सपना से मेरी मुलाकात दिल्ली में कमानी औडिटोरियम में हुई थी. वह मेरे बगल वाली सीट पर बैठी नाटक देख रही थी. बातोंबातों में उस ने बताया कि उस के मामा थिएटर करते हैं और वह उन्हीं के आग्रह पर आई है. वह एमएससी कर रही थी. मैं ने भी अपना परिचय दिया. 3 घंटे के शो के दौरान हम दोनों कहीं से नहीं लगे कि पहली बार एकदूसरे से मिल रहे हैं. सपना तो इतनी बिंदास लगी कि बेहिचक उस ने मुझे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया.
एक सप्ताह गुजर गया. पढ़ाई में व्यस्तता के चलते मुझे सपना का खयाल ही नहीं आया. एक दिन अनायास मोबाइल से खेलते सपना का नंबर नाम के साथ आया, तो वह मेरे जेहन में तैर गई. मैं ने उत्सुकतावश सपना का नंबर मिलाया.
‘हैलो, सपना.’
‘हां, कौन?’
‘मैं सुमित.’
सपना ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया तो उसे सहसा याद आया, ‘सुमित नाटक वाले.’
‘ऐसा मत कहो भई, मैं नाटक में अपना कैरियर बनाने वाला नहीं,’ मैं हंस कर बोला.
‘माफ करना, मेरे मुंह से ऐसे ही निकल गया,’ उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.
‘ओकेओके,’ मैं ने टाला.
‘फोन करती, पर क्या करूं 15 दिन बाद फर्स्ट ईयर के पेपर हैं.’ उस के स्वर से लाचारी स्पष्ट झलक रही थी.
‘किस का फोन था?’ मां ने पूछा.
‘मेरे एक फ्रैंड सुमित का. पिछले हफ्ते मैं उस से मिली थी.’ सपना ने मां को याद दिलाया.
‘क्या करता है वह?’ मां ने पूछा.
‘यूपीपीसीएस की तैयारी कर रहा है दिल्ली में रह कर.’
‘दिल्ली क्या आईएएस के लिए आया था? इस का मतलब वह भी यूपी का होगा.’