दोस्त होते ही इसलिए हैं कि वे एकदूसरे का वक्तबेवक्त टाइम खोटा कर सकें. दोस्तों के फायदे भी बहुत हैं. दोस्तों का एक सब से बड़ा लाभ यह है कि इन के सामने दिल का गुबार निकालने में आसानी रहती है. घर के सदस्यों से सारी बातें नहीं कही जा सकतीं. घर में रह कर मन में जो कुंठाएं जमा होती रहती हैं उन्हें निकालने के लिए दफ्तर बिलकुल सही जगह है. दफ्तर सरकारी हो तो फिर डर काहे का. पूरे दिन लगे रहो गपशप में. किसी के बाप का क्या जाता है.
मिसेज गुप्ता ने अपनी पहली फाइल खोली ही थी कि मिसेज कपूर उन से हैलोहाय करने आ गईं. पास रखी कुरसी पर लदते ही वे लगीं चहकने, ‘‘मैडम, आज बहुत उदास दिख रही हैं आप. कामवाली नहीं आई थी क्या?’’
मिसेज गुप्ता ने फाइल बंद कर दी. पूरा दिन तो खिचखिच रहती ही है. दफ्तर में सुबहसुबह काम करने का मूड बनाना बहुत कठिन काम है. कई तरह की अड़चनें आती हैं. घर से दुखी हो कर आए लोग अपनीअपनी रामकहानी ले कर बैठ जाते हैं. दफ्तर के सब से बड़े खड़ूस बौस से भी दफ्तर की खुर्रांट लेडीज इतनी नहीं डरतीं जितनी कि वे इन झाड़ूपोंछा वाली यानी कामवालियों से त्रस्त रहती हैं. दफ्तर जाने वाली महिलाओं का नाजायज फायदा भी उठाती हैं ये कामवालियां.
कलम कलमदान में रखते हुए मिसेज गुप्ता बोलीं, ‘‘क्या बताऊं मैडम, सुबहसुबह अपने श्रीमानजी से पंगा हो गया. आप को बताया था न कि मेरी ननद के साथ रिहायशी प्लौट को ले कर झंझट पड़ा हुआ है. मेरी ननद किराए के घर में रहती है. मेरी सास हमारा यह प्लौट उसे दिलवाना चाहती हैं जबकि पिछले 5 साल से हम पेट काटकाट कर उस प्लौट की किस्तें भर रहे हैं. खुले बाजार में प्लौट की कीमत 10 लाख से ऊपर चली गई है. ऐसे में सिर्फ बेसिक कीमत पर अपनी ननद को प्लौट दे देने में हम राजी कैसे हों? ‘हां’ तो मेरे श्रीमानजी ने भी नहीं की, मगर हर तरफ से हम पर दबाव डाला जा रहा है. जहां जाओ, रिश्तेदार कहते हैं कि मुझे यह प्लौट अपनी गरीब ननद को दे देना चाहिए. हम भला कुरबानी क्यों दें?’’