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रैस्टोरैंट के हौल में दाखिल हो कर सुमिता ने इधरउधर देखा. सारी मेजें भरी हुई थीं. वह इस रैस्टोरैंट की रैगुलर कस्टमर थी. स्टाफ उस को पहचानता था. हैडवेटर भी तनिक शर्मिंदा था. वह मन ही मन सोच रहा था, ‘मोटा टिप देने वाली मैडम को आज कोई मेज खाली नहीं मिली.’

‘‘मैडम…’’ आ कर वह सौरी बोलता इस से पहले ही सुमिता ने कहा, ‘‘डोंट माइंड, आज रश है.’’

वह जैसे ही वापस जाने को मुड़ी तभी उस की नजर हौल के तनहा कोने में बैठे एक गंभीर सूरत वाले नौजवान पर पड़ी. खयालों में खोया वह नवयुवक फ्रूट जूस के गिलास से धीरेधीरे चुसकियां ले रहा था.

वह तनहा कोना सुमिता को बहुत पसंद था मगर आज वह भी खाली नहीं था. गोल मेज के इर्दगिर्द सिर्फ 2 ही कुरसियां थीं. एक खाली थी दूसरी पर हलकीहलकी दाढ़ी और आंखों पर नजर का चश्मा लगाए गंभीर सूरत वाला वही नौजवान बैठा था.

कुछ सोच कर सुमिता उस मेज के समीप पहुंची. आगंतुक को देख कर नौजवान तनिक चौंका फिर उस ने सवालिया नजरों से सुमिता को देखा.

‘‘आप के सामने की सीट खाली है, अगर माइंड न करें तो मैं बैठ जाऊं?’’ थोड़े संकोच भरे स्वर में सुमिता ने कहा.

‘‘शौक से बैठिए, आई डोंट माइंड’’, स्थिर स्वर में नौजवान ने कहा.

सुमिता ने कुरसी खिसकाई और उस पर बैठ गई. सामने बैठा नौजवान निर्विकार ढंग से अपने फ्रूट जूस के गिलास से चुसकियां लेता रहा.

सुमिता बहुत सुंदर थी. उस का फिगर काफी सुडौल और आकर्षक था. उस को देखते ही नौजवान और अधेड़ कुत्ते की तरह लार टपकाने और जीभ लपलपाने लगते थे. मगर सामने बैठा नवयुवक उस सौंदर्य से लापरवाह था.

सुमिता एक कौल सैंटर में ऊंचे पद पर काम करती थी, उसे मोटी तनख्वाह मिलती थी. वह सैरसपाटा करने, खानेपीने के लिए कभी अकेली तो कभी किसी सहेली या सहयोगी के साथ इस रैस्टोरैंट में आतीजाती थी. यह रैस्टोरैंट उसे काफी पसंद था.

तभी उस का स्थायी वेटर उस के सामने आ गया.

‘‘मैडम…’’

यह सुनते ही सुमिता ने एक क्षण सामने देखा. सामने बैठा नवयुवक फ्रूट जूस पी कर गिलास मेज पर रख कर मैन्यू पढ़ रहा था.

‘‘माई और्डर इज सेम.’’

सिर हिलाता वेटर लौट गया. थोड़ी देर बाद वेटर उस  पसंदीदा लाइट ड्रिंक और फ्रैंच फ्राइज की प्लेट रख कर चला गया.

उस नवयुवक ने भी अपना और्डर दे दिया. वेटर उस का और्डर भी सर्व कर गया. नवयुवक खातापीता रहा. थोड़ी देर बाद सुमिता का खाने का और्डर भी सर्व हो गया. वेटर उस की पसंद जानता था.

आमनेसामने बैठे खापी रहे दोनों नौजवान युवकयुवती थे. युवती मन ही मन सोच रही थी कि नौजवान उस की तरफ ललचाई नजरों से अवश्य देखेगा, लार टपकाएगा व उस पर लाइन मारने की कोशिश करेगा. मगर एक यंत्रचलित पुतले के समान सामने बैठा नौजवान बिना किसी भाव के खातापीता रहा.

बिल अदा कर सुमिता उठ कर खड़ी हुई लेकिन अभी तक वह नवयुवक खाना खा ही रहा था. ‘अजीब आदमी है, शायद सैडिस्ट है.’ सोचती हुई वह बाहर आ गई.

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थोड़े दिन बाद एक शौपिंग मौल की लिफ्ट में जाते समय उस का सामना फिर से उसी सैडिस्ट से हो गया. पहले की तरह वह अब भी निर्विकार था.

‘‘अरे, वह नौजवान या तो कोई फिलौसफर होगा या फिर इंपोटैंट व्यक्ति.’’ उस की कौल सैंटर की सहयोगी नीरू ने कहा.

‘‘अरे, अगर वह इंपोटैंट हुआ या फिलौसफर तब भी इस के किसी का काम का नहीं है,’’ शालू ने कहा.

‘‘वैसे क्या तेरी उस में दिलचस्पी है,’’ नीरू ने शरारत भरी नजरों से उस की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘अरे, इस के ईगो पर चोट पहुंची है, क्योंकि वह न तो इस के फिगर से इंप्रैस हुआ न ही बातों से. इस को उम्मीद थी कि वह इस को देखते ही ललचाएगा, लार टपकाएगा, मगर उस ने तो इस की तरफ ध्यान से देखा भी नहीं,’’ शालू का तीर निशाने पर लगा.

पहले सुमिता तिलमिलाई फिर खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के साथ सभी सहेलियां हंस पड़ीं.

‘‘अगर वह युवक तुझ से इंप्रैस हो जाए और दोस्ती कर ले तब क्या खिलाएगी,’’ मीनाक्षी ने शरारत से कहा.

‘‘इस के पसंदीदा रैस्टोरैंट में लंच करेेंगे,’’ एक सहेली ने कहा.

‘‘लंच का टाइम तो अब भी हो गया है,’’ नीरू की इस बात पर सब सहेलियां अपनाअपना टिफिन खोलने लगीं.

शाम को सब का कार्यक्रम हलके जलपान का बन गया. सब उसी रैस्टोरैंट में पहुंचीं. तभी सुमिता की नजर एक कोने में मेज के करीब बैठे नौजवान पर पड़ी. सभी ने उस की नजर का अनुसरण किया.

‘‘अरे, क्या वही फिलौसफर तो नहीं,’’ नीरू ने कहा.

‘‘वही है.’’

‘‘चलो, हम उस से इंट्रोडक्शन करती हैं.’’

सुमिता पहले तो सकुचाई, लेकिन फिर वह उन के साथ उस नौजवान की मेज के समीप पहुंची.

‘‘हैलो, हैंडसम,’’ सुंदर नवयुवतियों को एकसाथ मेज के पास आ कर खड़े होने और बेबाकी से उस को हैलो, बोलता देख नौजवान सकपकाया.

‘‘हैलो,’’ सुमिता को देख उस की आंखों में पहचान के भाव उभरे मगर वह असमंजस में पड़ा उन को देखता रहा.

‘‘यह आप से पहले भी मिल चुकी है, यह कहती है कि आप शायद कोई फिलौसफर हैं इसलिए हम आप से परिचय करना चाहते हैं,’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ओह, श्योर. बैठिए,’’ सामने पड़ी कुरसी की तरफ इशारा करते हुए उस नौजवान ने कहा. सामने एक ही कुरसी थी

3 कुरसियां और लग गईं. ‘‘आप का नाम,’’ उस नौजवान से नीरू ने पूछा.

‘‘मोहित,’’ संक्षिप्त सा जवाब मिला.

‘‘आप क्या करते हैं,’’ दूसरा सवाल मीनाक्षी का था.

‘‘मैं आर्टिस्ट हूं. विज्ञापन कंपनियों के लिए डिजाइन बनाता हूं.’’

‘‘आर्टिस्ट भी फिलौसफर ही होता है,’’ इस टिप्पणी पर सब सहेलियां हंस पड़ीं.

‘‘मेरे मामाजी कहते हैं लेखन, चित्रकला, फिलौसफी सब असामान्य मस्तिष्क के लोगों के काम ही होते हैं,’’ शेफाली की इस बात पर सब सहेलियां फिर हंस पड़ीं. मोहित भी मुसकरा पड़ा.

‘‘अरे, तू भी तो कुछ बोल, असल फिलौसफर तो तू है,’’ नीरू ने सुमिता को कहा.

‘‘मिस्टर, आप का स्टूडियो कहां है?’’ पहली बार सुमिता ने सवाल किया.

इस पर मोहित ने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर थमा दिया.

‘‘अब आप हमें कुछ खिलाएंगे या फिर हम आप की खिदमत करें,’’ नीरू ने आंखें मटकाते हुए कहा.

इस पर मोहित हलका सा हंसा और सिर झुकाते हुए बोला, ‘‘फरमाइए, आप की खिदमत में क्या पेश करूं?’’

उस की इस अदा पर सब खिलखिला कर हंस पड़े. फिर सब ने मैन्यू पढ़ कर अपनीअपनी पसंद का और्डर दिया. हलकीफुलकी बातें करतेकरते हंसते हुए खायापिया. अच्छाखासा बिल आया जो मोहित ने मुसकराते हुए अदा किया. फिर अपने कौल सैंटर का पता और सुमिता का मोबाइल नंबर दे कर सब चली आईं.

मोहित अपने स्टूडियो में बैठा सोच रहा था कि वह कंप्यूटर पर ग्राफिक डिजाइन बनाता था. कभी यह काम कागज और ब्रश से होता था. मगर अब सब कंप्यूटर से होता है.

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वह तनहाई पसंद, खुद तक सीमित रहने वाला युवक था. उस का सामाजिक दायरा सीमित था. मूल रूप से वह

एक चित्रकार था. रोजीरोटी के लिए वह  आर्टिस्ट बन विज्ञापन कंपनियों को छोटेछोटे क्रिएटिव डिजाइन, स्कैच बना कर देता था.

30 वर्ष का होने पर भी वह कुंआरा था. कभी आगे बढ़ कर उस ने किसी लड़की से दोस्ती नहीं की थी. अभी तक विवाह न होने का कारण यही था. अपने रिजर्व नेचर की वजह से वह किसी लड़की को पसंद नहीं कर पाता था और न ही कोई लड़की उसे पसंद कर पाती थी.

मगर आज का किस्सा कुछ अजीब सा था. कुछ दिन पहले एक सुंदर सी लड़की उसे रैस्टोरैंट में मिली थी, फिर लिफ्ट में, मगर अपने स्वभाव के कारण वह उस की तरफ ध्यान नहीं दे पाया और चुपचाप बैठा रहा था. अब उस को क्या पता था कि एक दिन उस की यही खुद में सीमित रहने की प्रवृत्ति आकर्षण का कारण बन जाएगी.

सुमिता भी यही सोच रही थी कि दर्जनों पुरुष मित्र होने पर भी उस को कोई प्रभावित नहीं कर पाया था और इस का सब से अहम कारण था कि हर कोई उस पर ललचाई दृष्टि डालता था.

कुछ दिन बाद वह मोहित के स्टूडियो में जा पहुंची. मोहित कंप्यूटर पर ग्राफिक्स बना रहा था. अन्य कंप्यूटरों पर उस के कई सहायक काम कर रहे थे. इन में 3-4 लड़कियां भी थीं.

‘‘अरे, आप… आइएआइए, तशरीफ रखिए,’’सुमिता को देख कर मोहित खिल उठा.

ठंडा पीते हुए सुमिता ने इधरउधर नजर डाली. स्टूडियो में एक तरफ स्टैंड पर कैनवास से बने खाली और अर्धनिर्मित चित्र भी थे.

‘‘क्या कंप्यूटर के जमाने में आप तुलिका और कैनवास पर भी काम करते हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो रचनात्मकता ब्रश और कैनवास पर आती है. वह कंप्यूटर के डिजाइन या ग्राफिक्स में नहीं आ सकती.’’

‘‘लेकिन आजकल तो अधिक चलन कंप्यूटर से बनी डिजाइनों का है.’’

‘‘वह तो है, मगर इस तरह बने किसी डिजाइन या तसवीर में वह आत्मा नहीं होती, जो ब्रश से बने चित्र में होती है.’’

मोहित की इस बात को सुन कर सुमिता समझ गई कि मोहित एक चित्रकार के साथसाथ पक्का दार्शनिक भी है. इस के बाद हलकीफुलकी बातें कर सुमिता चली आई.

स्टूडियो में सुमिता का आनाजाना बढ़ गया और अब दोनों शाम को काम समाप्त होने के बाद घूमनेफिरने भी जाने लगे.

सुमिता को उस का सहज, स्वाभाविक स्वभाव और खुद में खोए रहने की प्रवृत्ति पसंद आई. मोहित भी उस से प्रभावित हुआ. वह एक बार उस के कौल सैंटर भी आया मगर वहां का व्यावसायिक और व्यस्त माहौल उस को पंसद नहीं आया.

सुमिता सोचती कि वह मोहित से विवाह संबंधी बात करे या फिर वह ही उस को प्रपोज करेगा.

एक शाम मोहित के पास एक बड़ी विज्ञापन कंपनी का फोन आया.

‘‘मिस्टर मोहित, काैंग्रेचुलेशन.’’

‘‘फौर व्हाट?’’

‘‘पिछले महीने आप के बनाए लैंडस्केप डिजाइन को इंटरनैशनल नैचुरल डिजाइन कौंटैस्ट में पहला अवार्ड मिला है, आप को एक सप्ताह का स्विट्जरलैंड भ्रमण का इनाम मिला है.’’

इस पर मोहित आश्चर्य में पड़ गया.

‘‘मगर मैं तो कभी बाहर घूमने नहीं गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब हो आइए.’’

‘‘मेरे पास तो पासपोर्ट भी नहीं है.’’

‘‘आजकल पासपोर्ट 3 दिन में बन जाता है.’’

नियत दिन मोहित भ्रमण के लिए हवाईजहाज पर सवार हुआ, उस के साथ अन्य शहरों से आए कई चित्रकार और आर्टिस्ट भी थे. भ्रमण टूर का कांट्रैक्ट एक टूरिज्म कंपनी ने लिया था.

हवाईजहाज उड़ते ही सब को सीट बैल्ट बांधने की हिदायत दी गई. साथ ही लैमन जूस या टौफी चूसने को दी गईं. हवाई सफर लगभग 7 घंटे का था. पहले हलका नाश्ता सर्व हुआ. फिर दोपहर का भोजन मिला.

‘‘मिस्टर, आप वैज लेंगे या नौनवैज,’’ एक खूबसूरत व्योमबाला ने मोहित के समीप आ कर पूछा. किसी खयाल में खोया मोहित एकदम चौंका और बोला, ‘‘मैं दोनों ही खा लेता हूं, जो अच्छा बना है ले आइए.’’

उस के इस जवाब पर आगेपीछे और सामने की कतार में बैठे यात्री हंस पड़े. व्योमबाला भी हंस पड़ी.

‘‘मिस्टर, हवाईजहाज में खाना किचन में नहीं बनता बल्कि बंद पैकेट्स में सप्लाई होता है. आप अगर वैजिटेरियन पैकेट मांगेंगे तो वैजिटेरियन मिलेगा और नौनवैज मांगेंगे तो वही मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, नौनवैज ही दे दो.’’

एयरहोस्टैस एक पैकेट और एक खाली प्लेटचम्मच उसे थमा कर आगे बढ़ गई. अगली सीट के पीछे फोल्डिंग टेबल का इंतजाम था. सहयात्री की देखादेखी मोहित ने भी मेज खींच ली और उस पर प्लेट रख कर पैकेट खोला.

फिर आइसक्रीम व कौफी सर्व हुई. व्योमबाला एक ट्रौली में यह सब सर्व कर रही थी. उस का पाला पहली बार हवाईजहाज की यात्रा करने वाले यात्रियों से पड़ता ही रहता था. उसे मोहित जैसे यात्री मिलते ही रहते थे.

जहाज हवाईअड्डे पर उतरा तब तक शाम ढल आई थी जहां से मुख्य शहर काफी दूर था. एक स्टेशन वैगन में अनेक यात्री सवार हुए. व्योमबाला एक एयरबैग थामे आ गई और संयोग से उसे मोहित के बगल में सीट मिली.

‘‘क्या आप स्विट्जरलैंड पहली बार आए हैं?’’ एयरहोस्टैस ने बातचीत शुरू की.

‘‘मैं हवाईजहाज में पहली बार सवार हुआ हूं.’’

‘‘आप यहां क्या करने आए हैं?’’ बेहतरीन दाढ़ी बढ़ाए मस्तमौला नजर आने वाले सुंदर नैननक्श वाले युवक की तरफ गौर से देखते व्योमबाला ने पूछा.

‘‘मैं एक आर्टिस्ट हूं. विज्ञापन कंपनियों के लिए ग्राफिक्स और डिजाइन बनाता हूं. हाल ही में मेरे एक डिजाइन को एक प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है. इस के लिए एक सप्ताह के लिए स्विट्जरलैंड भ्रमण का इनाम मिला है.’’

व्योमबाला प्रशंसात्मक नजरों से उस की तरफ देखने लगी.

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‘‘आप तो नियमित आती रहती होंगी.’’

‘‘जी हां, हमारा तो प्रोफैशन ही ऐसा है.’’

‘‘यहां कब तक ठहरेंगी?’’

‘‘3 दिन, वापसी के पूरे यात्री मिलने में 3 दिन लग ही जाते हैं.’’

‘‘समय बिताने के लिए आप क्या करती हैं?’’

‘‘यहां समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता. सारा स्विट्जरलैंड बहुत खूबसूरत है. बर्फ पर स्कीइंग करते, पहाड़ों पर ऐक्सपिडिशन करते और बड़ी झील में बोट चलाते समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता,’’ व्योमबाला ने कहा.

इस तरह हलकीफुलकी बातें होती रहीं. मुख्य शहर बर्न आधे घंटे बाद आया. एक तीनसितारा होटल में ठहरने का इंतजाम था. व्योमबाला और उस के क्रू के अनेक साथी नियमित आतेजाते थे, इसलिए स्टाफ उन्हें पहचानता था.

अगले दिन साइट सीइंग के लिए भ्रमण दल एक टूरिस्ट बस में सवार हुआ. सचमुच सारा स्विट्जरलैंड ही खूबसूरत था. व्योमबाला भी साथ थी.

मोहित और उस की मुलाकात हलकीफुलकी दोस्ती में बदल गई.

‘‘आप का क्या नाम है,’’ रैस्टोरैंट में मैन्यू पढ़ते मोहित ने पूछा.

‘‘सुमिता वालिया, और आप का?’’

‘‘मेरा नाम तो मोहित है,’’ मोहित उस की तरफ अपलक देख रहा था. उस के इस तरह देखने पर सुमिता वालिया तनिक चौंकी और उस ने पूछा, ‘‘आप इस तरह मेरी तरफ क्यों देख रहे हैं?’’

‘‘एक ही महीने में 2-2 लड़कियों से वास्ता पड़ा और संयोग से दोनों का नाम भी सुमिता है.’’

इस पर सुमिता वालिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘वह दूसरी सुमिता कौन है,’’ उस ने मोहित से जानना चाहा.

‘‘वह एक कौल सैंटर में काम करती है. एक बार रैस्टोरैंट में मेज खाली नहीं थी तो मेरे समीप ही आ कर बैठी थी. फिर पता नहीं मुझ पर कैसे आकर्षित हो गई थी.’’

‘पता नहीं कैसे आकर्षित हो गई थी,’ कहने पर सुमिता वालिया ने उस की तरफ गौर से देखा. क्या कभी मोहित ने अपने व्यक्तित्व पर गौर नहीं किया.

रैस्टोरैंट का माहौल मोमबत्तियों के मद्धिम प्रकाश में बहुत रोमानी हो गया था. हलकेफुलके ड्रिंक्स के बाद एकदूसरे की पसंद का खाना खाया गया. खाने के बाद टहलने का प्रोग्राम बना. बाहर हलकीहकी बर्फबारी हो रही थी.

‘‘आप भारी गरम कपड़े नहीं लाए.’’ मोहित के हलके पुलओवर की तरफ देखते हुए सुमिता वालिया ने कहा.

‘‘मैं कभी ऐसी जगह आया ही नहीं.’’

‘‘चलिए, मेरे पास ऐक्स्ट्रा ओवर कोट है,’’ सुमिता के साथ मोहित उस के होटल के कमरे में चला गया. ओवरकोट उसे फिट आ गया.

हलकी बर्फबारी में दोनों काफी देर तक इधरउधर घूमते रहे. घूमतेघूमते सुमिता स्वयं को मोहित के गले में बांहें डाले देखने लगी. शहर के एक किनारे पर काफी बड़ी झील थी. जिस की दूसरी सीमा साथ लगते जरमनी को छूती थी.

‘‘कल मुझे वापस जाना है,’’ सुमिता ने कहा.

‘‘मेरा अभी 4 दिन का भ्रमण बाकी है.’’

‘‘कहां घूमोगे?’’

‘‘क्या पता? यह तो भ्रमण टूर का संचालक बताएगा.’’

शायद सुमिता वालिया कहना चाहती थी कि अगर ठहरती तो भ्रमण और भी सुखद रहता मगर वह खामोश रही. अपनाअपना मोबाइल नंबर दे कर दोनों ने विदा ली.

भ्रमण समाप्त कर मोहित भी सप्ताहांत में लौट आया. थोड़ेथोड़े अंतराल पर कौल सैंटर में कार्यरत सुमिता भी आती रही. दोनों पहले की तरह ही शाम को खानेपीने, घूमनेफिरने को निकलते रहे.

एक शाम व्योमबाला सुमिता वालिया का फोन आया. उस ने मोहित को शाम के खाने के लिए आमंत्रित किया. स्थान वही था जहां कौल सैंटर वाली सुमिता मिली थी. यह जान कर मोहित की स्थिति बड़ी खराब हो गई, क्योंकि उसी शाम उस का दूसरी सुमिता के साथ खाने का प्रोग्राम था और स्थान वही था. अब वह क्या करे? कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

व्योमबाला को तो कौल सैंटर वाली सुमिता के बारे में बता दिया था मगर व्यस्तता के कारण कौल सैंटर वाली सुमिता को व्योमबाला सुमिता के बारे में नहीं बता पाया था.

‘जो होगा देखा जाएगा,’ इस विचार को ले कर वह वहां जाने के लिए तैयार होने लगा. पहले वह कभी भी शाम को घूमने जाते समय तैयार नहीं होता था मगर जब से उस की दोस्ती सुमिता से हुई और अब व्योमबाला से तब से वह अपने व्यक्तित्व की तरफ ध्यान देने लगा था.

शानदार काले ईवनिंग सूट और मैच करती टाई लगाए कीमती परफ्यूम से महकता मोहित रैस्टोरैंट में पहुंचा. व्योमबाला एक रिजर्व टेबल पर बैठी उस का इंतजार कर रही थी. मोहित को देखते ही चौंक पड़ी. उस का व्यक्तित्व एकदम से बदल गया. कहां तो वह एक बेतरतीब, मस्तमौला सा साधारण कपड़े पहनने वाला नौजवान और अब कहां यह एकदम से अपटूडेट सूटबूटटाई में सजाधजा नौजवान.

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‘‘हैलो,’’ दोनों ने एकदूसरे से हाथ मिलाया.

‘‘बहुत अच्छे लग रहे हो, एकदम शहजादा गुलफाम की तरह,’’ व्योमबाला ने मोहित को देखते हुए कहा.

अपनी तारीफ से कौन खुश नहीं होता, इसलिए मोहित भी यह सुन कर खुश हो गया.

‘‘आप भी तो बला की दिलकश और हसीन नजर आ रही हैं,’’ व्योमबाला हलकी नीले रंग की शिफौन साड़ी पहने हुए थी और उस से मैच करता लो कट ब्लाऊज और मैच करती हलकी ज्वैलरी सचमुच उस के सौंदर्य में चार चांद लगा रही थी.

(क्रमश:)

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