गेट खोल कर निम्मी अंदर जाने लगी कि सामने के मकान के गेट पर खड़ी युवा महिलाओं के झुंड ने आवाज दे कर रोक लिया.
‘‘आज किट्टी में क्यों नहीं आई... बाजार का चक्कर लगाने की फुरसत है हमारे बीच बैठने की नहीं,’’ रश्मि ने उलाहना देते हुए कहा.
‘‘आज थोड़ा बिजी थी. कल ननद अपने परिवार के साथ यहां सासूजी से मिलने आ रही हैं, तो घर का सामान लेने और रुपए निकालने एटीएम तक गई थी.’’
‘‘क्यों हमारे बैंकर भाई साहब कहां हैं, जो तुम्हें पैसों के लिए दौड़ना पड़ गया?’’
‘‘उन की बात न ही करो तो अच्छा. उन के चक्कर में ही घर में नकदी नहीं रहती. जितनी जरूरत हो बस उतने ही ले कर शाम को आ जाएंगे. मैं तो 1 रुपया पार नहीं कर सकती इन की जेब से. 1-1 नोट गिन कर रखते हैं. क्या मजाल कि 10 का नोट भी अपनी जगह से खिसक जाए. अपना तो अपना मेरे पर्स के भी नोट उन्हें जबानी याद रहते हैं,’’ निम्मी का आक्रोश उमड़ पड़ा.
‘‘यह अच्छा है, मेरे पति को तो कुछ खबर नहीं रहती. दोपहर दुकान बंद कर जब लंच में घर आते हैं तो 1-2 बड़े नोट उड़ा लेती हूं, ‘‘शिखा गर्व से बोली,’’ यह हार उन्हीं रुपयों का है.’’
निम्मी जलभुन कर राख हो गई. पर प्रकट में बोली, ‘‘जब वे दूसरों के रुपयों का दिन भर बैठ कर हिसाब लगाते रहते हैं, तो क्या अपनी मेहनत की कमाई का हिसाब नहीं रखेंगे? तुम लोग लकी हो कि पति की जेब कट भी जाए, तो उन्हें पता नहीं चलता.’’
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