‘‘दिलसंभल जा जरा, फिर मुहब्बत करने चला है तू...’’ गाने की आवाज से मृदुला अपना फोन उठाने के लिए रसोई से भागी, जो ड्राइंगरूम में पड़ा यह गाना गा रहा था. नंबर पर नजर पड़ते ही उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. नाम फ्लैश नहीं हो रहा था, पर जो नंबर चमक रहा था वह उसे अच्छी तरह याद था. वह नंबर तो शायद वह सपने में भी न भूल पाए.
रोहन अपने कमरे से चिल्ला रहा था, ‘‘मौम, आप का फोन बज रहा है.’’
मृदुला ने झटके से फोन उठाया. एक नजर उस ने कमरे में टीवी देखने में व्यस्त ऋषि पर डाली और दूसरी नजर रोहन पर जो अपने कमरे में पढ़ रहा था. वह फोन उठा कर बाहर बालकनी की ओर बढ़ गई.
‘‘हैलो... हाय... क्या हाल हैं?’’
‘‘अब ठीक हूं,’’ उधर से आवाज आई.
‘‘क्यों? क्या हुआ?’’
‘‘बस तुम्हारी आवाज सुन ली बंदे का दिन अच्छा हो गया.’’
‘‘अच्छा, तो यह बात है... अच्छा बताओ फोन क्यों किया? आज मेरी याद कैसे आ गई? तुम अच्छे से जानते हो आज शनिवार है. ऋषि और रोहन दोनों घर पर होते हैं... ऐसे में बात करना मुश्किल होता है,’’ मृदुला जल्दीजल्दी कह रही थी.
‘‘मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया कि अब मुझ से ज्यादा सब्र नहीं होता. मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रहा हूं तुम से मिलने. प्लीज तुम किसी होटल में मेरे लिए कमरा बुक करवा दो जहां बस तुम हो और मैं और हो तनहाई,’’ सिद्धार्थ ने अपना दिल खोल कर रख दिया.
‘‘होटल? न बाबा न मैं होटल में मिलने नहीं आऊंगी.’’
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