‘‘स्वाति दीदी और नकुल जीजाजी आ रहे हैं. आप उन्हें जा कर ले आना. मेरे औफिस में एक प्रतिनिधि मंडल आ रहा है. मेरा जाना संभव नहीं हो सकेगा,’’ स्वस्ति अपने पति सुकेतु से बोली.

‘‘मैं नहीं जा सकूंगा. फोन कर दो. टैक्सी कर के आ जाएंगे,’’ सुकेतु ने स्वयं में डूबे हुए उत्तर दिया.

‘‘विवाह के बाद पहली बार हमारे घर आ रहे हैं, बुरा मान जाएंगे. आप की दीदी आई थीं, तो आप सप्ताह भर घर से काम करते रहे थे. अब 1 दिन भी नहीं कर सकते?’’

‘‘दीदी हमारी सुखी गृहस्थी देखने आई थीं. हम कितने सुखी दिखे कह नहीं सकता, पर यह अवश्य कह सकता हूं कि वे काफी निराश लग रही थीं. मैं ने तो तभी सोच लिया था जैसे हम अपना कार्य स्वयं करते हैं, अपना पैसा अलग रखते हैं, मित्र अलग हैं, वैसे ही संबंधी भी

अलग ही रहने चाहिए. है कि नहीं?’’ सुकेतु लापरवाही से बोला तो स्वस्ति खून का घूंट पी कर रह गई.

6 वर्षों तक प्रेम की पींगें बढ़ाने के बाद सुकेतु और स्वस्ति का विवाह हुआ था. दोनों के विवाह को 1 वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था पर विवाहपूर्व का प्रगाढ़ प्रेम कब का काफूर हो चुका था. दोनों एकदूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे. मधुयामिनी के समय ही दोनों में इतना झगड़ा हुआ था कि पांचसितारा होटल के प्रबंधक ने बड़ी शालीनता से दोनों को होटल छोड़ कर जाने की सलाह दे डाली थी.

‘‘हम ने पूरे सप्ताह के लिए अग्रिम किराया दे रखा है,’’ स्वस्ति क्रोधित स्वर में बोली जबकि सुकेतु चुप खड़ा देखता रहा.

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