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दिल की धड़कनें तेज हो गईं. यह इंतजार बहुत असहनीय होने लगा. सारा दिन यों ही निकल गया. अब तो रात के खाने के बाद सोना और कल दोपहर में तो वे चले ही जाएंगे. कुछ गपशप भी नहीं हो पाएगी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. अर्चना आ गई.

अकसर औफिस से आ कर वह बेतहाशा घंटी बजाती थी. कितनी बार समझाया उसे कि इस समय मिली सोई होती है. इतनी जोर से घंटी न बजाया करे, लेकिन...सहसा मन भर आया, छोटी बहन को देखने को. उस ने नम आंखों से दरवाजा खोला. अर्चना ने अपनी दीदी को झुक कर प्रणाम किया.

‘‘सदा खुश रहो... फूलोफलो,’’ दिल भर आया आशीर्वाद देते हुए.

‘‘जी नहीं, तेरी तरह फूलने का कोई शौक नहीं है मुझे,’’ वही चंचल जवाब मिला.

गौर से अपनी ब्याहता बहन का चेहरा देखा. मांग में चमकता सिंदूर, लाल किनारी की पीली तांत साड़ी, दोनों हाथों में लाख की लाल चूडि़यां. सजीधजी प्रतिमा लग रही थी. वह लजा गई, ‘‘छोड़ दीदी, तंग मत कर. मिली कहां है?’’ और फिर मिली...मिली... पुकारती हुई वह बैडरूम में घुस गई.

मन ने टोकना चाहा कि अभी सो रही है. छोड़ दे. पर बोली नहीं. मौसी आई है. वह भी तो देखे अपनी सजीधजी मौसी को. बड़ी प्यारी लग रही है, अर्चना. सुंदर तो है ही और निखर गई है.

मौसी की गोद में उनींदी मिली आश्चर्य और कुतूहल से मौसी को निहारते हुए बोली, ‘‘मौसी, बहुत सुंदर लग रही हो, आप तो. एकदम मम्मी जैसे सजी हो.’’

उस के इस वाक्य ने सहज ही अर्चना को नई श्रेणी में ला खड़ा कर दिया. उसी एक पल में अनेक प्रतिक्रियाएं हुईं. अर्चना लजा गई. संजय ने प्यार से अपनी सुंदर पत्नी को निहारा. आकाश की नजर उन दोनों से फिसल कर सुमन पर स्थिर हो गई. सब के चेहरे पर खुशी और संतोष झलक रहा था. अर्चना के चेहरे पर लाली देख कर मन फूलों सा हलका हो गया.

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