उम्रभी कमबख्त क्या चीज है? कब मैं 16 से 60 की हो गई पता ही नहीं चला. क्या बताऊं? वह भी क्या जमाना था, जब मैं सड़क पर निकलती थी, तो लोग बस देखते ही रह जाते थे. अरे क्या बताऊं, कैसेकैसे कमैंट्स सुनने को मिलते थे, ‘‘हायहाय जरा एक नजर इधर भी देख लो’’, ‘‘कमर तो बस छटांक भर ऐसी कि बल खा जाए.’’ और तो और कुछ कहते, ‘‘छम्मक छल्लो कहां चली.’’
जब तक मैं उन लोगों की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी, वे देखते ही रहते थे. अरे, यह तो कुछ नहीं. मैं शीशे के आगे खड़ी घंटों खुद को निहारती रहती और साथ ही अपने पर बलिहारी जाती.
घर से बाहर निकलते ही कमैंट सुनने को मिलता कि अरे, पूरे इलाके में इस के जैसी नहीं मिलेगी. भई चर्चे थे मेरे. लेकिन अफसोस, कब ये सब अम्मां, आंटी, दादी व नानी में तबदील हो गया, पता ही नहीं चला. कभी सोचती हूं, तो बड़ी हंसी आती है. गुस्सा तो तब आता है जब मेरी उम्र से कुछ ही छोटे आंटी और अम्मां कह कर पुकारते हैं.
उस दिन को नहीं भूलती जब सड़क पर एक लड़का साइकिल चलाते हुए कह कर
निकल गया, ‘‘हाय सिक्सटी, जरा साइड हो जा वरना फिर मत कहना बुढि़या को मार कर चल दिया.’’
उस की आवाज सुन कर ऐसा लगा जैसे कह रहा हो कि हाय सिक्सटीन. लेकिन उस के कहे शब्द ‘बुढि़या को मार कर चल दिया’ ने पूरा कलेजा छलनी कर दिया. पूरा सिर घूम गया.
‘हाय रे, कब मैं 16 से 60 में तबदील हो गई,’ मैं सोच ही रही थी कि तभी एक सड़क चलती लड़की ने पूछा, ‘‘अम्मां, क्या हुआ?