सुमि अपने कमरे में पलंग पर यों ही खाली सी बैठी थी. अब तक तो उसे तैयार हो जाना चाहिए था. उमेश आता ही होगा उसे लेने के लिए. आज उन की एक नई दुकान का मुहूर्त होना था और ऐसे अवसरों पर सुमि की उपस्थिति का महत्त्व तो होता ही है.
उस के पास ही पड़े डब्बे के अधखुले ढक्कन में से नई साड़ी झांक रही थी. यही उसे आज पहननी थी. सुमि ने ढक्कन उठा कर एक ओर रख दिया और साड़ी अपने हाथों में ले ली. पीले रेशम की चौड़े बौर्डर की यह साड़ी वास्तव में बहुत खूबसूरत थी. कपड़ों के विषय में उमेश की पसंद हमेशा ऊंची रही है.
सुमि को याद आया, जब उमेश उस के लिए पहली बार रेशम की साड़ी खरीद कर लाया था तो कैसे देर तक वह उस पर हाथ फिराफिरा कर साड़ी की रेशमी स्निग्धता को अपने भीतर उतारती रही थी. आज तो ऐसी अनगिनत साडि़यों से उस की अलमारियां भरी पड़ी थीं, किंतु एक समय वह भी था जब उस के लिए नई साड़ी खरीदने का मौका किसी तीजत्योहार पर ही आता था. तब जैसेतैसे कर के जमा की गई अपनी छोटी सी पूंजी जेब में ले कर वह और उमेश बड़ीबड़ी दुकानों के बाहर सजी, शीशे के भीतर से झांकती साडि़यों को कैसी ललचाई नजरों से देखा करते थे. अपनी वह अकिंचन पूंजी तब उन्हें ऐसी दुकानों के भीतर पांव रखने की अनुमति नहीं देती थी. घूमफिर कर किसी एक छोटी सी दुकान से मोलभाव कर के तब उन्हें वही साड़ी खरीदनी होती थी जो उन के बजट में समा जाए.
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