‘‘परिवार में एकसाथ 3 लोगों का चले जाना मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई, उस पर बच्चे की परवरिश करना आसान नहीं था मेरे लिए.’’ दोनों ने एकदूसरे का दुख सुना और फिर मिलने का वादा किया. इस बीच दोनों बच्चों में भी दोस्ती हो गई.
बबलू ने खूब ऐंजौय किया. आज वह बहुत खुश था. कितने समय बाद उस ने बाहर का खाना खाया. आइस्क्रीम खाई और एक नया दोस्त भी बन गया. रेखा ने कहा, ‘‘चलें बेटा?’’
बबलू खुश होते हुए बोला, ‘‘हां मम्मी.’’
रेखा सुमित के बारे में सोचने लगी. उस
ने मांजी को सुमित के बारे में बताया. दोनों का दुख एक सा देख मांजी रेखा के लिए सुमित के सपने देखने लगीं. वे यह मौका खोना नहीं चाहती थीं. रेखा ने तो इसी तरह अकेले जीवन बिताने को अपनी नियति मान लिया था लेकिन मांजी ने ऐसा नहीं चाहा. बेटे विपुल को खोने के बाद बहू रेखा के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी हो ही नहीं सकता. जातेजाते रास्ते में एक बार फिर सुमित मिल गया. मांजी से रहा नहीं गया, कह बैठीं, ‘‘बेटा, मिलते रहना, मु?ो अच्छा लगेगा. अपना फोन नंबर दे दो बेटा.’’
‘‘जी, मांजी.’’
मांजी रेखा का मन जाने बिना सुमित के सपने देखने लगीं. अब मांजी हर 2 दिन बाद किसी न किसी बहाने सुमित और उस के बेटे को बुला लेतीं और खुश रहतीं. जैसा वह चाह रही थीं, वैसा ही हो रहा था. जिस दिन सुमित आता, मांजी दोनों को कमरे में छोड़ किसी न किसी बहाने वहां से चली जातीं.
रेखा का मन बदलने लगा. सुमित का साथ पा कर रेखा खुश रहने लगी. हर शाम सुमित का घर में इंतजार होता. सुमित परिवार का हिस्सा बनता जा रहा था. रेखा को भी सुमित का इंतजार रहता. घर में हंसी गूंजने लगी. दोनों बच्चे भी एकदूसरे के साथ खुश थे.