‘‘आप ने बुलाया साहब?’’ राज्यमंत्री सोमेश्वर दयाल के सम्मुख उन के निजी सचिव योगेश हाथ बांधे खड़े थे.

‘‘हांहां, आसन ग्रहण कीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल ने सामने खुली फाइल से सिर उठाया, कुरसी की ओर संकेत किया और फिर सिर नीचे झुका लिया.

‘‘कोई विशेष कार्य है क्या, महोदय?’’ जब लगभग 15 मिनट बीत गए तो योगेश को लगा कि मंत्री उन की उपस्थिति को शायद भूल ही गए हैं.

‘‘देख नहीं रहे, मैं एक महत्त्वपूर्ण फाइल में व्यस्त हूं,’’ सोमेश्वर दयाल रूखे स्वर में बोले.

‘‘जी,’’ योगेश दांत पीस कर रह गए. वे जानते थे कि सोमेश्वर दयाल कुछ पढ़ नहीं रहे थे, केवल अपना महत्त्व दिखाने के लिए गरदन झुकाए बैठे थे.

अंतत: प्रतीक्षा की घडि़यां समाप्त हुईं और मंत्री ने एक पत्र योगेश की ओर बढ़ाया.

‘‘यह पत्र तो प्रधानमंत्री सचिवालय से आया है,’’ योगेश पत्र पढ़ते हुए बोले.

‘‘यह तो हम भी जानते हैं पर इस संबंध में आप क्या कार्यवाही करेंगे? वह कहिए?’’ सोमेश्वर दयाल बोले.

‘‘सार्वजनिक धन की बरबादी रोकने के लिए हमारे मंत्रालय द्वारा मितव्ययिता करने का सुझाव दिया गया है.’’

‘‘क्या मतलब है आप का? अब तक क्या हम अपव्यय करते रहे हैं?’’

‘‘वह बात नहीं महोदय, पर देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है और दाम आसमान छू रहे हैं. ऐसे में हर देशभक्त नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने व्यय पर अंकुश लगाए,’’ योगेश बोले.

‘‘ठीक है, ठीक है. भाषण देने की आवश्यकता नहीं. हमारे देश के लोगों में यह सब से बड़ी बीमारी है कि वे बोलते बहुत हैं. अब आप कर्मचारियों को व्यय कम करने के लिए एक क्रमबद्ध कार्यक्रम की सूचना दीजिए, जिस से छोटी से छोटी वस्तु पर होने वाले व्यय में भी कमी लाई जा सके. मैं चाहता हूं कि हमारा विभाग अन्य सभी के समक्ष एक आदर्श उपस्थित करे,’’ मंत्री महोदय ने फरमाया.

‘‘ठीक है महोदय, हम सब से पहले सब से छोटी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करेंगे, फिर उस से बड़ी…’’

‘‘ठीक है, मेरा विचार है, आप ‘आलपिन’ से आरंभ कीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल सोचते हुए बोले.

‘‘आलपिन?’’

‘‘जी हां, आलपिन.’’

‘‘मैं समझा नहीं साहब, आलपिन तो आवश्यकतानुसार ही प्रयोग में लाई जाती हैं, उन के अपव्यय का तो प्रश्न ही नहीं उठता,’’ योगेश व्यंग्यात्मक स्वर में बोले.

‘‘यहीं तो हम मात खा जाते हैं, योगेश भाई. छोटी से छोटी वस्तु के महत्त्व को भी यदि हम समझ लें तो अधिकतर समस्याएं स्वयं ही हल हो जाएं. क्या आप ने नहीं देखा कि आलपिनें इधरउधर पड़ी रहती हैं, कभीकभी तो एक ही स्थान पर 2-2 पिनें लगी देखी हैं मैं ने.’’

‘‘उस से व्यय में भला कितना अंतर पड़ेगा?’’ योगेश के स्वर में न चाहते हुए भी नाराजगी झलक आई.

‘‘आप छोटीछोटी वस्तुओं के महत्त्व को नहीं समझते और समझें भी कैसे? कभी गरीबी देखी हो तो आप जानें कि भूख से तड़पते लोगों के लिए चंद सिक्कों का भी कितना महत्त्व होता है.’’

‘‘ठीक है, महोदय, तो हम आलपिन से ही आरंभ करेंगे इस मितव्ययिता के अभियान को. इस के लिए क्या करना होगा?’’ योगेश शीघ्रता से बोले क्योंकि वे भली प्रकार जानते थे कि गरीबी मंत्री महोदय का अत्यंत प्रिय विषय है और उस पर वे बिना रुके कई घंटे तक भाषण दे सकते हैं.

‘‘पहले तो एक समिति गठित कीजिए, जो आलपिनों के अपव्यय के कारणों की जांच करे. फिर अपव्यय कितने प्रतिशत कम किया जा सकता है, इस विषय पर विचार करें और कैसे कम किया जा सकता है, यह भी सुझाएं,’’ सोमेश्वर दयाल ने समझाया.

‘‘ठीक है साहब, मैं चलता हूं और इस योजना के कार्यान्वयन की व्यवस्था करता हूं,’’ योगेश ने चैन की सांस ली.

‘‘जाते कहां हैं आप? पूरी बात तो सुनते जाइए.’’

‘‘जी.’’

‘‘इसी प्रकार कागज, फाइलें, पेन, परदे, रद्दी कागज डालने की टोकरियों के अपव्यय के संबंध में भी समितियां गठित कीजिए और उन से हुई या भविष्य में होने वाली बचत का लेखाजोखा तैयार कीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल पूर्णत: संतुष्ट स्वर में बोले.

योगेश मंत्री महोदय की आज्ञा का पालन करने के लिए अपने कार्यालय में पहुंचे. उधर सोमेश्वर दयाल अपने इस बचत कार्यक्रम के संबंध में सोचसोच कर स्वयं ही निहाल हुए जा रहे थे. अब उन्हें लगा कि इस अद्भुत बचत कार्य को प्रचारित भी किया जाना चाहिए, जिस से कि उन की बुद्धिमत्ता का लोहा सभी लोग मान जाएं. उसी दिन एक पत्रकार सम्मेलन में उन्होंने घोषणा की कि अधिक से अधिक क्षेत्रों में बचत कर वे एक नया कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं.

अब उस कार्यक्रम में लगभग हर क्षेत्र में बचत करने के लिए एक समिति गठित की गई, जो उस विशेष वस्तु की बचत के तरीकों और भावी बचत के लेखेजोखे की सूची तैयार करती थी.

उस दिन भी योगेश एक ऐसी ही समिति की बैठक में व्यस्त थे कि सोमेश्वर दयाल का बुलावा आया.

योगेश ने उन के कक्ष में पहुंच कर अभिवादन किया, तो पाया कि मंत्री महोदय काफी उत्तेजित थे.

‘‘क्या हुआ महोदय?’’ उन्होंने प्रश्न किया.

‘‘यह कहिए कि क्या नहीं हुआ? जरा इस फाइल को खोल कर तो देखिए, वित्त विभाग ने हमारी विदेश यात्रा से संबंधित क्या टिप्पणी लिख कर भेजी है?’’

‘‘क्या हुआ साहब? आप के विदेश जाने के संबंध में तो कुछ नहीं लिखा है, केवल आप के व्यक्तिगत सहायक के साथ जाने पर आपत्ति प्रकट की गई है,’’ फाइल खोल कर पढ़ते हुए योगेश बोले.

 ‘‘आप इसे ‘केवल’ कहते हैं? यह हमारी प्रतिष्ठा का प्रश्न है. वित्त विभाग में आप के सहयोगी जनार्दन ने हमें नीचा दिखाने के लिए ही यह कार्यवाही की है,’’ सोमेश्वर दयाल गरजे.

‘‘लेकिन महोदय, इस टिप्पणी में तो लिखा है कि कार्यवाही प्रधानमंत्री सचिवालय के आदेशों के आधार पर की गई है और आप प्रधानमंत्री को कई बार ‘संसार के महानतम नेता’ कह चुके हैं,’’ योगेश ने उन्हें शांत करना चाहा.

 

‘‘प्रधानमंत्री को तो हम अब भी अपना नेता मानते हैं किंतु प्रधानमंत्रीजी और उन का सचिवालय 2 अलगअलग चीजें हैं,’’ सोमेश्वर दयाल दुखी स्वर में बोले.

‘‘आप मेरी बात मानिए श्रीमान, इस मामले को अधिक तूल मत दीजिए. यह आप की छवि का प्रश्न है. आप नएनए मंत्री बने हैं और अभी केवल राज्यमंत्री हैं. हमारे विभाग के मंत्री तो पहले ही आप से नाराज हैं कि आप उन्हें उचित महत्त्व नहीं देते. इसलिए आप को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिस से आप के विरोधियों को आप पर कीचड़ उछालने का अवसर मिले,’’ योगेश ने पुन: प्रयत्न किया.

‘‘ठीक है, सोचेंगे,’’ मंत्री महोदय अनमने भाव से बोले.

‘‘तो मैं चलूं, साहब? खर्च में कटौती के संबंध में महत्त्वपूर्ण बैठक हो रही थी कि आप का बुलावा आया…मैं तो एकदम घबरा गया, तुरंत दौड़ा चला आया.’’

 

‘‘जाइए, आप सभा में भाग लीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल चिढ़ कर बोले. योगेश के जाते ही वे मन ही मन सोचने लगे, ‘समझ में नहीं आता कि मंत्री यह है या मैं?’

‘‘साहब हैं क्या?’’ सोमेश्वर दयाल कौफी की चुसकियों के साथ संगीत में डूबे हुए थे कि अपने व्यक्तिगत सहायक मनोहर का स्वर सुन कर चौंक गए,‘‘आओ मनोहर, कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं महोदय, कार्यालय में पता चला कि आप अचानक उठ कर घर चले गए. मैं तो सारे काम छोड़ कर दौड़ा चला आया कि पता नहीं क्या बात हो गई.’’

‘‘ऐसी कोई विशेष बात नहीं थी, यों ही जरा कमजोरी महसूस हो रही थी. सोचा घर जा कर आराम करूं,’’ सोमेश्वर दयाल बोले.

‘‘कमजोरी की बात को इस तरह लापरवाही से टालना ठीक नहीं, महोदय. आप आज्ञा दें तो चिकित्सक को बुला लाऊं, आप पूरी तरह जांच करवा लीजिए,’’ मनोहर ने विनम्रता से कहा.

‘‘नहीं, कोई विशेष बात नहीं है. थोड़ा आराम करने से तबीयत ठीक हो जाएगी. आप जरा चन्नू से कहिए कि थोड़ा तेल ले आए. वह सिर में मालिश कर देगा तो नींद आ जाएगी.’’

‘‘मुझे मालूम है, आप की तबीयत भारी हो तो बिना सिर में तेलमालिश करवाए आप को चैन नहीं मिलता. पर चन्नू ही क्यों, मैं किए देता हूं मालिश. आखिर आप मेरे बुजुर्ग हैं,’’ मनोहर ने चापलूसी भरे स्वर में कहा.

‘‘नहीं, आप चन्नू को ही बुलाइए और वह सामने की कुरसी खींच कर बैठ जाइए. आप से कुछ विचारविमर्श करना है.’’

‘‘जी, महोदय?’’ मनोहर का पूरा शरीर उत्सुकतावश आगे को झुक गया था.

‘‘मेरी अध्यक्षता में जो दल विदेश जाने वाला था, उस की यात्रा की स्वीकृति आ गई है,’’ सोमेश्वर दयाल ने मनोहर की उत्सुकता के उफनते दूध पर ठंडे पानी के छींटे दिए.

‘‘यह तो बड़ा अच्छा समाचार है, महोदय…फिर तो तैयारी प्रारंभ की जाए,’’ मनोहर की बांछें खिल गईं.

‘‘लेकिन…’’ सोमेश्वर दयाल धीरे से बोले.

‘‘लेकिन क्या महोदय?’’ मनोहर ने जल्दी से पूछा.

‘‘वित्त विभाग ने आप की यात्रा की स्वीकृति नहीं दी है. वे लोग कहते हैं कि राज्यमंत्री होने के कारण मैं अपने व्यक्तिगत सहायक को साथ नहीं ले जा सकता.’’

मनोहर की प्रसन्नता का उफान समुद्री लहरों के ज्वार की भांति चढ़ा था और भाटे की भांति उतर गया. उस एक ही क्षण में न जाने उस के चेहरे पर कितने रंग आए और चले गए. पर तुरंत ही उन्होंने स्वयं को संभाल लिया, ‘‘आप मन मैला न कीजिए हुजूर…हम तो सेवक हैं, आप की सेवा का अवसर मिल जाता तो धन्य हो जाते. किंतु जैसी सरकार की मरजी. वैसे भी मेरे जैसे तुच्छ व्यक्ति का जाना क्या और न जाना क्या. लेकिन केवल एक बात का दुख है.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘वे लोग हमें मोहरा बना कर आप को चुनौती दे गए,’’ मनोहर मंत्री महोदय की आंखों में झांकते हुए बोले.

‘‘क्या कह रहे हैं आप? कौन किसे चुनौती दे गया?’’ सोमेश्वर दयाल उलझन में थे.

‘‘धीरे बोलिए महोदय, दीवारों के भी कान होते हैं.’’

‘‘अच्छा बताओ, क्या बात है?’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मंत्री महोदय इस बात को कभी सहजता से नहीं ले पाए कि राज्यमंत्री होते हुए भी आप को अधिक अधिकार मिले हैं जबकि उन के कार्यक्षेत्र में कम महत्त्वपूर्ण उपविभाग रह गए हैं. उन के वित्त विभाग में काफी लोग हैं, उन्हीं से सांठगांठ कर उन्होंने मेरी यात्रा रद्द करवा दी. इस तरह उन्होंने एक तीर से दो शिकार किए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘एक तो मेरे न जाने से आप की पीठ पीछे क्या हो रहा है, आप को पता नहीं चलेगा. दूसरे, इस रूप में उन्होंने आप को चुनौती दी है कि उन्हें कमजोर समझना ठीक नहीं, उन के हाथ बहुत लंबे हैं और वे जब चाहें आप को नीचा दिखा सकते हैं,’’ मनोहर समझाने के लहजे में बोले.

‘‘हूं…बात तो तुम्हारी सोलहोंआने सही है, पर प्रश्न यह उठता है कि अब किया क्या जाए?’’ मंत्री महोदय दुखी स्वर में बोले.

 

‘‘आप क्यों मेरे लिए मुसीबत मोल लेते हैं, साहब. मुझे अपनी नहीं, आप की चिंता है. विदेश यात्रा का क्या है, आप की गद्दी बनी रहे, स्वास्थ्य बना रहे, हमें ऐसे अनेक अवसर मिलेंगे. अच्छा, अब मुझे आज्ञा दीजिए,’’ चन्नू सिर की मालिश करने के लिए तेल ले आया तो मनोहर ने विदा ली.

मनोहर चले तो गए पर अपनी चतुराई से भूसे में ऐसी चिनगारी छोड़ गए, जिस के बुझने का प्रश्न ही नहीं था. चन्नू मालिश करता रहा और वे उबलते रहे कि उन की इतनी भी औकात नहीं कि अपने व्यक्तिगत सहायक को साथ ले जा सकें? मंत्री महोदय यदि यह सोचते हैं कि राज्यमंत्री को वे जैसे चाहें, वैसे नचा सकते हैं तो बड़ी भूल कर रहे हैं, सोमेश्वर दयाल रात भर सो नहीं सके.

सुबह कार्यालय खुलते ही वे सीधे वित्त मंत्रालय जा पहुंचे. वरिष्ठ सरकारी अधिकारी जनार्दन जब अपने कक्ष में पहुंचे तो सोमेश्वर दयाल को वहां बैठे देख कर हैरान रह गए, ‘‘मंत्री महोदय आप? कोई आवश्यक कार्य था तो मुझे बुला लिया होता,’’ छूटते ही उन के मुख से निकला.

‘‘यह दिखावा बंद कीजिए, आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं किस कार्य से आया हूं.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप?’’ जनार्दन आश्चर्य से बोले.

‘‘यदि आप सोचते हैं कि मेरे व्यक्तिगत सहायक की विदेश यात्रा रद्द कर आप और हमारे विभाग के मंत्रीजी मेरे विरुद्ध सांठगांठ करने में सफल हो जाएंगे तो भूल जाइए.’’

‘‘आप विश्वास कीजिए मंत्री महोदय, ऐसा कुछ नहीं है. हम ने तो मात्र प्रधानमंत्री सचिवालय के आदेश का पालन किया है,’’ जनार्दन ने कहा.

‘‘मैं आप को अन्य राज्यमंत्रियों के ही अनेक व्यक्तिगत सहायकों के नाम गिनवा सकता हूं जो विदेश यात्रा पर गए थे. मेरी बारी आई, तभी आप को यह आदेश याद आया?’’ सोमेश्वर दयाल गरजे.

‘‘पहले जो लोग गए थे, उन के संबंध में मैं नहीं जानता, किंतु सरकारी खर्च में कटौती के लिए जो आदेश हमारे पास आए हैं, उन में से एक यह भी है.’’

 

‘‘मैं सब समझता हूं, यदि आप ने मुझे चुनौती दी है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं. यदि मेरा व्यक्तिगत सहायक मेरे साथ नहीं गया तो मैं भी नहीं जाऊंगा,’’ कह कर क्रोध से बौखलाए हुए सोमेश्वर दयाल बाहर निकल गए.

थोड़ी देर बाद जनार्दन किसी फाइल में खोए हुए थे कि योगेश ने कक्ष में प्रवेश किया.

‘‘आओ, आओ योगेश बाबू, बड़े दिन में दर्शन दिए. कहो, ठंडा लोगे या गरम,’’?जनार्दन ने प्रसन्न मुद्रा में पूछा.

‘‘कुछ भी पिला दो. इतना थक गया कि मन होता है, सबकुछ छोड़ कर संन्यास ले लूं,’’ योगेश थके स्वर में बोले. 

 ‘‘आज सुबह आप के मंत्रीजी यहां भी पधारे थे,’’ जनार्दन बोले.

‘‘अच्छा, तो आप को भी कृतार्थ कर गए हैं. फिर तो आप भी वस्तुस्थिति से पूर्णतया अवगत होंगे. सोमेश्वर दयाल तो अपने व्यक्तिगत सहायक को साथ ले जाने के लिए ऐसे मचल रहे हैं, जैसे बालक झुनझुने के लिए मचलता है.’’

‘‘आप क्या कर रहे हैं, उन्हें प्रसन्न रखने के लिए?’’

‘‘झख मार रहे हैं. सुबह से प्रधानमंत्री सचिवालय में सब के हाथ जोड़जोड़ कर मनोहर के यात्रा संबंधी पत्र पर हस्ताक्षर करवाए हैं. अब आप के पास आया हूं. आप भी हस्ताक्षर कर दीजिए तो मैं भी चैन की सांस लूं.’’

‘‘जब आप प्रधानमंत्री सचिवालय से आज्ञा ले ही आए हैं तो मुझे भला क्या एतराज हो सकता है. पर सोमेश्वर दयाल ने बड़े जोरशोर से खर्च में कटौती करने की प्रधानमंत्री की अपील की चुनौती को स्वीकार किया था, अब उस का क्या होगा?’’

‘‘उस चुनौती का सामना हम योजना- बद्ध तरीके से कर रहे हैं,’’ योगेश हंसे.

‘‘वह कैसे?’’ जनार्दन ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सोमेश्वर दयाल के आदेशानुसार आलपिन से प्रारंभ कर बड़ी से बड़ी वस्तु के खर्च में कटौती करने के लिए कई समितियां गठित की गई हैं. पहले ये समितियां अपना लेखाजोखा प्रस्तुत करेंगी, उन उपायों से खर्च में कितनी कटौती होगी, यह बताएंगी…’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर हम कुल कटौती का आकलन करेंगे और ये कार्य पूरे करने तक मंत्री महोदय विदेश यात्रा से लौट आएंगे.’’

‘‘ठहरो, आगे की बात मैं बताता हूं,’’ जनार्दन हंसे.

 

‘‘सोमेश्वर दयाल लौट कर एक पत्रकार सम्मेलन बुलाएंगे और प्रधानमंत्री सचिवालय की व्यय कम करने की चुनौती उन्होंने कैसे स्वीकार की, यह सब बताएंगे.’’

‘‘आप तो सबकुछ जानते हैं, जनार्दनजी, क्यों न हो आखिर इतने वर्षों का अनुभव जो है,’’ योगेश जोर से हंसे.

‘‘हां, और सबकुछ जानते हुए भी आप सोमेश्वर दयाल के पार्श्व में खड़े हो कर तालियों और मुसकान के साथ फोटो खिंचवाएंगे,’’ जनार्दन गंभीर स्वर में बोले.

‘‘हूं, जनार्दनजी, आप फिर बहकने लगे. सरकारी नौकरी करनी है तो दार्शनिकता से कोसों दूर रहना सीखिए और जब नेतागण कहते हैं कि खर्च में कटौती हो रही है तो उस पर विश्वास करने की आदत डालिए,’’ योगेश बोले तो जनार्दन के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान खेल गई, जो बिना कहे ही मानो सबकुछ कह गई.   

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