दीपा अपने औफिस की सीढि़यां चढ़ते हुए सोच रही थी, एक दिन मैं भी इस औफिस की बौस बनूंगी. तभी मोबाइल पर आशीष का फोन आ गया, ‘‘तुम कानन की नोटबुक कहां रख कर गई हो?’’
दीपा झंझला कर बोली, ‘‘यार ढूंढ़ लो,
अब औफिस से भी मैं घर के काम मौनिटर करूं?’’ आशीष ने झेंपी हुई हंसी के साथ मोबाइल काट दिया.
दीपा 26 वर्ष की बेहद महत्त्वाकांक्षी और आकर्षक नवयुवती थी. उस की उड़ान बेहद ऊंची थी, पर उस की शादी एक ऐसे इंसान से हो गई थी जो बेहद कमजोर था. मगर इस से दीपा की उड़ान पर कोई फर्क नहीं पड़ा था.
दूसरी बेटी के जन्म के बाद बढ़ते हुए खर्च को मद्दे नजर दीपा ने बड़ी बड़ी कंपनियों में अप्लाई करना शुरू कर दिया था और जल्द ही उसे कामयाबी भी मिल गई थी. आज उसी बड़ी कंपनी में दीपा का पहला दिन था.
दीपा ने अपने वर्क स्टेशन पर बैग रखा और इधरउधर जायजा लिया. उस ने देखा 2 बेहद ही मामूली शक्लसूरत की लड़कियां और 3 उजड़ से युवक उस की टीम में थे. दीपा को लगा इन देहातियों और मामूली शक्लसूरतों के बीच उस का काम आसान हो गया है.
अगले दिन पूरी टीम की टीम मैनेजर के साथ मीटिंग थी. दीपा ने घर आ कर शाम की चाय पी और फिर कमरा बंद कर के प्रेजैंटेशन में लग गई थी. दीपा को अच्छे से मालूम था कि कौन सा दांव कब खेलना है.
शाम के 7 बजे जब आशीष आया तो दोनों बच्चियों को नानी के साथ देख कर