‘‘आज शाम को 5 बजे कनाट प्लेस के कौफी शौप में मिल सकते हो?’’ निराली ने आदित्य से फोन पर पूछा.
‘‘समथिंग स्पैशल. बहुत एक्साइटेड लग रही हो? आज क्या तुम मुझे प्रपोज करने वाली हो?’’ आदित्य ने निराली से शरारती अंदाज में पूछा.
‘‘डोंट बी फनी औल द टाइम. मैं नहीं तुम मुझे प्रपोज करोगे आज मिलने के बाद. न्यूज ही कुछ ऐसी है. बस, टाइम पर मिल जाना,’’ निराली अपनी रौ में बोलती जा रही थी.
‘‘लगता है, अवश्य ही कोई खास समाचार है, नहीं तो तुम मुझे काम छोड़ कर आने के लिए नहीं कहतीं. चलो, मिलते हैं.’’
निराली सचमुच बहुत एक्साइटेड थी और उस वक्त उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस के साथ अपनी इस खुशी को बांटे. उस का बस चलता तो तुरंत ही आदित्य को आने को कह देती, पर जानती थी कि लंच के बाद उस की कोई मीटिंग थी, इसलिए वह नहीं आ पाएगा. उसे लग रहा था कि काश, समय के पंख होते तो वह जल्दी से उड़ कर बीत जाता. हालांकि निराली जैसी बुद्धिमान लड़की के लिए यह खबर कोई हैरानी की बात नहीं थी, पर फिर भी वह बहुत उत्साहित थी.
आदित्य और निराली स्कूल के साथी थे. कालेज की पढ़ाई और अपने प्रोफैशनल कोर्स भी उन्होंने अलगअलग जगह से किए थे. हालांकि उन के विषय और अध्ययन के क्षेत्र लगभग समान ही थे. इस के बावजूद स्कूल की वह दोस्ती आज तक कायम थी और इतना वक्त एकदूसरे के साथ गुजारने, एकदूसरे को अच्छी तरह समझने और अपनी हर बात एकदूसरे के साथ शेयर करने के कारण यह तो तय था कि वे आगे भी साथ ही रहेंगे. निराली के मातापिता भी इस ओर से निश्चिंत थे कि आदित्य जैसा लड़का उन की बेटी ने चुना है.