प्रदेश ही नहीं, देशभर में इस समय खुदाई का कार्यक्रम तीव्रता से चल रहा है. उत्तर (उत्तराखंड), दक्षिण (गोआ, कर्नाटक), पश्चिम (गुजरात), मध्य (राजस्थान, मध्य प्रदेश) से ले कर पूर्व (ओडिशा) तक देश का कोई कोना ऐसा नहीं होगा जहां खनन का यह महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम न चल रहा हो. कोई दल, कोई नेता इस विकासवादी कार्य में पीछे नहीं रहना चाहता.
सत्तापक्ष हो या विपक्ष, जिसे जहां मौका मिल रहा है, छैनीहथौड़ा ले कर इस पुण्य कार्य को कर रहा है. लगता है, सब ने देश की इंचइंच भूमि को खोदने का दृढ़ निश्चय कर लिया है. शायद सभी पार्टियों के नेता यह दर्शाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं कि भारत एक गरीब देश नहीं है, यहां की जमीन बहुमूल्य खनिज पदार्थों से भरी पड़ी है. खनन कार्य द्वारा हमारे नेता राष्ट्र को एक समृद्ध तथा धनी देश के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, स्थापित करना चाहते हैं. वे उस के माथे से गरीब (अविकसित) देश का ठप्पा हटाना चाहते हैं, उस की प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहते हैं. राष्ट्र विकास के इस बड़े कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर अपनी सहभागिता निभाना चाहते हैं. इस कार्य के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं, किसी भी सीमा तक जा सकते हैं.
राष्ट्र की खुदाई के उन के इस कार्य में जो भी बाधक बने, वे उस का उचित इंतजाम कर देते हैं, सबक सिखा देते हैं. राष्ट्र की खुदाई के लिए वे कानूनों को धता बता सकते हैं, कानूनों को तोड़ सकते हैं कानून के रखवालों की हत्या तक करवा सकते हैं.
सभी ओर सभी स्तरों पर खुदाई का कार्य जारी है. सभी जोरशोर से इस कार्य में लगे हुए हैं. यदि कोई स्वयं खनन का कार्य नहीं कर रहा है तो वह दूसरों के खनन की, उन के कारनामों की खुदाई कर रहा है, गड़े मुरदे उखाड़ रहा है. विपक्ष, सत्तापक्ष के कारनामों को खोद निकालने और फिर उसे जनता को बताने की कोशिश कर रहा है. इन कारनामों के बहाने, वह सत्तापक्ष की जड़ें खोदना चाहता है, जिस से आने वाले चुनावों में उसे उखाड़ फेंका जा सके. सत्तापक्ष अपने कारनामों से देश की जड़ें खोद रहा है. अपनी जनकल्याणकारी (?) नीतियों से भ्रष्टाचार व महंगाई को बढ़ा रहा है.