नगर निगम के अतिक्रमण हटाओ दस्ते का सहायक अभियंता और अन्य कर्मचारी आखिरकार इस ब्लाक में भी आ गए. पिछले 3-4 दशकों से ब्लाक के फ्लैटों में रहने वाले निवासियों ने थोड़ाथोड़ा कर के अवैध निर्माणों का एक सिलसिला बना दिया था. ऊपरी आदेशों से इन की पहचान कर सब को गिराना था.
ज्यादातर अतिक्रमण भूतल पर था. एक फ्लैट के मकान मालिक ने अतिक्रमण किया तो देखादेखी दूसरों ने भी कर डाला. सरकारी प्रौपर्टी थी, कौन पूछता. मगर कभीकभी नगर निगम नींद से जाग जाता था. संबंधित अधिकारियों को अपनी और दूसरे कर्मचारियों की जेब गरम करने की जरूरत पड़ जाती तब दोचार दिन तक अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जाता. जब भेंटपूजा हो जाती तब अभियान ठंडा पड़ जाता था.
इसी घटनाक्रम में कई ब्लाकों के नवयुवा वकील बड़े वकीलों की मातहती में वकालत करने लगे. तब उन्होंने कभीकभी आ पड़ने वाली ऐसी आपदा का प्रबंध करने का एक तरीका सुझाया. सारे ब्लाक वाले मिल कर संयुक्त आवेदन करें और मजिस्ट्रेट के पास दलील दें कि ऐसा कब्जा काफी समय से चला आ रहा था. पूरी सुनवाई किए बिना नगर निगम को किसी निर्माण कार्य को इस तरह गिराने का अधिकार नहीं है. तब यथास्थिति यानी अदालत से ‘स्टे’ का आदेश मिल गया था. सभी ब्लाक वालों के जिम्मे मात्र 75 रुपए का खर्च आया था.
तब यह 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ का फार्मूला यानी युक्ति अन्य चालू और भ्रष्ट वकीलों ने भी पकड़ ली थी. तब एक मिलीभगत के अंतर्गत थोड़ेथोड़े समय के अंतर पर नगर निगम कभी किसी ब्लाक में, कभी किसी कालोनी में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाता. निवासी इकट्ठे हो, 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ ले लेते थे. वकीलों को एकमुश्त भारी फीस मिल जाती. ‘स्टे आर्डर’ बरकरार रखने के साथ लंबी तारीख पड़ फाइल मुकदमों में लग जाती.