शिखा की निगाहें भीड़ में अपनी बेटी को ढूंढ़ रही थीं. आज स्कूल का ऐनुअल फंक्शन था. रंगबिरंगी पोशाकें पहने बच्चे स्टेज पर थिरकते बड़े प्यारे लग रहे थे.
‘‘अरे मां, वह देखो अपनी पिहुल सब से आगे खड़ी है,’’ खुशी के आवेश में शिखा भूल गई कि पीछे और भी पेरैंट्स बैठे हैं.
राष्ट्रगान के साथ समारोह समाप्त हो गया. अब बच्चों को उन की क्लास से लेना था. अत: शिखा मां से बोली, ‘‘आप गाड़ी में जा कर बैठो, मैं पिहुल को ले कर आती हूं.’’
क्लास में जा कर शिखा ने पिहुल को लिया. सीढि़यों पर काफी भीड़ थी. धक्कामुक्की से सीढि़यों पर उस का पर्स गिर गया.
तभी नीचे से आती एक महिला ने उस का पर्स उठा कर उसे देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए अपना पर्स. ये पेरैंट्स ऐसे ही होते हैं... सभी को अपने बच्चे को ले जाने की जल्दी है.’’
‘‘थैंक्यू,’’ कह जैसे ही शिखा ने उस औरत की तरफ देखा तो हैरानी से बोली, ‘‘अरे सीमा तुम यहां कैसे?’’
‘‘हां शिखा, पहचान गई... यह तुम्हारी बेटी है क्या? बड़ी प्यारी है,’’ कह सीमा पिहुल को प्यार करने लगी.
शिखा पिहुल का हाथ पकड़ बोली, ‘‘पिहुल चलो, दादी बाहर हमारा इंतजार कर रही हैं.’’
सीमा शिखा को कार में जाते देखती रही. उस की शानोशौकत, पहनावा और महंगी गाड़ी देख कर सीमा के मन में लालच आ गया. उस ने स्कूल से शिखा के घर का पता और फोन नंबर ले शिखा को फोन किया. पहले तो उस ने शिखा से नौर्मल बातचीत की, फिर असली मुद्दे पर आ गई. साफसाफ लफ्जों में बोली, ‘‘देखो शिखा, मुझे ज्यादा घुमाफिरा कर बात करना नहीं आता. मुझे 5 हजार की जरूरत है. तुम मुझे रुपए दे दो.’’