बराती बनना एक कला है तथा हर भारतीय व्यक्ति इस कला का दक्ष कलाकार. बराती बनते ही आम भारतीय का मन हिरन की भांति कुलांचे भरने लगता है और महिलाएं तो चर्चा के दौरान यह कहते हुए कि आज शाम एक बरात में जाना है, अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करती हैं. शादी के मौसम में दफ्तरों में तो अनेक बाबुओं/अधिकारियों का लंच टाइम वगैरह तो शहर के रईसों की बरातीय व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन करने और बहसमुबाहिसों में ऐसे मजे से गुजरता है कि यू.पी.ए. सरकार का भी पिछले 4 वर्षों में क्या गुजरा होगा. बराती बनना अर्थात सामान्य से विशिष्ट बनना. घोड़ी के पीछे बरात में विचरण करना तो हर किसी को आम से खास का दर्जा दिलवाता है.
भारतवर्ष में प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं. उन में कुछ अघोषित अधिकार भी हैं. जैसे सड़क पर गंदगी करना, सार्वजनिक स्थान पर पान की पीक मारना, स्वयं की खुशी का इजहार ऐसे करना कि दूसरे दुखी हो जाएं. इसी तर्ज पर हमें एक और मौलिक अधिकार अनाधिकारिक रूप से प्राप्त है और वह है बराती होने का अधिकार. बराती बनना सिखाया नहीं जाता. यह गुण तो व्यक्ति नैसर्गिक रूप से अपने साथ ले कर पैदा होता है.
बराती होने की कुछ अर्हताएं होती हैं, जो या तो जन्मजात होती हैं या फिर अनुभवी बरातियों से सीखी जा सकती हैं. बराती बनने हेतु आप के पास 2 जोड़ी इस्तिरी किए हुए कपड़े होना प्राथमिक शर्त है, तो घोड़ी या बग्घी के सामने अपनी हैसियत से बढ़ कर नाचना बराती बनने की दूसरी शर्त. नागिन नाच नाचने वाले बराती ऊंची किस्म के माने जाते हैं तथा बरात में इन्हें विशिष्ट दर्जा भी प्राप्त होता है.
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