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लेखिका- डा. ऋतु सारस्वत

आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे और मैं भी इन्हें कहां थामना चाह रही थी. एक ऐसा सैलाब जो मुझे पूर्वाग्रहों की चुभन से बहुत दूर ले जाए, पर यह चाह कब किसी की पूरी हुई है जो मेरी होती. प्रश्नों के घेरे में बंध कर पांव उलझ गए और थम गई मैं, पर प्रश्नों का उत्तर इतना पीड़ादायक होगा, यह अकल्पनीय था.

‘आभाजी, यह निर्णय आसान नहीं है. किसी और की बच्ची को स्वीकारना सहज नहीं है. ऐसा न हो कि मां का साया देने की चाह में पिता की उंगली भी छूट जाए? मैं बहुत डरता हूं आप फिर सोच लीजिए.’ पर मैं कहीं भी सशंकित नहीं थी. मेरी ममता तो तभी हिलोरे मारने लगी थी जब आरती को पहली बार देखा था. दादी की गोद में सिमटी वह दुधमुंही बच्ची स्वयं को सुरक्षा के कवच में घेरे हुए थी. वह कवच जो मेरे विनय से सात फेरे लेने के बाद और आरती की मां बनने के बाद भी न टूटा.

‘‘मां, आप आरती को मुझे दे दीजिए, मैं इसे सुला दूंगी. आप आराम से मौसीजी से बातचीत कीजिए.’’

‘‘नहीं आभा, तुम आरती की चिंता मत करो, जाओ देखो, विनय को किसी चीज की जरूरत तो नहीं.’’

‘‘ठीक है, मां,’’ इस से अधिक कुछ नहीं कह पाई. कमरे से बाहर निकली तो मौसीजी की आवाज सुन कर पांव वहीं थम गए :

‘‘यह क्या विमला, तू ने आरती को आभा को दिया क्यों नहीं? जब से

आई हूं, देख रही हूं तू एक पल के लिए भी आरती को खुद से दूर नहीं करती. इस तरह तो आरती कभी आभा से जुड़ नहीं पाएगी. आखिर वह मां है इस की.’’

‘‘मां नहीं, सौतेली मां, कैसे सौंप दूं अपने कलेजे के टुकड़े को पराए हाथों में, मैं ने वृंदा को वचन दिया था कि मैं उस की बच्ची का खयाल रखूंगी.’’

‘‘तो तू ने विनय की दोबारा शादी की क्यों?’’

‘‘दीदी, अभी विनय की उम्र ही क्या है, सारा जीवन पड़ा है उस के सामने, तनमन की जरूरत तो पत्नी ही पूरी कर सकती है. अब दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी संभालें.’’

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‘‘और आरती?’’

‘‘न दीदी, आरती उन की जिम्मेदारी नहीं है. उस की दादी भी मैं और मां भी मैं. अपनी बच्ची को सौतेलेपन की हर छाया से दूर रखूंगी.’’

‘‘विमला, तू यह ठीक नहीं कर रही.’’

‘‘दीदी, ठीक और गलत का हिसाब आप रखो. आज तक कौन सी सौतेली मां सगी हुई है, जो आभा होगी.’’

‘‘ठीक है, विमला, तुझे जो उचित लगे वह कर पर देखना तेरी यह सोच एक दिन आरती को ही सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी,’’ मौसीजी कमरे से बाहर आ गईं.

‘‘तू यहीं खड़ी थी, आभा,’’ मुझे देख कर मौसीजी एक पल को सकपका गईं फिर संभलते हुए बोलीं, ‘‘तू परेशान मत हो, समय सब ठीक कर देगा.’’

उस समय के इंतजार में एकएक दिन बीतने लगा पर जैसे बंद मुट्ठी से रेत सरक कर बिखर जाती है, मां के दिल के बंद दरवाजों से मेरी ममता टकरा कर लौट आती.

‘‘मैं तुम्हारे दर्द को समझता हूं, आभा पर क्या करूं. मां का व्यवहार मेरी समझ से परे है. उन्होंने तो मुझे भी आरती से दूर कर दिया है. जब भी मैं आरती को गोदी में लेता हूं, वे किसी न किसी बहाने से उसे मुझ से वापस ले लेती हैं. क्या मेरा मन इस से आहत नहीं होता पर क्या करूं?’’

‘‘विनय, मुझे इस घर में आए 6 महीने हो गए हैं और मुझे वह पल याद नहीं जब आरती को मैं ने अपनी गोद में लिया हो. मां क्यों नहीं समझतीं कि रिश्ते बांधने से बंधते हैं. क्या यशोदा मां…’’

‘‘तुम खुद को समझा रही हो या मुझे? तुम भी जानती हो कि तुम्हारी ये उपमाएं निरर्थक हैं.’’

विनय की बात सुन कर मैं ने चुप्पी ओढ़ ली. धीरेधीरे समय सरक रहा था और मैं मां की कड़ी पहरेदारी में अपनी ममता को अपने ही आंचल में दम तोड़ते हुए देख रही थी. मेरी बेबसी पर शायद प्रकृति को तरस आ गया.

‘‘मां, बधाई हो, आप दादी बनने वाली हैं,’’ उत्साह भरे लहजे में विनय ने कहा.

‘‘मैं तो पहले ही दादी बन चुकी हूं, तू तो आभा को बधाई दे. चल अच्छा हुआ, अब कम से कम मेरी आरती से झूठी ममता का नाटक तो बंद करेगी,’’ मां के स्वर की कटुता दीवारों को भेदती हुई मुझ तक पहुंची और एक पल में ही खुशी के रंग स्याह हो गए. पलक अपने जन्म के साथ मेरे लिए ढेर सारी आशाएं भी लाई.

‘‘विनय, अब देखना मां कितना भी चाहें पर आरती अपनी बहन से दूर नहीं रह पाएगी.’’

‘‘काश, ऐसा हो,’’ विनय ने ठंडे स्वर में कहा.

जानती थी मैं कि विनय का विश्वास डगमगा चुका है. पिछले 3 सालों में उन्होंने अपनी बेटी के पास होते हुए भी दूर होने की पीड़ा को झेला है. खुद को समझातेसमझाते विनय थक चुके हैं. विनय की पीड़ा को जब मैं समझ पा रही हूं तो मां क्यों नहीं? 9 महीने अपने खून से सींचा है उन्होंने विनय को, फिर क्यों अपने बेटे को जानेअनजाने दुख पहुंचा रही हैं?

‘‘क्या सोच रही हो, आभा, पलक कब से रोए जा रही है?’’

‘‘आई एम सौरी,’’ मैं ने पलक को विनय की गोद से ले कर सीने से लगा लिया. पलक का स्पर्श मेरे तन और मन को तृप्त कर गया पर मन का एक कोना अब भी आशा और निराशा के बीच हिचकोले खा रहा था.

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‘‘आरती बेटा, इधर आओ, देखो तुम्हारी छोटी बहन,’’ आरती पलक को दूर से ही टुकुरटुकुर देख रही थी पर मेरी आवाज में इतनी ताकत कहां थी कि वह आरती को अपने पास बुला सके. आरती बिना कुछ बोले मुड़ गई और मैं अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो ही नहीं पाई. ?

मां के जीवन का एकमात्र ध्येय था आरती को असीम स्नेह देना, क्या कभी ममता भी नुकसानदायक हुई है? यह एक ऐसा सवाल है जिस का जवाब हां या न में देना कठिन है पर एक बात निश्चित है कि अगर ममता अपनी आंखों पर पट्टी बांध ले तो वह बच्चे के लिए घातक बन जाती है. आरती की हर चाह उस के बोलने से पहले पूरी कर देना मां की पहली प्राथमिकता थी.

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