अपनी पत्नी को भोजन ले जाते देख सोहनलाल पूछ बैठे, ‘‘यह थाली किस के लिए है?’’
‘‘क्या आप को नहीं मालूम?’’
‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम,’’ सोहनलाल झल्ला कर बोले.
‘‘सूरदास महाराज के लिए...’’ पत्नी ने सहजता से जवाब दिया.
‘‘बंद करो उस का भोजन,’’ सोहनलाल चीखे तो पत्नी के हाथ से थाली गिरतेगिरते बची. वह आगे बोले, ‘‘पिछले 5 साल से उस अंधे के बच्चे को खाना खिला रहा हूं. उस से कह दो कि यहां से जाए और भिक्षा मांग कर अपना पेट भरे. मेरे पास कुबेर का भंडार नहीं है.’’
‘‘गरीब ब्राह्मण है. अगर उस के घर वाले न निकालते तो भला क्यों आप के टुकड़ों पर टिका रहता. इसलिए जैसे 10 लोग खाते हैं, वैसे एक वह भी सही,’’ कहते हुए पत्नी ने थाली को और मजबूती से पकड़ा और आगे बढ़ गई.
थोड़ी देर बाद जब वह सूरदास के पास से लौटी तो सोहनलाल उसे देखते ही पुन: बोल उठे, ‘‘आखिर उस अंधे से तुम्हें क्या मिलता है?’’
‘‘तुम्हें तो राम का नाम लेने की फुरसत नहीं...कम से कम वह इस कुटिया में बैठाबैठा राम नाम तो जपता रहता है.’’
‘‘यह अंधा राम का नाम लेता है? अरे, जिस की जबान हमेशा लड़खड़ाती रहती हो वह...लेकिन हां, उस ने तुम पर जरूर जादू कर दिया है...’’
‘‘तुम आदमी लोग हमेशा फायदे की बात ही सोचते हो...सूरदास महाराज कोई साधारण इंसान नहीं हैं. वे सिद्ध बाबा हैं.’’
‘‘अच्छा...लगता है, उस ने तुम्हें कोई खजाना दिला दिया है?’’ सोहनलाल की आवाज में व्यंग्य का पुट था.
‘‘खजाना तो नहीं, लेकिन जब से उन के चरण इस घर में पड़े हैं, किसी चीज की कोई कमी नहीं रही. चमनलाल की पत्नी ने एक बार बाबा से हंसते हुए पूछा था कि क्या उस के पति की पदोन्नति होगी तो सूरदासजी ने कहा कि 3 महीने के अंदर हो जाएगी.’’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- 24 प्रिंट मैगजीन
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स