नवंबर खत्म हो रहा था और सर्दी दस्तक दे चुकी थी, इसलिए सोसाइटी की औरतों का घर के बाहर चारपाई और कुरसियां डाल कर बैठना भी शुरू हो गया था. एक तरफ जहां उन के हाथ मूंगफली और रेवड़ी मुंह में डालते रहते, वहीं दूसरी ओर साग काटने का सिलसिला भी चलता रहता. बहुत सारी औरतें जब घर का काम निबटा धूप सेंकने के बहाने एकत्र होंगी तो जाहिर सी बात है घरघर की बातें होंगी. कौन आया, कौन गया से ले कर किस की लड़की का चक्कर किस के साथ चल रहा है और बहुओं की कामचोरी तक, आज क्या बना और महंगाई कितनी बढ़ गई है से ले कर अपनेअपने पति और सास की बातें तक.
उस दिन भी कमलेश अपना बहू पुराण ले कर बैठी थीं कि अपने मोटे, थुलथुल शरीर को ठेलती हुई हांफती सी मिसेज वर्मा कुरसी पर धम से बैठ गईं. पलभर के लिए सब को देखा और फिर पूरी टोली की ओर एक नजर डाली. उन के आने पर एक क्षण के लिए सब का ध्यान उन की ओर गया बेशक था, पर जब कमलेश फिर से अपनी बहू का रोना ले कर बैठ गईं तो सब उन्हें सुनने लगीं.
‘‘अरे कमलेश बहनजी, क्या बहू की बुराइयों में टाइम खराब कर रही हो? यहां सोसाइटी में 2 फ्लैट बिक गए हैं, वह भी एचआईजी,’’ यह सुन सारी औरतों के चेहरे पर हैरानी तैर गई. खबर थी भी चटपटी. मिसेज वर्मा को पता चल गया था जबकि वे सब बेखबर थीं.
मूंगफली को वापस प्लेट में डालते हुए मिसेज नारंग ने पूछा, ‘‘अरे, कब? पता नहीं चला. कौन से 2 फ्लैट बिके?’’ मिसेज नारंग का घर सोसाइटी में घुसते ही था. इसलिए उन्हें हर बात की खबर रहती थी और जो पता नहीं चलता उस की खबर वे गार्ड से ले लेती थीं. उन्हें अफसोस इस बात का था कि इतनी बड़ी चूक उन से आखिर हो कैसे गई.