पदार्थ की घनत्व संबंधी एक खोज में आर्कमिडीज भी बहुत दिनों तक लगे रहे थे. एक दिन बाथटब में नहाते समय उन को अपनी समस्या का एक ‘क्लू’ मिला. वे मारे खुशी के नाच उठे थे और बाथटब से नंगे ही बाहर निकल भागे थे. ठीक उसी तर्ज पर मैं कपास के किसानों की आत्महत्या के संबंध में खोज करने में एक मुद्दत से लगा हुआ था. जैसे ही मुझे एक ‘क्लू’ मिला कि आत्महत्या तो उन की नियति ही है, उन का जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इनरवियर पहने ही अपने कक्ष से बाहर निकल कर एक हम्माम की तरफ भागा, पर पाया कि वहां तो पहले ही से सारे के सारे नंगे नहा रहे थे. मेरे बदन पर एक कपड़ा निचोड़ने के मकसद से तो था, उन के पास तो निचोड़ने तक को कुछ नहीं था. लेकिन फिर भी सब खुश थे.

मेरे भद्र पाठक, यानी आप सब इस समय कपड़े पहने होंगे, शर्मोहया वाले होंगे, यह मान कर मैं अपनी खोज शेयर करने जा रहा हूं. मेरी खोज कहती है कि जब से बड़ी मौडलों और हीरोइनों ने कपड़े पहनने लगभग खत्म ही कर दिए, तो कपास के किसानों को तो आत्महत्या करनी ही थी, आखिर उन की रोजीरोटी तो छिन ही गई न.

जिन के तन पर गरीबी के कारण कपड़े नहीं उन को तो खैरात में दिए जा सकते हैं पर जो अमीरी या फैशन के कारण कपड़े पहनना ही नहीं चाहते, प्रजातंत्र में उन के साथ जबरदस्ती तो नहीं की जा सकती न. विडंबना यह है कि अब मुल्क का बहुमत अमीरों और मौडलों का है, लिहाजा नंगई भी उसी अनुपात में पांव पसार चुकी है. इस संदर्भ में मैं ने जब कुछ खास मौडलों से बात की तो पता चला कि मुल्क में एक प्रजाति उन से भी चार हाथ बढ़ कर है. मुझे उन को छोड़ कर उन बड़े नंगों की तरफ अपना रुख करना चाहिए जो शरीर से तो नंगे हैं ही, जमीर से भी नंगे हैं.

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