‘‘संजय की.’’

‘‘हमें जरूर बरात में ले चलिएगा,’’ अंजलि की इस फरमाइश को सुन कर बूआ, आंटी, संजय और कविता पर हंसी का अजीब सा दौरा पड़ गया और हम दोनों बहनें इन का मुंह उल?ान भरे अंदाज में ताकती रह गईं.

संजय के मोबाइल की घंटी बज उठी. वह फोन सुनने रसोई से बाहर चला गया. वह 5 मिनट बाद लौटा और परेशान स्वर में बोला, ‘‘वे लोग लंच पर नहीं बल्कि शाम को चाय पर आएंगे. सारे दिन के लिए परेशान कर दिया और खाना बनाने की मेहनत बेकार गई सो अलग.’’

‘‘मेहनत क्यों बेकार गई?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हम सब जम कर खाएंगे. अब लड़के वालों के नखरे ऐसे ही होते हैं. उन लोगों से सम?ादारी की उम्मीद रखना नासम?ा ही है.’’

‘‘रेणु, सब लड़के वाले एकजैसे नहीं होते. संजय के लिए कड़वे अनुभवों की कहानी मीना ने मु?ो सुनाई है. वे लोग बेवकूफ और अंधे रहे होंगे जो तुम जैसे हीरे को गलत ढंग से परख गए. तुम जिस घर में बहू बन कर जाओगी, उस की इज्जत में 4 चांद लग जाएंगे,’’ सरला आंटी ने मेरे सिर पर आशीर्वाद भरा हाथ रख दिया.

‘‘आंटी, उन को मैं कोई दोष नहीं देती. आप लड़कियों की नुमाइश की प्रथा को प्रोत्साहन देंगे तो लड़के वाले लड़की को वस्तु सम?ोंगे ही और उसी घर से रिश्ता जोड़ेंगे जहां से फायदा होगा. लड़की के व्यक्तित्व को, उस के मनोभावों को गहराई से सम?ाने की रूचि और सुविधा ऐसी नुमाइशों में नहीं होती है,’’ अपनी बात कह कर मैं पानी पीने को फ्रिज की तरफ चल पड़ी क्योंकि मु?ो लगा कि मेरी पलकें नम हो चली हैं.

कुछ देर बाद हम सब ने मिल कर डाइनिंगटेबल पर खाना खाना शुरू किया. मेरी बनाई सब्जियों की सब ने बड़ी तारीफ करी.

अपने बनाए कस्टर्ड की संजय ने हम सब से जबरदस्ती खूब प्रशंसा कराई. वह 1 घंटा बड़े हंसतेहंसाते बीता.

हम ने भोजन समाप्त किया ही था कि मौमडैड ताऊजी के यहां से लौट आए. मेहमानों से बातें करने की जिम्मेदारी अब उन दोनों की हो गई. मन ही मन बड़ी राहत महसूस करते हुए मैं रसोई समेटने के काम में लग गई.

बाद में कौफी बना कर अंजलि ने सब को पिलाई. मैं कमरे में जा कर कुछ देर आराम करने को लेट गई.

करीब डेढ़ घंटे बाद मु?ो बूआ फिर ड्राइंगरूम में ले गईं. यह देख कर कि सरला आंटी, संजय और कविता विदा लेने को तैयार खडे़ थे, मैं जोर से चौंक पड़ी, ‘‘वे लोग आ नहीं रहे है क्या?’’ मैं ने हैरान स्वर में सरला आंटी से पूछा.

‘‘नहीं. उन का फोन आ गया है कि लड़की उन्हें पसंद है… रिश्ता स्वीकार कर लिया है उन्होंने,’’ आंटी ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अच्छा. यह तो खुशी की बात है, आंटी. मुबारक हो,’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम्हें भी… तुम सब को भी रेणु,’’ आंटी ने मेरे कंधों पर प्यार से हाथ रख दिए.

‘‘हमें क्यों?’’ मैं ने अचरज भरे स्वर में पूछा.

‘‘इस रिश्ते के होने में तुम ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’’

‘‘खाना तैयार करना कोई बड़ा काम नहीं

है आंटी.’’

‘‘मेरी नजरों में है. तुम ने खाना ही नहीं तैयार किया, घर को सजाया. बाजार से खरीदारी कराई और बिना माथे पर शिकन डाले बड़ी कुशलता से सारा उत्तरदायित्व निभाया. मेरे मन को भा गई तुम तो.’’

‘‘थैंक यू, आंटी,’’ अपनी इतनी तारीफ सुन कर मैं लजा उठी थी.

‘‘अब तुम इनकार मत कर देना नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा… हम सब का दिल टूट जाएगा.’’

‘‘किस इंकार की बात कर रही हैं आप?’’ मैं ने उल?ान भरे स्वर में पूछा.

जवाब में आंटी ने मेरा माथा प्यार से चूमा और सब ने जोरदार तालियां बजाईं.

तभी संजय सामने आ खड़ा हुआ. फिर घुटनों के बल बैठ गया. मैं हैरान सी देख रही थी कि क्या हो रहा है. उस ने इत्मीनान से जेब से मखमली डिब्बी निकाली और उसे खोला. उस में हीरे की अंगूठी थी, ‘‘रेणु विल यू मैरी मी?’’ यह बोल कर वह मेरी आंखों में ?ांकने लगा. पहले तो मैं घबराई कि यह क्या नाटक है पर फिर सम?ा आने लगा.

मैं बोली, ‘‘यस आई विल मैरी यू इफ यू टेक मी एज ए पार्टनर ऐंड नौट एज ए मेड.’’

इस पर सब ने मेरी हाजिर जवाबी पर तालियां बजाईं.

बाद में पता चला कि यह सब नाटक मौमडैड और बूआ की प्लानिंग थी जो संजय के लिए लड़की ढूंढ़ रहे थे. संजय एमबीए कर के एमएनसी में काम कर रहा है, यह वह बातोंबातों में दिनभर बताता रहा था. सब से बड़ी बात यह थी कि लंच के बाद उस ने जबरदस्ती किचन में घुस कर बरतन साफ कर डाले थे जबकि अंजलि उसे टोकती रह गई. यह सारी प्लानिंग उस मुई कविता की है. संजय को कोई लड़की पसंद नहीं आ रही थी तो कविता ने मेरे बारे में उसे बताया था.

अब रात का खाना बाहर से आया. न मैं और न संजय किचन में घुसे. हम तो छत पर सब से अलग फ्यूचर प्लानिंग कर रहे थे न.

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