40 वर्ष में ही राजी के बाल काफी सफेद हो गए थे. वह पार्लर जाती, बाल डाई करवा कर आ जाती. पार्लर वाली के लिए वह एक मोटी आसामी थी. राजी हर समय सुंदर दिखना चाहती थी. वह क्या उस का पति अनिरुद्ध और दोनों बेटियां भी तो यही चाहती थीं.
कौरपोरेट वर्ल्ड की जानीपहचानी हस्ती अनिरुद्ध कपूर का जब राजी से विवाह हुआ तब राजी रज्जो हुआ करती थी. मालूम नहीं अनिरुद्ध की मां को रज्जो में ऐसा क्या दिखा था. जयपुर में एक विवाह समारोह में उसे देख कर उन्होंने राजी को अनिरुद्ध के लिए अपने मन में बसा लिया. रज्जो विवाह कराने वाले पंडित शिवप्रसाद की बेटी थी. 12वीं पास रज्जो यों तो बहुत सलीके वाली थी, परंतु एमबीए अनिरुद्ध के लिए कहीं से भी फिट नहीं थी.
विवाह संपन्न होने के बाद अनिरुद्ध की मां ने पंडितजी के सामने अपने बेटे की शादी का प्रस्ताव रख दिया. पंडितजी के लिए यह प्रस्ताव उन के भोजन के थाल में परोसा हुआ ऐसा लड्डू था जो न निगलते बन रहा था न ही उगलते. वे असमंजस में थे. कहां वे ब्राह्मण और कहां लड़का पंजाबी. कहां लड़के का इतना बड़ा धनाढ्य और आधुनिक परिवार, कहां वे इतने गरीब. दोनों परिवारों में कोई मेल नहीं, जमीनआसमान का अंतर. वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस रिश्ते को स्वीकारें या नकारें.
पंडित शिवप्रसाद ने दबी जबान में पूछा, ‘बहनजी, लड़का...’
पंडितजी अभी अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे कि श्रीमती कपूर ने उन्हें बताया कि लड़का किसी सेमिनार में विदेश गया हुआ है. श्रीमती कपूर के साथ उन के पति श्रीदेश कपूर और अनिरुद्ध के दोनों छोेटे भाई भी इस विवाह समारोह में जयपुर आए थे. पंडितजी असमंजस में थे. ‘मैं समझ सकती हूं पंडितजी कि आप हमारे पंजाबी परिवार में अपनी बेटी को भेजने में झिझक रहे हैं. पर अब इन सब बातों में कुछ नहीं रखा है. मुझे ही देख लीजिए, मैं कायस्थ परिवार से हूं और कपूर साहब पंजाबी...तो क्या आप की बेटी हमारे पंजाबी परिवार की बहू नहीं बन सकती?’
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