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आयुषी कुछ नहीं कहती, उस पर घर छोड़ कर औफिस चली जाती थी. आयुषी को इस बात की हैरानी होती थी कि उमेश इतना कैसे सुधर गया, रूपा उसे चाय देने भी जाती, तो नजर उठा कर भी नहीं देखता है. आयुषी को लगा कि शायद उसे उस दिन का थप्पड़ याद है और फिर मुसकरा उठी.

रूपा को काम पर न आए आज हफ्ता हो गया. आयुषी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, किस से पूछे कि रूपा क्यों नहीं आ रही है. फिर याद आया कि वैशाली से पूछती हूं.

वैशाली ने कहा कि उस के घर भी रूपा कई दिनों से नहीं आ रही है. उस ने यह भी कहा कि रूपा का घर आयुषी के घर से थोड़ी दूर पर ही है. जा कर पूछ ले. आयुषी को लगा कि वैशाली सच कह रही है. उसे जा कर देखना चाहिए कि क्यों नहीं आ रही है और वह काम पर आएगी भी या नहीं.

संकरी सी गली में 1 कमरे का घर, 1 खटिया पर कांता बाई लेटी थी. बाहर से ही सब दिख रहा था.

‘‘कांता बाई,’’ आयुषी की आवाज सुनते ही कांता बाई बाहर आ गई.

‘‘रूपा कई दिनों से नहीं आ रही है, तो देखने आ गई, तबीयत तो ठीक है न उस की? आयुषी ने कांता बाई से पूछा.

कांता बाई अपना सिर पीटते हुए कहने लगी, कर्मजली मर जाए तो अच्छा है.’’

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‘‘कांता बाई ऐसा क्यों कह रही... कोईर् बात हो गई क्या?’’ आयुषी ने आश्चर्य से पूछा.

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