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यह सुन मांजी को भी हंसी आ गई और कहा, ‘‘अरे बेटा हर मां अपने बच्चों के अच्छे के लिए सीख देती है. लाओ ब्लाउज मु?ो दे दो, हुक मैं लगा देती हूं. तुम्हें देर हो रही है... बबलू की बस निकल गई तो फिर तुम्हें ही स्कूल तक छोड़ना पड़ेगा.’’ इसी बीच बबलू स्कूल के लिए तैयार हो गया था. मांजी ने उसे नाश्ता दे दिया और पूछा, ‘‘बेटा, आज किस सब्जैक्ट का टैस्ट है?

‘‘अंगरेजी का दादी.’’

रेखा ने तैयार हो कर बबलू को आवाज लगाई, ‘‘चलो बेटा. मांजी आप नाश्ता कर लेना, मैं निकलती हूं.’’

‘‘बहू, तुम ने अपना लंच नहीं लिया?’’

‘‘नहीं मांजी आज बहुत देर हो गई... औफिस में ले कर कुछ खा लूंगी. बस तो निकल गई होगी मम्मी. घड़ी देखो, अब आप को ही छोड़ना पड़ेगा,’’ बबलू बोला.

‘‘उफ,’’ रेखा के मुंह से निकला.

मांजी बोली, ‘‘कल से मु?ो ही ध्यान करना पड़ेगा, लंच मैं पैक कर दिया करूंगी.’’

‘‘नहीं मांजी, ऐसा मत करना, मैं खुद ही पैक कर लिया करूंगी, आज थोड़ी देर हो गई, कल से सबकुछ समय से मैनेज कर लूंगी.’’

‘‘बेटा, मैं भी तो तुम्हारी मां जैसी हूं, अगर वे अपनी बेटी को इधरउधर दौड़तेभागते देखतीं तो वे भी ऐसे ही करती... सुबह के समय 50 काम होते हैं.’’

‘‘मांजी आप तो मेरी मां से भी बढ़ कर हैं. मेरी मां तो मु?ो 4 बातें सुना देतीं, कहतीं यहां तो बनाबनाया मिल रहा है बेटी. ससुराल में खुद ही बनाना होगा और खुद ही पैक करना होगा, अभी से आदत सुधार लो वरना ससुराल में कौन करेगा, तुम्हारी सास?’’ यह कह रेखा के चेहरे पर फिर मुसकान तैर गई और फिर आगे बोली, ‘‘हर काम में मेरी मां मु?ो सास का पहाड़ा याद करवा देती थीं.’’

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