“मां… मां, प… पापा को हार्ट अटैक आया है. हम उन्हें अस्पताल ले कर जा रहे हैं. आ… आप भी वहीं पहुंचो जल्दी से,” घबराई सी बोल कर कृति ने फोन रख दिया.
शीतल स्कूल जाने की तैयारी कर रही थी, मगर अर्णब के अटैक की बात सुन कर वह भी घबरा गई. उस ने अपना पर्स उठाया, पड़ोस में चाबी थमाई और गाड़ी सीधे अस्पताल की तरफ मोड़ दी. अभी जाने में और टाइम लगेगा, क्योंकि शीतल के घर से अस्पताल का रास्ता तकरीबन दोढाई घंटे का था.
शीतल को देखते ही कृति सिसक पड़ी और कहने लगी कि वह तो अच्छा था कि सब घर पर ही थे, वरना अनर्थ हो जाता.
“चुप हो जाओ कृति, सब ठीक हो जाएगा. कुछ नहीं होगा तुम्हारे पापा को,” बेटी कृति को सीने से लगा कर पुचकारते हुए शीतल बोली, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि यों अचानक कैसे अर्णब को अटैक आ गया? अभी परसों ही तो कृति बता रही थी कि अर्णब का शुगर, बीपी सब नौर्मल है. देखने में भी वह नौर्मल ही लग रहा था, फिर… ऐसे कैसे?“
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इसी हफ्ते उन दोनों के तलाक को ले कर कोर्ट का अंतिम फैसला होने वाला है. अगर अर्णब की तबीयत ठीक नहीं हुई, तो फिर… फिर तो कोर्ट की डेट आगे बढ़ जाएगी.’
ऐसी बात मन में सोच कर शीतल परेशान हो उठी. रातभर वह बेटी के साथ अस्पताल में अर्णब के होश में आने का इंतजार करती रही. एक डर भी लग रहा था कि सब ठीक तो हो जाएगा न…? अगर कहीं अर्णब को कुछ हो गया तो… बच्चे भी उसे ही दोष देंगे कि उस की वजह से अर्णब…
‘ओह, मैं भी क्या सोचने लगी,’ शीतल मन ही मन बुदबुदाई. फिर वे बेटी की ओर मुखातिब होते हुए बोलीं, “कृति, एक बात बताओ, तुम्हारे पापा समय पर दवाई तो लेते थे न…? खानपान में कोई गड़बड़ी? कहीं शराब बहुत ज्यादा तो नहीं पीने लगे हैं?”
“नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है. वैसे, अब तो पापा ने शराब पीना बहुत ही कम कर दिया है. लेकिन वही टेंशन जिस के कारण पापा को लगातार 2 बार अटैक आ चुका है.
“आप समझ रही हैं न मां कि मैं क्या कहना चाह रही हूं? मैं भी क्या करूं मां, औफिस और घर में ऐसे पिसती रहती हूं कि पापा के पास आने का समय ही नहीं मिलता. एक ही शहर में रहने के बाद भी हफ्तों हो जाते हैं उन से मिले.
‘‘हां, लेकिन हम रोज वीडियो काल पर जरूर कुछ देर बात कर लेते हैं. परसों पापा जिद करने लगे कि मैं 2-3 दिन रहूं उन के पास आ कर. लेकिन, अच्छा ही किया, नहीं तो पापा आज…’’ कहतेकहते कृति की आवाज भर्रा गई.
“जानती हो मां, पापा बहुत टेंशन में रहने लगे हैं. कहते हैं कि अब जीने का मन नहीं करता. हमेशा उदासी घेरे रहती है उन्हें. मां, एक आप ही हो, जो पापा को इस टेंशन से बचा सकती हो, नहीं तो पापा नहीं बच पाएंगे,” शीतल का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कृति बोल ही रही थी कि डाक्टर आ कर कहने लगे कि अर्णब को होश आ गया है और अब वह खतरे से बाहर है.
“ओह, थैंक यू डाक्टर साहब,” कृति ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर एक गहरी सांस ली.
“लेकिन, डाक्टर साहब, क्या हम पापा से मिल सकते हैं?” कृति ने पूछा, तो डाक्टर ने ‘हां’ कहा, लेकिन एकएक कर के.
कृति अपनी मां का हाथ पकड़ कर अर्णब के कमरे की तरफ बढ़ ही रही थी, तभी अचानक शीतल ने अपना हाथ छुड़ा लिया. वे बोलीं, “कृति, तुम जाओ, मुझे घर जाना होगा. स्कूल भी जाना जरूरी है आज.
“देखो, प्रिंसपल सर के कितने मिस्ड काल हैं, क्योंकि कल इन सब कारणों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए आज जाना ही होगा. बच्चों के एग्जाम्स आने वाले हैं?” कह कर शीतल झटके से अस्पताल से बाहर निकल गई.
गाड़ी चलाते हुए भी वह बहुत बेचैन दिख रही थी. मन में हजारों सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. कभी लग रहा था, वह जो करने जा रही है गलत है, तो कभी लग रहा था, सही है.
क्या करे, कुछ समझ नहीं आ रहा था. बेटे जिगर का फोन आया, तो वह विचारों से बाहर निकली. आवाज में उस की भी उदासी झलक रही थी. आखिर बाप है चिंता तो होगी ही न.
“अब ठीक हैं तुम्हारे पापा, चिंता मत करो. डाक्टर ने कहा है कि अब वे खतरे से बाहर हैं. मैं गाड़ी चला रही हूं. स्कूल से लौट कर शाम को बात करती हूं, ठीक है… और बच्चे, दिव्या वगैरह सब ठीक हैं न? ओके, बाय बेटा, यू टेक केयर योर सेल्फ.
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‘‘हां… हां, मैं ठीक हूं, तुम चिंता मत करो,” कह कर शीतल ने फोन रख दिया और सोचने लगी कि एक जिगर ही है, जो उसे समझता है. उस की बातों से ही झलक रहा था कि अपने पापा से ज्यादा उसे अपनी मां की फिक्र हो रही है. हो भी क्यों न, आखिर उस के अनगिनत दर्दों को उस ने भी तो देखा और महसूस किया है.
‘नहीं, ऐसी बात नहीं है कि कृति उसे नहीं समझती या उस से प्यार नहीं करती. मगर वह चाहती है कि उस के मांपापा फिर से साथ रहने लगें पहले की तरह. लेकिन, अब यह नामुमकिन है.’
यही सब सोचतेसोचते शीतल कब स्कूल पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. मीनाक्षी ने ‘हाय, गुड मौर्निंग’ बोला, तो उसे एहसास हुआ कि वह स्कूल में आ चुकी है.
“हाय, गुड मौर्निंग,“ शीतल ने कहा, तो वह पूछने लगी कि अब अर्णब की तबीयत कैसी है?
“ठीक हैं. डाक्टर ने कहा कि अब वे खतरे से बाहर हैं. थैंक यू मीनू, तुम ने मेरा इतना साथ दिया,” मीनाक्षी का आभार जताते हुए शीतल बोली.
“अरे, इस में थैंक यू की क्या बात है. तुम भी तो कभीकभार मेरे लिए ऐसा करती हो न? कई बार मैं स्कूल नहीं आ पाती किसी वजह से, तब तुम मेरी जगह मेरी क्लास ले लेती हो. तो आज अगर मैं ने ऐसा कर दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई. आखिर ऐसे ही तो दुनिया चलती है न. और हम एकदूसरे की परेशानी नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा,” मुसकराते हुए मीनाक्षी बोली. लेकिन आगे अभी वह कुछ और बोलती ही, तब तक शीतल आगे बढ़ गई, क्योंकि वह जानती थी कि इस के बाद मीनाक्षी का क्या सवाल होगा? वह भी वही सब बातें करने लगेगी, जो मिलने पर रिश्तेदार और जानपहचान वाले करने लगते हैं. लेकिन अभी वह इन सवालजवाब में उलझना नहीं चाहती थी, क्योंकि वह तनमन दोनों से काफी थक चुकी थी. स्कूल आना जरूरी नहीं होता, तो न आती आज भी.
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शीतल स्कूल में मैथ की टीचर है और मीनाक्षी, साइंस की. दोनों स्कूल में टीचर होने के साथसाथ आपस में बहुत अच्छी सहेलियां भी हैं. दोनों के घर आसपास ही हैं, तो अकसर दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता रहता है. छुट्टी के दिन दोनों साथ ही खरीदारी करने या कहीं घूमने निकल पड़ती हैं.
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