कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
0:00
12:24

दोनों कंधों को पकड़ कर बड़े ध्यान से वह मुझे देखने लगा, पर मैं इंतजार करती रही.

‘‘ठीक है, चलते हैं जुल्फी को ढूंढ़ने,’’ हार कर वह बोला.

आठ

तारा पिंजरे में घुसने का रास्ता ढूंढ़ रही थी, पर हम लोगों ने उसे खोला नहीं. उस की तड़प अब नहीं देखी जाती.

नौ

‘‘याद है, दिसंबर की वह रात, मुनमुन? हम दोनों कौल पर थे, रैसपिरेटरी वार्ड में. क्या इस बात को 23 साल हो गए हैं? यकीन नहीं होता,’’ गाड़ी चलातेचलाते उस ने मुझ पर एक उड़ती सी नजर डाली, ‘‘और वह रात? वह रात तो अविस्मरणीय है. शांत कर रहा था मैं तुम्हें, हमेशा की तरह. क्या बुलाते थे सब मुझे? ‘योर्स फौरऐवर’? नहीं, कोई दूसरा नाम था, ‘फौरऐवर लवर’ था शायद. क्यों?’’

मैं ने सिर हिला कर उस से कह दिया कि मुझे फुजूल की वे सब बातें याद नहीं हैं और वह दबी हंसी हंस कर रह गया. फिर बोलता चला गया. ‘‘लो, याद आ गया, ‘साइलैंट सफरर’.’’

कार की खिड़कियां बंद थीं. हवा का झोंका अंदर घुस कर कभी आह भर रहा था, कभी बड़बड़ा रहा था. किंतु अनुपम अपने शब्द सपाट आवाज में बोलता चला जा रहा था.

ये भी पढे़ं- क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं : विदेश में क्या हुआ मार्गरेट के साथ

‘‘उस वक्त क्या मालूम था कि बाहर गैस का सफेद बादल शहर के अंधेरे रास्तों पर उतर कर कंबलों के नीचे ठंड से थरथराते इंसानों के कानों में कुछ ऐसा फुसफुसा कर चला जा रहा  था कि वे खुदबखुद मौत से समझौता करते हुए लुढ़कते जा रहे थे? जब फटाक से दरवाजा खुला और बुलावा आया और हम वार्ड में बेतहाशा भागेभागे गए, तब जा कर दिखे सैकड़ों कसमसाते, कराहते लोग, अपने बदन पर से काबू खोते हुए, गलियारे में उकड़ूं बैठे हुए, वेटिंगरूम में रोतेतड़पते हुए, प्रवेशद्वार पर बैठे बिलबिलाते हुए, बाहर की सीढि़यों पर लोटतेबिलखते हुए. ऐसी कोई जगह बची थी क्या, जहां नजर पड़ती और लोग न दिखते?

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...