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आकाशवाणी पहुंची तो सब से पहले उन महोदय से मिली जिन से अंकल ने मुलाकात करवाई थी. उन्होंने खुद चल कर मेरी वार्ता की रिकार्डिंग करवाई और मेरे अच्छा बोलने पर मुझे बहुत सराहा भी. मुझे तो वे बड़े अच्छे लगे. उम्र यही कोई 40 के आसपास होगी. रिकार्डिंग के बाद वे मुझे अपने केबिन में ले गए. मेरे लिए चाय भी मंगवाई, शायद इसलिए कि अंकल को जानते थे. अंकल ने मेरे सामने ही उन से कहा था कि मेरी बेटी जैसी ही है. इस का ध्यान रखना.

चाय आ गई थी और उस के साथ बिस्कुट भी. उन्होंने मुझे बड़े अदब से चाय पेश की और मुझ से बातें भी करते रहे. बोले, ‘‘चेक ले कर ही जाइएगा दीयाजी. हो सकता है कि थोड़ी देर लग जाए. बहुत खुशी होती है न कुछ करने का पारिश्रमिक पा कर.’’ और तब मैं सोच रही थी कि शायद अब यह मतलब की बात करें कि बदले में मुझे उन्हें कितना कमीशन देना है. मैं तो बिलकुल ही तैयार बैठी थी उन्हें कमीशन देने को. मगर मुझ से उन्होंने उस का कुछ जिक्र ही नहीं किया. मैं ने ही कहा, ‘‘सर, मैं तो आकाशवाणी पर बस प्रोग्राम करना चाहती हूं. बाकी पारिश्रमिक या पैसे में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है. मेरी रचनात्मक प्रवृत्ति का होना ही कुदरत की तरफ से दिया हुआ मुझे सब से बड़ा तोहफा है जो हर किसी को नहीं मिलता है. सर, यह यहां मेरा पहला प्रोग्राम है. आप ही की वजह से यह मुझे मिला है. यह मेरा पहला पारिश्रमिक मेरी तरफ से आप को छोटा सा तोहफा है क्योंकि जो मौका आप ने मुझे दिया वह मेरे लिए अनमोल है.’’

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