पति विपुल की अचानक मृत्यु के गम से रेखा उभर नहीं पाई. वह डिप्रैशन में पहुंच गई. लाख कोशिश करने पर भी उठतेबैठते, खट्टीमीठी यादें उस के जेहन में उभर आतीं. विपुल के साथ गुजारे उन पलों को रेखा ने जीने का सहारा बना लिया.
रेखा को उदास देख कर मांजी को बहुत तकलीफ होती. उन की कोशिश होती कि रेखा खशु रहे. मांजी ने बहुत सम?ाने की कोशिश कर कहा, ‘‘जिस मां का जवान बेटा उस की आंखों के सामने गुजर जाए, उस मां के कलेजे से पूंछो, मु?ा पर क्या गुजरती होगी...’’ बेटे की मौत का गम कोई कम नहीं होता, मेरी आंखों के सामने मेरा जवान बेटा चला गया और मैं अभागिन बैठी रह गई. मैं किस के आगे रोऊं. मैं ने तो कलेजे पर पत्थर रख लिया, लेकिन बेटा हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं.’’
‘‘मांजी, विपुल अगर बीमार होते तो बात सम?ा में आती लेकिन अचानक विपुल का इस दुनिया को छोड़ कर चले जाना... न कुछ अपनी कही, न मेरी सुनी. मैं कितना अकेला महसूस कर रही हूं... कुछ कह भी नहीं पाई विपुल से.’’ ‘‘जिस के लिए तुम दुखी हो, वह मेरा भी बेटा था. एक बार मेरी तरफ देख मेरी बच्ची. वक्त हर जख्म का मरहम है. उसे जितना कुरेदोगी उतना उभर कर आएगा. शांत मन से सोच कर तो देखो. जो यादें तकलीफदेह हों,
उन्हें भूल जाना ही बेहतर है, बेटा,’’ मांजी ने रेखा के सिर पर हाथ रखा और कहा, ‘‘अब अपने बच्चे को देखो, यही हमारी दुनिया है. इस की खुशी में ही हमारी खुशी है. तुम खुश रहोगी तब ही मैं खुश रह पाऊंगी. विपुल और तुम एक ही औफिस में थे. तुम्हारे कंधों पर घर की जिम्मेदारी थी, इसलिए तुम्हें जौब छोड़नी पड़ी. अब बेटी वक्त आ गया है विपुल के छोड़े काम अब तुम्हें ही तो पूरे करने हैं. कल से तुम्हें औफिस भी जाना है. अब तुम्हें घर संभालना है... अब मैं तुम्हारी आंखों में आंसू न देखूं... चलो सोने की कोशिश करो.’’