दोनों बच्चों को पता था कि मम्मीपापा के बीच सब कुछ नौर्मल नहीं था.
पर जिंदगी फिर भी कट ही रही थी.
यह सब सोचतेसोचते सोनल की आंख ना जाने किस पहर में लग गई थी. उसे एक बेहद अजीब सपना आया जिस में नितिन के हाथ खून से रंगे हुए थे. अचकचा कर सोनल उठ बैठी, उस का शरीर भट्टी की तरह तप रहा था. बुखार चैक किया 102 था. चाह कर भी वह उठ ना पाई और ऐसे ही गफलियत में लेटी रही.
सुबह किसी तरह से औक्सिमीटर का इंतजाम हो गया था. सोनल ने जैसे ही नापा तो उस का औक्सीजन लैवल
85 था. उस ने फोन कर के नितिन को बोला तो नितिन भी थोड़ा परेशान हो गया और बोला,”सोनल, प्रोन
पोजीशन में लेटी रहो.”
इधरउधर नितिन ने हाथपैर मारने शुरू किए. सब जगह पैसों के साथसाथ सिफारिश चाहिए थी. नितिन
के हाथ खाली थे. किसी तरह श्रेया की फ्रैंड की मदद से सोनल को अस्पताल तो मिल गया था पर दवाओं और टैस्ट के पैसे कौन देगा?
तभी कौरिडोर में एक सांवली मगर गठीली शरीर की नर्स आई और नितिन से मुखातिब होते हुए बोली,”सर, दवाएं यहां फ्री नहीं हैं.”
नितिन मायूसी से बोला,”जानता हूं पर घर में सब लोगों को कोविड है और मांपापा को कैसे ऐसे छोड़ देता, उसी चक्कर में सबकुछ लग गया. 2 बच्चे भी हैं, आप ही बताओ क्या करूं? बिजनैस में अलग से घाटा चल रहा है.”
नर्स का नाम ललिता था. वह 32 वर्ष की थी. उसे नितिन से थोड़ी सहानुभूति सी हो गई. उस ने कहा,”अच्छा सर, मैं कोशिश करती हूं.”
नितिन ने अचानक से ललिता का हाथ अपने हाथों में ले कर हलके से थपथपा दिया. ललित हक्कीबक्की रह गई थी. नितिन धीरे से बोला,”आई एम सौरी ललिता, पर तुम्हें पता है ना इंसान ऐसे पलों में कितना कमजोर पड़ जाता है.”
ललिता को लगा कि नितिन कितना केयरिंग है. अपने घरपरिवार को ले कर और एक उस का पहला पति था
एकदम निक्कमा. काश, मेरा पति भी इतना केयरिंग होता तो मुझे अपनी जान हथेली पर रख कर यह नौकरी नहीं करनी पड़ती.
नितिन विजयी भाव के साथ घर आया. उसे लग रहा था कि उस ने दवाओं का इंतजाम फ्री में ही कर दिया है. थोड़े से घड़ियाली आंसू बहा कर वह ललिता को पूरी तरह अपने शीशे में उतार लेगा.
नितिन के पास यही हुनर था, औरतों की भावनाओं को हवा दे कर उन को उल्लू बनाना. औरतों की झूठी
तारीफें करना और खुद अपना उल्लू सीधा करना.
ललिता ने सोनल की दवाओं का इंतजाम कर दिया था. नितिन ने नहा कर ब्लू कलर की शर्ट और जींस
पहनी. उसे पता था वह इस में कातिल लगता है. दोनों बच्चों को बुलाकर दूर से ही बोला,”बेटा, मैं मम्मी के पास जा रहा हूं, तुम लोग रह लोगे क्या अकेले?”
श्रेया डबडबाई आवाज में बोली,”पापा, मम्मी ठीक हो जाएंगी ना?”
नितिन इतना स्वार्थी था कि उसे अभी भी ललिता दिख रही थी. झुंझलाता हुआ बोला,”अरे भई, इसलिए तो वहां
जा रहा हूं, तुम क्यों रोधो रही हो?”
आर्यन श्रेया को चुप कराते हुए बोला,”दीदी, हम लोग हिम्मत नहीं हारेंगे, पापा आप जाओ.”
नितिन हौस्पिटल तो गया पर सोनल के पास जाने के बजाए घाघ लोमड़ी की तरह ललिता के बारे में
इधरउधर से पता लगाता रहा था. यह पता लगते ही कि ललिता का अपने पति से तलाक हो गया है नितिन
की बांछें खिल गई थीं. उधर सोनल का औक्सीजन लैवल डीप कर रहा था. हौस्पिटल में इतनी मारामारी थी
कि अगर मरीज का तीमारदार ध्यान ना दे तो मरीज की कोई सुधबुध नहीं लेता था.
नितिन बाहर से ही सोनल को देख रहा था. उस का बिलकुल भी मन नहीं था अंदर जाने का. तभी नितिन ने दूर से ललिता को आते हुए देखा, नितिन भाग कर अंदर सोनल के पास गया. नितिन ने देखा कि सोनल का
औक्सीजन लेवल 70 पहुंच चुका था. वह भाग कर ललिता के पास गया और घड़ियाली आंसू बहाते हुए
बोला,”ललिता, मेरी सोनल को बचा लो. घर पर बच्चों के लिए खाने का इंतजाम करने गया था.”
ललिता भागते हुए सोनल के पास पहुंची तो देखा औक्सीजन मास्क ठीक से लगा हुआ नहीं था. उस ने ठीक किया तो सोनल का औक्सिजन लैवल बढ़ने लगा. नितिन ललिता के करीब जाते हुए बोला,”ललिता, तुम मेरे लिए फरिश्ता बन कर आई हो.”
ललिता को नितिन से सहानुभूति सी हो गई थी. नरम स्वर में बोली,”आप चिंता मत करें, यह मेरा पर्सनल नंबर है. अगर जरूरत पड़े तो कौल कर लीजिएगा.”
नितिन को ललिता से और बात करनी थी, इसलिए बोला,”यहां कोई कैंटीन है, सुबह से कुछ नहीं खाया है. तुम्हें अजीब लग रहा होगा पर पापी पेट तो नहीं मानता ना.”
ललिता बोली,”आप मेरे साथ चलो…”
कैंटीन में बैठेबैठे 1 घंटा हो गया था. नितिन जितना झूठ बोल सकता था, उस ने बोल दिया था. ललिता जब
कैंटीन से बाहर निकली तो उसे लगा कि वह नितिन के बेहद करीब आ गई है. ललिता ने नितिन की मदद करने के उद्देश्य से अपनी ड्यूटी भी उस वार्ड में लगवा ली जिस में सोनल ऐडमिट थी. वह आतेजाते आंखों ही आंखों में नितिन को साहस देती रहती थी. नितिन को ललिता में अपना अगला शिकार मिल गया था. वह बेहया इंसान यहां तक सोच बैठा था कि अगर सोनल को कुछ हो गया तो वह ललिता को अपनी जिंदगी में शामिल कर लेगा. ललिता अकेली रहती है और अच्छाखासा कमाती है. दिखने में भी आकर्षक है और सब से बड़ी बात ललिता उसे पसंद भी करने लगी है.
अब नितिन का रोज का यह काम हो गया था, ललिता के साथ कैंटीन में खाना खाना और अपनी दुख की
कहानी कहना. ललिता को नितिन का आकर्षक रूपरंग और उस का अपने परिवार के लिए समर्पण आकर्षित
कर रहा था. उसे सपने में भी भान नहीं था कि नितिन इंसान के रूप में एक भेड़िया है.