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मोबाइल की हर घंटी के साथ मोहित की कशमकश बढ़ती जा रही थी. लगातार 8 मिस्ड कौल के बाद जैसे ही पुन: घंटी बजी, तो मोहित ने अपना मोबाइल उठा लिया. इस बार भी निरुपमा का ही कौल था. क्षण भर सोच कर उस ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया. अब आगे क्या करना है, किस से क्या कहे क्या न कहे, वह सोच नहीं पा रहा था. आज जीवन के सभी नियंत्रण सूत्र उसे अपने हाथ से फिसलते नजर आ रहे थे. विचारों की उधेड़बुन में फंसा मोहित औफिस के कैबिन में पिछले 2 घंटे से तनाव कम करने का असफल प्रयास कर रहा था.

जीवन के इस मुकाम पर उस का अपना बेटा अंकित ही उसे इस दोराहे पर ला कर खड़ा कर देगा, यह तो मोहित ने कभी नहीं सोचा था. वर्षों से सब कुछ व्यवस्थित ही चल रहा था. मोहित ने अपने हिसाब से जीवन के सारे समीकरण सरल बना लिए थे, परंतु अंकित सब कुछ उलझा कर जटिल कर देगा, इस का उसे जरा भी अंदेशा नहीं था.

मोहित अपनी नई कंस्ट्रक्शन कंपनी अंकित के नाम से ही शुरू करने जा रहा था. उद्घाटन को केवल 2 दिन शेष थे. सोमवार को सुबह 10 बजे नए कंस्ट्रक्शन की नींव का पहला पत्थर मोहित की पत्नी दीप्ति के हाथों रखा जाना था. लेकिन अंकित ने अचानक उस के समक्ष ऐसी शर्त रख दी, जिस ने उस के अस्तित्व को हिला कर रख दिया था.

मोहित को निरुपमा के साथ अपने सभी संबंधों को हमेशा के लिए तोड़ना होगा... उन के बीच किसी प्रकार का कोई नाता नहीं रहेगा... यही शर्त थी अंकित की. वरना पिता के बिजनैस को छोड़ कर वह पूरे तौर पर अलग होने के लिए तैयार बैठा था.

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