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दरवाजे की घंटी पर बड़ी देर तक हाथ रखने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दीपमाला को फिक्र होने लगी. ‘आज इतवार है. औफिस नहीं गया होगा. दरवाजे पर ताला भी नहीं है. इस का मतलब कहीं बाहर भी नहीं गया है. तो फिर इतनी देर क्यों लग रही है उसे दरवाजा खोलने में?’ वह सोचने लगी.

कंधे पर बैग उठाए और एक हाथ से बच्चे को गोद में संभाले वह अनमनी सी खड़ी थी कि खटाक से दरवाजा खुला.

एक बिलकुल अनजान लड़की को अपने घर में देख दीपमाला हैरान रह गई. वह कुछ पूछ पाती उस से पहले ही उपासना बिजली की तेजी से वापस अंदर चली गई. भूपेश ने दीपमाला को यों इस तरह अचानक देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस के माथे पर पसीना आ गया.

उस का घबराया चेहरा और घर में एक पराई औरत को अपनी गैरमौजूदगी में देख दीपमाला का माथा ठनका. गुस्से में दीपमाला की त्योरियां चढ़ गईं. पूछा, ‘‘कौन है यह और यहां क्या कर रही है तुम्हारे साथ?’’

भूपेश अपने शातिर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा. उपासना उस के मातहत काम करती है, यह बताने के साथ ही उस ने दीपमाला को एक झूठी कहानी सुना डाली कि किस तरह उपासना इस शहर में नई आई है. रहने की कोई ढंग की जगह न मिलने की वजह से वह उस की मदद इंसानियत के नाते कर रहा है.

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‘‘तो तुम ने यह मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया? तुम ने मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि हमारे साथ कोई रह सकता है या नहीं?’’

‘‘यह आज ही तो आई है और मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि तुम ने आ कर मुझे चौंका दिया. और देखो न मुझे तुम्हारी और मुन्ने की कितनी याद आ रही थी,’’ भूपेश ने उस की गोद से ले कर अंशुल को सीने से लगा लिया. दीपमाला का शक अभी भी दूर नहीं हुआ कि तभी उपासना बेहद मासूम चेहरा बना कर उस के पास आई.

‘‘मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आप लोगों को तकलीफ हो रही है. वैसे इस में इन की कोई गलती नहीं है. मेरी मजबूरी देख कर इन्होंने मुझे यहां रहने को कहा. मैं आज ही किसी होटल में चली जाती हूं.’’

‘‘इस शहर में बहुत से वूमन हौस्टल भी तो हैं, तुम ने वहां पता नहीं किया?’’ दीपमाला बोली.

‘‘जी, हैं तो सही, लेकिन सब जगह किसी जानपहचान वाले की गारंटी चाहिए और यहां मैं किसी को नहीं जानती.’’

भूपेश और उपासना अपनी मक्कारी से दीपमाला को शीशे में उतारने में कामयाब हो गए. दीपमाला उन दोनों की तरह चालाक नहीं थी. उपासना के अकेली औरत होने की बात से उस के दिल में थोड़ी सी हमदर्दी जाग उठी. उन का गैस्टरूम खाली था तो उस ने उपासना को कुछ दिन रहने की इजाजत दे दी.

भूपेश की तो जैसे बांछें खिल गईं. एक ही छत के नीचे पत्नी और प्रेमिका दोनों का साथ उसे मिल रहा था. वह अपने को दुनिया का सब से खुशनसीब मर्द समझने लगा.

दीपमाला के आने के बाद भूपेश और उपासना की प्रेमलीला में थोड़ी रुकावट तो आई पर दोनों अब होशियारी से मिलतेजुलते. कोशिश होती कि औफिस से भी अलगअलग समय पर निकलें ताकि किसी को शक न हो. दीपमाला के सामने दोनों ऐसे पेश आते जैसे उन का रिश्ता सिर्फ औफिस तक ही सीमित हो.

दीपमाला घर की मालकिन थी तो हर काम उस की मरजी से होता

था. थोड़े ही अंतराल बाद उपासना उस की स्थिति की तुलना खुद से करने लगी थी. उस के तनमन पर भूपेश अपना हक जताता था, मगर उन का रिश्ता कानून और समाज की नजरों में नाजायज था. औफिस में वह सब के मनोरंजन का साधन थी, सब उस से चुहल भरे लहजे में बात करते, उन की आंखों में उपासना को अपने लिए इज्जत कम और हवस ज्यादा दिखती थी.

समाज में पत्नी का दर्जा क्या होता है, भूपेश और दीपमाला के साथ रहते हुए उसे इस बात का अंदाजा हो गया था. दीपमाला की जो जगह उस घर में थी वह जगह अब उपासना लेना चाहती थी. वह सोचने लगी आखिर कब तक वह भूपेश की खेलने की चीज बन कर रहेगी. कभी न कभी तो भूपेश इस खिलौने से ऊब जाएगा. उपासना को अब अपने भविष्य की चिंता होने लगी.

भूपेश के पास ओहदा और पैसा दोनों थे. उस के साथ रह कर उपासना को अपना भविष्य सुनहरा लग रहा था. उस ने अब अपना दांव फेंकना शुरू किया. वह भूपेश पर दीपमाला को तलाक देने का दबाव डालने लगी. शातिर दिमाग भूपेश को घरवाली और बाहरवाली दोनों का सुख मिल रहा था. वह शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. उस ने उपासना को कई तरीकों से समझाने की कोशिश की तो वह जिद पर अड़ गई. उस ने भूपेश के सामने शर्त रख दी कि या तो वह दीपमाला को तलाक दे कर उस से शादी करे या फिर वह सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लेगी.

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कंटीली चितवन और मदमस्त हुस्न की मालकिन उपासना को भूपेश कतई नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने उपासना से कुछ दिन की मोहलत मांगी.

एक रात दीपमाला की नींद अचानक खुली तो उस ने पाया भूपेश बिस्तर से नदारद

है. दीपमाला को बातचीत की आवाजें सुनाई दीं तो वह कमरे से बाहर आई. आवाजें उपासना के कमरे से आ रही थीं. दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. एक झिरी से दीपमाला ने अंदर झांका. बिस्तर पर उपासना और भूपेश सिर्फ एक चादर लपेटे हमबिस्तर थे. दोनों इतने बेखबर थे कि उन्हें दीपमाला के वहां होने का भी पता नहीं चला.

उस दृश्य ने दीपमाला को जड़ कर दिया. उस की हिम्मत नहीं हुई कुछ देर और वहां रुकने की. जैसे गई थी वैसे ही उलटे पांव कमरे में लौट आई. आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे. उस की नाक के नीचे ये सब हो रहा था और वह बेखबर रही. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि इतना बड़ा विश्वासघात किया दोनों ने उस के साथ.

दीपमाला के दिल में नफरत का ज्वारभाटा उछाल मार रहा था. उस के आंसू पोंछने वाला वहां कोई नहीं था. दिमाग में बहुत से विचार कुलबुलाने लगे. अगर अभी कमरे में जा कर दोनों को जलील करे तो उस का मन शांत हो और फिर वह हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर चली जाए. फिर उसे खयाल आया कि वह क्यों अपना घर छोड़ कर जाए. यहां से जाएगी तो उपासना जिस ने उस के सुहाग पर डाका डाला. अपने सोते हुए बच्चे पर नजर डाल दीपमाला ने खुद को किसी तरह सयंत किया और फिर एक फैसला ले लिया.

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